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०७:४७, १७ नवम्बर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-6 श्लोक-16 / Gita Chapter-6 Verse-16
नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नत: ।
न चातिस्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन ।।16।।
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हे अर्जुन ! यह योग न तो बहुत खाने वाले का, न बिलकुल न खाने वाले का, न बहुत शयन करने के स्वभाव वाले का और न सदा जागने वाले का ही सिद्ध होता है ।।16।।
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Arjuna, this yoga is neither for him who overeats, nor for him who observes a complete fast; it is neither for him who is given to too much sleep; nor even for him who is ceaselessly awake. (16)
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योग: = यह योग; तु = तो; अति =बहुत; अश्रत: = खाने वाले का; अस्ति = सिद्ध होता है; एकान्तम् = बिल्कुल; अनश्रत: = न खाने वाले का; स्पप्न शीलस्य = शयन् करने के स्वभाव वाले का; जाग्रत: = अत्यन्त जागने वाले का;
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