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गीता अध्याय-2 श्लोक-72 / Gita Chapter-2 Verse-72
एषा ब्राह्री स्थिति: पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्राति ।
स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि ब्रह्रानिर्वाणमृच्छति ।।72।।
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हे <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! यह <balloon link="index.php?title=ब्रह्मा" title="सर्वश्रेष्ठ पौराणिक त्रिदेवों में ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव की गणना होती है। इनमें ब्रह्मा का नाम पहले आता है, क्योंकि वे विश्व के आद्य सृष्टा, प्रजापति, पितामह तथा हिरण्यगर्भ हैं।¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">ब्रह्मा</balloon> को प्राप्त पुरुष की स्थिति है, इसको प्राप्त होकर योगी कभी मोहित नहीं होता और अन्त काल में भी इस ब्राह्री स्थिति में स्थित होकर ब्रह्रानन्द को प्राप्त हो जाता है ।।72।।
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Arjuna, such is the state of the God-realized soul; having reached this state, he overcomes delusion. And established in this state, even at the last moment. he attains Brahmic Bliss. (72)
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पार्थ = हे अर्जुन ; एषा = यह ; ब्राह्मी = ब्रह्मको प्राप्त हुए पुरुषकी ; स्थिति: = स्थिति है ; इनाम् = इसको ; प्राप्य = प्राप्त होकर ; न विमुह्मति = मोहित नहीं होता है (और) ; अन्तकाले = अन्तकालमें ; अपि = भी ; अस्याम् = इस निष्ठामें ; स्थित्वा = स्थित होकर ; ब्रह्मनिर्वाणम् = ब्रह्मानन्दको ; ऋच्छति = प्राप्त हो जाता है
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