गीता 7:29-30

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गीता अध्याय-7 श्लोक-29, 30 / Gita Chapter-7 Verse-29, 30

प्रसंग-


सर्वत्र भगद्दर्शन से भगवान् के साक्षात्कार की बात कहकर उस भगवत्-प्राप्त पुरुष के लक्षण और महत्व का निरूपण करते हैं-


जरामरणमोक्षाय मामाश्रित्य यतन्ति ये ।
ते ब्रह्रा तुद्विदु: कृत्स्नमध्यात्मं कर्म चाखिलम् ||29||
साधिभूताधिदैवं मां साधियज्ञं च ये विदु: ।
प्रयाणकालेऽपि च मां ते विदुर्युक्तचेतस: ।।30।।



जो पुरुष अधिभूत और अधिदैव के सहित तथा अधियज्ञ के सहित (सबका आत्मरूप) मुझे अन्तकाल में भी जानते है वे युक्तचित्त वाले पुरुष मुझे जानते हैं अर्थात् प्राप्त हो जाते हैं । जो मेरे शरण होकर जरा और मरण से छूटने के लिये यत्न करते हैं, वे पुरुष उस ब्रह्रा को, सम्पूर्ण अध्यात्म को, सम्पूर्ण कर्म को जानते हैं ।।29-30।।

They who, having taken refuge in me, strive for deliverance from old age and death know Brahma (the absolute), the whole adhyatma (the totality of jives or embodies souls), and the entire field of karma (action) as well as My integral being, comprising Adhibhuta (the field of matter), Adhidaiva (Brahma) and Adhiyajn (the unmanifest Divinity dwelling in the heart of all beings as their witness). And they who, possessed of a steadfast mind, know thus even at the hour of death, they too know me alone. (29,30)


ये = जो पुरुष ; साधिभूताधिदैवम् = अधिभूत और अधिदैव के सहित ; च = तथा ; साधियज्ञम् = अधियज्ञ के सहित (सबका आत्मरूप) ; माम् = मेरे को ; विदु: = जानते हैं ; ते = वे ; युक्तचेतस: = युक्त चित्त वाले पुरुष ; प्रयाणकाले = अन्तकाल में ; अपि = भी ; माम् = मुझको ; च = ही ; विदु: = जानते हैं अर्थात् प्राप्त होते हैं ; ये = जो ; माम् = मेरे ; आश्रित्य = शरण होकर ; जरामरणमोक्षाय = जरा और मरण से छूटने के लिये ; यतन्ति = यत्न करते हैं ; अखिलम् = संपूर्ण ; ते = वे (पुरुष) ; तत् = उस ; ब्रह्म = ब्रह्मको ; च = तथा ; कृत्स्त्रम् = संपूर्ण ; अध्यात्मम् = अध्यात्म को ; कर्म = कर्म को ; विदु: = जानते हैं ;



अध्याय सात श्लोक संख्या
Verses- Chapter-7

1 | 2 | 3 | 4, 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29, 30

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