"गीता 3:19" के अवतरणों में अंतर
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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− | पूर्व श्लोक में भगवान् ने जो यह बात कही कि आसक्ति से रहित होकर कर्म करने वाला मनुष्य परमात्मा को प्राप्त हो जाता है , उस बात को पुष्ट करने के लिये जनकादि का प्रमाण देकर पुन: | + | पूर्व श्लोक में भगवान् ने जो यह बात कही कि आसक्ति से रहित होकर कर्म करने वाला मनुष्य परमात्मा को प्राप्त हो जाता है , उस बात को पुष्ट करने के लिये जनकादि का प्रमाण देकर पुन: <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। |
+ | ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> के लिये कर्म करना उचित बतलाते हैं- | ||
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<div align="center"> | <div align="center"> | ||
'''तस्मादसक्त: सततं कार्यं कर्म समाचार ।'''<br /> | '''तस्मादसक्त: सततं कार्यं कर्म समाचार ।'''<br /> | ||
− | '''असक्तो ह्राचरन्कर्म परमाप्नोति | + | '''असक्तो ह्राचरन्कर्म परमाप्नोति पुरुष: ।।19।।''' |
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− | तस्मात् = इससे (तूं) ; असक्त: = अनासक्त हुआ ; सततम् = निरन्तर ; कार्यम् = कर्तव्य ; कर्म = कर्मका ; समाचर = अच्छी प्रकार आचरण कर ; हि = क्योंकि ; असक्त: = अनासक्त ; पूरूष: = | + | तस्मात् = इससे (तूं) ; असक्त: = अनासक्त हुआ ; सततम् = निरन्तर ; कार्यम् = कर्तव्य ; कर्म = कर्मका ; समाचर = अच्छी प्रकार आचरण कर ; हि = क्योंकि ; असक्त: = अनासक्त ; पूरूष: = पुरुष ; कर्म = कर्म ; आचरन् = करता हुआ ; परम् = परमात्माको ; आप्रोति = प्राप्त होता है ; |
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१२:३५, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-3 श्लोक-19 / Gita Chapter-3 Verse-19
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