"गीता 2:6" के अवतरणों में अंतर

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१०:४९, १२ नवम्बर २००९ का अवतरण

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गीता अध्याय-2 श्लोक-6 / Gita Chapter-2 Verse-6

प्रसंग-


इस प्रकार कर्त्तव्य का निर्णय करने में अपनी असमर्थता प्रकट करने के बाद अब अर्जुन भगवान् की शरण ग्रहण करके अपना निश्चित कर्तव्य बतलाने के लिये उनसे प्रार्थना करते हैं-


न चैतद्विद्म:कतरन्नो गरीयो |
यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयु:।
यानेव हत्वा न जिजीविषाम-
स्तेऽवस्थिता:प्रमुखे धार्तराष्ट्रा:।।6।।




हम यह भी नहीं जानते कि हमारे लिये युद्ध करना और न करना- इन दोनों में से कौन-सा श्रेष्ठ है, अथवा यह भी नहीं जानते कि उन्हें हम जीतेंगे या हमको वे जीतेंगे । और जिन को मारकर हम जीना भी नहीं चाहते, वे ही हमारे आत्मीय धृतराष्ट्र के पुत्र हमारे मुकाबले में खड़े हैं ।।6।।


Wo do not even know which is preferable for us- to fight or not to fight; nor do we know whether we shall win or whether they will conquer us. Those very sons of Dhrtarastra, killing whom we do not even wish to live, stand in the enemy ranks. (6)


न = नहीं ; विझ्: = जानते (कि) ; न: = हमारे लिये ; कतरत् =क्या (करना) ; गरीय; =श्रेष्ठ है ; यद्वा = अथवा (यह भी नहीं जानते कि); जयेम = हम जीतेंगे ; यदि वा = या ; न: = हमको ; जयेयु: = वे जीतेंगे (और) ; यान् = जिनको ; हत्वा = मारकर (हम); न जिजीविषाम: = जीना भी नहीं चाहते ; ते = वे ; एव = ही ; धार्तराष्टा: = धृतराष्ट के पुत्र ; प्रमुखे = हमारे सामने ; अवस्थिता: = खडे हैं;



अध्याय दो श्लोक संख्या
Verses- Chapter-2

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 , 43, 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72

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