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०८:४०, १७ नवम्बर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-6 श्लोक-33 / Gita Chapter-6 Verse-33
प्रसंग-
समत्वयोग में मन की चंचलता को बाधक बतलाकर अब अर्जुन मन के निग्रह को अत्यन्त कठिन बतलाते हैं-
योऽयं योगस्त्वया प्रोक्त:
साम्येन मधुसूदन ।
एतस्याहं न पश्यामि
चञ्चलत्वात्स्थितिं स्थिराम् ।।33।।
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अर्जुन बोले-
हे मधुसूदन ! जो यह योग आपने समभाव से कहा है, मन के चंचल होने से मैं इसकी नित्य स्थिति को नहीं देखता हूँ ।।33।।
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arjuna said:
Krishna, owing to restlessness of mind I do not perceive the stability of this yoga in the form of equability, which you have just spoken of. (33)
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मधुसूदन = हे मधुसूदन; य: = जो; अयम् = यह; योग: =ध्यान योग; त्वया =आपने; साम्येन = समत्वभाव से; प्रोक्त: =कहा है; एतय =इसकी; अहम् = मैं(मनके); चज्जलत्वात् = चज्जल होने से; स्थिराम् = बहुत काल तक ठहरने वाली; स्थितिम् = स्थिति को; न = नहीं; पश्यामि = देखता हूं।
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