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गीता अध्याय-2 श्लोक-54 / Gita Chapter-2 Verse-54
प्रसंग-
पूर्व श्लोक में <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ने परमात्मा को प्राप्त हुए सिद्ध योगी के विषय में चार बातें पूछी हैं; इन चारों बातों का उत्तर भगवान् ने अध्याय की समाप्ति पर्यन्त दिया है, बीच में प्रसंगवश दूसरी बातें भी कही हैं । इस अगले श्लोक में अर्जुन के पहले प्रश्न का उत्तर संक्षेप में देते हैं
स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव ।
स्थितधी: किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम् ।।54।।
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क्या लक्षण है ? वह स्थिर बुद्धि पुरुष कैसे बोलता है, कैसे बैठता है और कैसे चलता है ?।।54।।
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Arjuna said: Krishna, what is the definition (mark) of a God-realized soul, stable to mind and established in Samadhi (perfect tranquilllity of mind) ? How does the man of stable mind speak, how does he sit, how does he walk? (54).
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केशव = हे केशव ; समाधिस्थस्य = यमाधिमें स्थित ; स्थितप्रज्ञस्य = स्थिरबुद्धिवाले पुरुषका ; का = क्या ; भाषा = लक्षण है (और) ; स्थितधी: = स्थिरबुद्धि पुरुष ; किम् = कैसे ; प्रभाषेत = बोलता है ; किम् = कैसे ; आसीत = बैठता है ; किम् = कैसे ; व्रजेत = चलता है
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