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गीता अध्याय-4 श्लोक-11 / Gita Chapter-4 Verse-11
प्रसंग-
यदि यह बात है, तो फिर लोग भगवान् को न भजकर अन्य देवताओं की उपासना क्यों करते हैं ? इस पर कहते हैं-
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् ।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्या: पार्थ सर्वश: ।।11।।
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हे <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! जो भक्त मुझे जिस प्रकार भजते हैं, मैं भी उनको उसी प्रकार भजता हूँ; क्योंकि सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं ।।11।।
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Arjuna, howsoever men seek Me; even so do I approach them; for all men follow My path in every way. (11)
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पार्थ = हे अर्जुन; ये = जो; माम् = मेरे को; यथा = जैसे; प्रापद्यन्ते = भजते हैं; अहम् = मैं (भी); तान् = उनको; तथा = वैसे; एव = ही; भजामि = भजता हूं (इस रहस्य को जानकर ही); मनुष्या: = बुद्धिमान् मनुष्यगण; सर्वश: =सब प्रकार से; मम = मेरे; वर्त्म = मार्ग के; अनुवर्तन्ते = अनुसार बर्तते हैं।
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