ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
|
|
पंक्ति २६: |
पंक्ति २६: |
| | | |
| हे <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। | | हे <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। |
− | ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon>! जिस काल में यह पुरूष मन में स्थित सम्पूर्ण कामनाओं को भली भाँति त्याग देता है और आत्मा से आत्मा में ही सन्तुष्ट रहता है, उस काल में स्थित प्रज्ञ कहा जाता है ।।55।। | + | ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon>! जिस काल में यह पुरुष मन में स्थित सम्पूर्ण कामनाओं को भली भाँति त्याग देता है और आत्मा से आत्मा में ही सन्तुष्ट रहता है, उस काल में स्थित प्रज्ञ कहा जाता है ।।55।। |
| | | |
| | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| |
पंक्ति ३९: |
पंक्ति ३९: |
| |- | | |- |
| | style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" | | | | style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" | |
− | पार्थ = हे अर्जुन ; यदा = जिस कालमें (यह पुरूष) ; मनोगतान् = मनसें स्थित ; सर्वान् = संपूर्ण ; कामान् = कामनाओंको ; प्रजहाति = त्याग देता है ; तदा = उस कालमें ; आत्मना = आत्मासे ; एव = ही ; आत्मनि = आत्मामें ; तुष्ट: = संतुष्ट हुआ ; स्थितप्रज्ञ: = स्थिरबुद्धिवाला ; उच्यते = कहा जाता है ; | + | पार्थ = हे अर्जुन ; यदा = जिस कालमें (यह पुरुष) ; मनोगतान् = मनसें स्थित ; सर्वान् = संपूर्ण ; कामान् = कामनाओंको ; प्रजहाति = त्याग देता है ; तदा = उस कालमें ; आत्मना = आत्मासे ; एव = ही ; आत्मनि = आत्मामें ; तुष्ट: = संतुष्ट हुआ ; स्थितप्रज्ञ: = स्थिरबुद्धिवाला ; उच्यते = कहा जाता है ; |
| |- | | |- |
| |} | | |} |
१२:१२, १४ फ़रवरी २०१० का अवतरण
गीता अध्याय-2 श्लोक-55 / Gita Chapter-2 Verse-55
प्रसंग-
स्थित प्रज्ञ के विषय में अर्जुन ने चार बातें पूछी हैं, उनमें से पहला पश्न इतना व्यापक है कि उसके बाद के तीनों प्रश्न उसमें अन्तर्भाव हो जाता है । इस दृष्टि से तो अध्याय की समाप्ति पर्यन्त उस एक ही प्रश्न का उत्तर है, पर अन्य तीन प्रश्नों का भेद समझाने के लिये ऐसा समझना चाहिये कि अब दो श्लोकों में 'स्थितप्रज्ञ कैसे बोलता है' इस दूसरे प्रश्न का उत्तर दिया जाता है-
प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान् ।
आत्मन्येवात्मना तुष्ट: स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते ।।55।।
|
श्री भगवान् बोले-
हे <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon>! जिस काल में यह पुरुष मन में स्थित सम्पूर्ण कामनाओं को भली भाँति त्याग देता है और आत्मा से आत्मा में ही सन्तुष्ट रहता है, उस काल में स्थित प्रज्ञ कहा जाता है ।।55।।
|
Sri Bhagavan said:
Arjuna, when one thoroughly dismisses all cravings of the mind, and is satisfied in the self through (the joy of ) the self, then he is called stable of mind.(55)
|
पार्थ = हे अर्जुन ; यदा = जिस कालमें (यह पुरुष) ; मनोगतान् = मनसें स्थित ; सर्वान् = संपूर्ण ; कामान् = कामनाओंको ; प्रजहाति = त्याग देता है ; तदा = उस कालमें ; आत्मना = आत्मासे ; एव = ही ; आत्मनि = आत्मामें ; तुष्ट: = संतुष्ट हुआ ; स्थितप्रज्ञ: = स्थिरबुद्धिवाला ; उच्यते = कहा जाता है ;
|
|
|
|
<sidebar>
- सुस्वागतम्
- mainpage|मुखपृष्ठ
- ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
- विशेष:Contact|संपर्क
- समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
- SEARCH
- LANGUAGES
__NORICHEDITOR__
- गीता अध्याय-Gita Chapters
- गीता 1:1|अध्याय [1] Chapter
- गीता 2:1|अध्याय [2] Chapter
- गीता 3:1|अध्याय [3] Chapter
- गीता 4:1|अध्याय [4] Chapter
- गीता 5:1|अध्याय [5] Chapter
- गीता 6:1|अध्याय [6] Chapter
- गीता 7:1|अध्याय [7] Chapter
- गीता 8:1|अध्याय [8] Chapter
- गीता 9:1|अध्याय [9] Chapter
- गीता 10:1|अध्याय [10] Chapter
- गीता 11:1|अध्याय [11] Chapter
- गीता 12:1|अध्याय [12] Chapter
- गीता 13:1|अध्याय [13] Chapter
- गीता 14:1|अध्याय [14] Chapter
- गीता 15:1|अध्याय [15] Chapter
- गीता 16:1|अध्याय [16] Chapter
- गीता 17:1|अध्याय [17] Chapter
- गीता 18:1|अध्याय [18] Chapter
</sidebar>
|