"गीता 3:41" के अवतरणों में अंतर

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इसलिये हे अर्जुन ! तू पहले इन्द्रियों को वश में करके इस ज्ञान और विज्ञान का नाश करने वाले महान पापी काम को अवश्य ही बलपूर्वक मार डाल ।।41।।
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इसलिये हे [[अर्जुन]] ! तू पहले इन्द्रियों को वश में करके इस ज्ञान और विज्ञान का नाश करने वाले महान पापी काम को अवश्य ही बलपूर्वक मार डाल ।।41।।
  
 
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०५:४८, ९ अक्टूबर २००९ का अवतरण

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गीता अध्याय-3 श्लोक-41 / Gita Chapter-3 Verse-41

प्रसंग-


पूर्व श्लोक में इन्द्रियों को वश में करके कामरूप शत्रु को मारने के लिये कहा गया । इस पर यह शंका होती है कि जब इन्द्रय, मन और बुद्धि पर काम का अधिकार है और उनके द्वारा कामने जीवात्मा को मोहित कर रखा है तो ऐसी स्थिति में वह इन्द्रियों को वश में करके काम को कैसे मार सकता है । इस शंका को दूर करे के लिये भगवान् आत्मा के यथार्थ स्वरूप लक्ष्य कराते हुए आत्मबल की स्मृति कराते हैं-


तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ ।
पाप्मानं प्रजहि ह्रोनं ज्ञानविज्ञाननाशनम् ।।41।।



इसलिये हे अर्जुन ! तू पहले इन्द्रियों को वश में करके इस ज्ञान और विज्ञान का नाश करने वाले महान पापी काम को अवश्य ही बलपूर्वक मार डाल ।।41।।

Therefore, arjuna, you must first control your senses; and then kill this evil thing which obstructs Jnana (knowledge of the absolute or nirguna Brahma) and vijana(Knowledge of sakar Brahma or manifest Divinity) (41)


तस्मात् = इसलिये; भरतर्षभ = हे अर्जुन; त्वम् = तूं; आदौ = पहिले; इन्द्रयाणि = इन्द्रियों को; नियम्य = वश में करके; ज्ञानविज्ञाननाशनम् = ज्ञान और विज्ञान के नाश करने वाले; एनम् = इस (काम); पाप्मानम् = पापीको; हि =निश्चयपूर्वक; प्रजहि = मार


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अध्याय तीन श्लोक संख्या
Verses- Chapter-3

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14, 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43

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