"गीता 6:34" के अवतरणों में अंतर

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मनोनिग्रह के सम्बन्ध में अर्जुन की उक्ति को स्वीकार करते हुए भगवान् मन को वश में करने के उपाय बतलाते हैं –
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मनोनिग्रह के सम्बन्ध में [[अर्जुन]] की उक्ति को स्वीकार करते हुए भगवान् मन को वश में करने के उपाय बतलाते हैं –
 
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क्योंकि हे श्रीकृष्ण ! यह मन बड़ा चञ्चल, प्रमथन स्वभाव वाला, बड़ा दृढ़ और बलवान् है । इसलिये उसका वश में करना मैं वायु के रोकने की भाँति अत्यन्त दुष्कर मानता हूँ ।।34।।  
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क्योंकि हे [[श्रीकृष्ण]] ! यह मन बड़ा चंचल, प्रमथन स्वभाव वाला, बड़ा दृढ़ और बलवान है । इसलिये उसको वश में करना मैं वायु के रोकने की भाँति अत्यन्त दुष्कर मानता हूँ ।।34।।  
  
 
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१०:४२, १७ नवम्बर २००९ का अवतरण

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गीता अध्याय-6 श्लोक-34 / Gita Chapter-6 Verse-34

प्रसंग-


मनोनिग्रह के सम्बन्ध में अर्जुन की उक्ति को स्वीकार करते हुए भगवान् मन को वश में करने के उपाय बतलाते हैं –


चज्चलं हि मन: कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम् ।
तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम् ।।34।।



क्योंकि हे श्रीकृष्ण ! यह मन बड़ा चंचल, प्रमथन स्वभाव वाला, बड़ा दृढ़ और बलवान है । इसलिये उसको वश में करना मैं वायु के रोकने की भाँति अत्यन्त दुष्कर मानता हूँ ।।34।।

For Krishna, the mind is very unsteady, turbulent, tenacious and powerful therefore, I consider it as difficult to control as the wind.(34)


हि = क्योंकि; कृष्ण =हे कृष्ण (यह ); मन: =मन; चज्जलम् = बड़ा चज्जल (और ); प्रमाथि = प्रमथन स्वभाव वाला है (तथा); दृढम् = बड़ा दृढ़ (और ); बलवत् = बलवान् है; (अत:) = इसलिये; तस्य = उसका; निग्रहम् = वश में करना; अहम् = मैं; वायो: = वायु की; इव = भांति; सुदुष्करम् = अति दुष्कर; मन्ये =मानता हूं;



अध्याय छ: श्लोक संख्या
Verses- Chapter-6

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47

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