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− | हे महाबाहो ! नि:सन्देह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है; परंतु हे [[कुन्ती]] पुत्र [[अर्जुन]] ! यह अभ्यास और वैराग्य से वश में होता है ।।35।। | + | हे <balloon title="पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है ।" style="color:green">महाबाहो</balloon> ! नि:सन्देह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है; परंतु हे <balloon link="index.php?title=कुन्ती" title="ये वसुदेवजी की बहन और भगवान श्रीकृष्ण की बुआ थीं। महाभारत में महाराज पाण्डु की पत्नी । |
| + | ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">कुन्ती</balloon> पुत्र <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। |
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०७:०२, ३ दिसम्बर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-6 श्लोक-35 / Gita Chapter-6 Verse-35
प्रसंग-
भगवान् ने मन को वश मे करने के उपाय बतलाये । यहाँ यह जिज्ञासा होती है कि मन को वश में न किया जाय तो क्या हानि है ? इस पर भगवान् कहते हैं-
असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् ।
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गुह्राते ।।35।।
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श्रीभगवान् बोले-
हे <balloon title="पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है ।" style="color:green">महाबाहो</balloon> ! नि:सन्देह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है; परंतु हे <balloon link="index.php?title=कुन्ती" title="ये वसुदेवजी की बहन और भगवान श्रीकृष्ण की बुआ थीं। महाभारत में महाराज पाण्डु की पत्नी ।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">कुन्ती</balloon> पुत्र <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! यह अभ्यास और वैराग्य से वश में होता है ।।35।।
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Shri Bhagavan said:
The mind is restless no doubt; and difficult to curb, Arjuna; but it can be brought under control by repeated practice (of meditation) and by the exercise of dispassion, O son of Kunti.(35)
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महाबाहो = हे महाबाहो; असंशयम् =नि: सन्देह; मन: =मन;चलम् = चज्ज्ल; दुर्निग्रहम् =कठनिता से वश में होने वाला है; तु =परन्तु; कौन्तेय = हे कुन्तीपुत्र अर्जुन अभ्यास; अभ्यासेन = अभ्यास अर्थात् स्थिति के लिये बारम्बार यन्त्र करने से; गृह्मते =वश में करता है।
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