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०५:३१, १७ नवम्बर २००९ का अवतरण

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गीता अध्याय-5 श्लोक-19 / Gita Chapter-5 Verse-19

प्रसंग-


अब निर्गुण निराकर सच्चिदानन्दघन ब्रह्रा को प्राप्त समदर्शी सिद्ध पुरूष के लक्षण बतलाते हैं-


इहैव तैर्जित: सर्गो येषां साम्ये स्थितं मन: ।
निर्दोषं हि समं ब्रह्रा तस्माद् ब्रह्राणि ते स्थिता: ।।19।।



जिनका मन समभाव मे स्थित है, उनके द्वारा इस जीवित अवस्था में ही सम्पूर्ण संसार जीत लिया गया है, क्योंकि सच्चिदानन्दघन परमात्मा निर्दोष और सम है, इससे वे सच्चिदानन्दघन परमात्मा में ही स्थित हैं ।।19।।

Even here is the mortal plane conquered by those whose mind is established in unity; since the absolute is untouched by evil and knows no distinction, hence they are established in the eternal.(19)


येषाम् = जिनका; मन: = मन; साम्ये = समत्वभाव से; स्थितम् = स्थित है; तै: = उनके द्वारा; इह = इस जीवित अवस्था में; एव = ही; सर्ग: = संपूर्ण संसार; जित: = जीत लिया गया; हि = क्योंकि, ब्रह्म = सच्चिदानन्दघन परमात्मा: निर्दोषम् = निर्दोष (और); समम् = सम है; तस्मात् = इससे; ते = वे; ब्रह्मणि = सच्चिदानन्दघन परमात्मा में ही; स्थिता: = स्थित हैं।



अध्याय पाँच श्लोक संख्या
Verses- Chapter-5

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8, 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 ,28 | 29

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