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०९:५२, ५ जनवरी २०१० का अवतरण

गीता अध्याय-2 श्लोक-51 / Gita Chapter-2 Verse-51

प्रसंग-


भगवान् ने कर्मयोग के आचरण द्वारा अनामय पद की प्राप्ति बतलायी; इस पर <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> को यह जिज्ञासा हो सकती है कि अनामय परम पद की प्राप्ति मुझे कब और कैसे होगी ? इसके लिये भगवान् दो श्लाकों में कहते हैं-


कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्ता मनीषिण: ।
जन्मबन्धविनिर्मुक्ता: पदं गच्छन्त्यनामयम् ।।51।।




क्योंकि समबुद्धि से युक्त ज्ञानी जन कर्मों से उत्पन्न होने वाले फल को त्याग कर जन्म रूप बन्धन से मुक्त हो निर्विकार परम पद को प्राप्त हो जाते हैं ।।51।।


For wise men possessing an equiposied mind, renouncing the fruit of from the shackles of birth, attain the blissful supreme state. (51)


हि = क्योंकि ; बुद्धियु क्ता: = बुद्धियोगयुक्त ; मनीषिण: = ज्ञानीजन ; कर्मजम् = कर्मोंसे उत्पन्न होने वाले ; फलम् = फलको ; त्याक्त्वा = त्यागकर ; जन्मबन्धविनिर्मुक्ता: = जन्मरूप बन्धनसे छूटे हुए ; अनामयम् = निर्दोष अर्थात् अमृतमय ; पदम् = परमपदकों ; गच्छन्ति = प्राप्त होते हैं



अध्याय दो श्लोक संख्या
Verses- Chapter-2

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 , 43, 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72

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