ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
गीता अध्याय-6 श्लोक-17 / Gita Chapter-6 Verse-17
प्रसंग-
ध्यान योग में उपयोगी आहार-विहार आदि नियमों का वर्णन करने के बाद, अब निर्गुण निराकर के ध्यान योगी की अन्तिम स्थिति का लक्षण बतलाते हैं-
युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु ।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दु:खहा ।।17।।
|
दु:खों का नाश करने वाला योग तो यथा योग्य आहार-विहार करने वाले का, कर्मों में यथा योग्य चेष्टा करने वाले का और यथा योग्य सोने तथा जागने वाले का ही सिद्ध होता है ।।17।।
|
Yoga, which rids one of woe, is accomplished only by him who is regulated in diet and recreation, regulated in performing actions, and regulated in sleep and wakefulness. (17)
|
दु:खहा = दु:खों का नाश करने वाला; योग: = योग (तो); युक्ताहारविहारस्य = यथायोग्य आहार और विहार करने वाले का (तथा); युक्तचेष्टस्य = यथायोग्य चेष्टा करने वाले का (और); युक्तस्वप्राव: = यथायोग्य शयन करने तथा जागने वाले का(ही) (सि़द्ध); भवति = होता है
|
|
|
|
|