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− | इस प्रकार कर्मयोगी के लिये कर्तव्य कर्मों के न करने को योगनिष्ठा की प्राप्ति में बाधक और सांख्ययोगी के लिये सिद्धि की प्राप्ति में केवल बाहरी कर्मों के त्याग को गौण बतलाकर, अब | + | इस प्रकार कर्मयोगी के लिये कर्तव्य कर्मों के न करने को योगनिष्ठा की प्राप्ति में बाधक और सांख्ययोगी के लिये सिद्धि की प्राप्ति में केवल बाहरी कर्मों के त्याग को गौण बतलाकर, अब <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। |
+ | ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> को कर्तव्य कर्मों में प्रवृत्त करने के उद्देश्य से भिन्न-भिन्न हेतुओं से कर्म करने की आवश्कता सिद्ध करने के लिये पहले कर्मों के सर्वथा त्याग को आशक्य बतलाते हैं- | ||
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− | '''न कर्मणामनारम्भान्नैष्कमर्यं | + | '''न कर्मणामनारम्भान्नैष्कमर्यं पुरुषोऽश्नुते ।'''<br /> |
'''न च संन्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति ।।4।।''' | '''न च संन्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति ।।4।।''' | ||
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− | + | पुरुष: = मनुष्य ; न = न (तो) ; कर्मणाम् = कर्मोंके ; च = और ; न = न ; संन्यसनात् एव = कर्मोंको त्यागनेमात्रसे ; अनारम्भात् = न करनेसे ; नैष्कर्म्यम् = निष्कर्मताको ; अश्नुते = प्राप्त होता है ; सि़द्धिम् = भगवत्साक्षात्काररूप सिद्धिको ; समधिगच्छति = प्राप्त होता है ; | |
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१२:३६, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
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गीता अध्याय-3 श्लोक-4 / Gita Chapter-3 Verse-4
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