"गीता 8:28" के अवतरणों में अंतर
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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− | भगवान् ने | + | भगवान् ने <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। |
+ | ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> को योग युक्त होने के लिये कहा । अब योग युक्त पुरुष की महिमा और इस अध्याय में वर्णित रहस्य को समझकर उसके अनुसार साधना करने का फल बतलाते हुए इस अध्याय का उपसंहार करते हैं- | ||
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− | '''वेदेषु यज्ञेषु तप:सु चैव दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम् ।'''<br/> | + | '''वेदेषु यज्ञेषु तप:सु चैव'''<br/> |
− | '''अत्येति तत्सर्वमिदं विदित्वा योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम् ।।28।।''' | + | '''दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम् ।'''<br/> |
+ | '''अत्येति तत्सर्वमिदं विदित्वा'''<br/> | ||
+ | '''योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम् ।।28।।''' | ||
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− | योगी | + | योगी पुरुष इस रहस्य को तत्व से जानकर वेदों के पढ़ने में तथा यज्ञ, तप और दानादि के करने में जो पुण्यफल कहा है, उस सबको नि:सन्देह उल्लंघन कर जाता है और सनातन परमपद को प्राप्त होता है ।।28।। |
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− | योगी = योगी | + | योगी = योगी पुरुष ; इदम् = इस रहस्य को ; विदित्वा = तत्त्व से जानकर ; वेदेषु = वेदों के पढने में ; च = तथा ; यज्ञेषु = यज्ञ ; तप:सु = तप (और) ; दानेषु = दानादिकों के करने में ; यत् = जो ; पुण्यफलम् = पुण्यफल ; प्रदिष्टम् = कहा है ; तत् = उस ; सर्वम् = सबको ; एव = नि: सन्देह ; अत्येति = उल्लंघन कर जाता है ; च = और ; आद्यम् = सनातन ; परम् = परम ; स्थानम् = पदको ; उपैति = प्राप्त होता है |
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१२:५०, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-8 श्लोक-28 / Gita Chapter-8 Verse-28
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