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०४:४६, १९ नवम्बर २००९ का अवतरण
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गीता अध्याय-8 श्लोक-9 / Gita Chapter-8 Verse-9
प्रसंग-
दिव्य पुरूष की प्राप्ति बतलाकर अब उसका स्वरूप बतलाते हैं-
कविं पुराणमनुशासितार
मणोरणीयांसमनुस्मरेद्य: ।
सर्वस्य धातारमचिन्त्यरूप
मादित्यवर्णं तमस: परस्तात् ।।9।।
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जो पुरूष सर्वज्ञ, अनादि, सबके नियन्ता, सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म, सबके धारण-पोषण करने वाले अचिन्त्य स्वरूप, सूर्य के सदृश नित्य चेतन प्रकाश रूप और अविधा से अति परे, शुद्ध सच्चिदानन्दघन परमेश्वर का स्मरण करता है ।।9।।
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He who contemplates on the all- wise, ageless beings, the ruler of all, subtler than the subtle, the universal sustainer, possessing a form beyond human conception, refulgent like the sun and far beyond the darkness of ignorance. (9)
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य: = जो पुरूष ; कविम् = सर्वज्ञ ; पुराणम् = अनादि ; अनुशासितारम् = सबके नियन्ता ; अणो: अणीयांसम् = सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म ; सर्वस्य = सबके ; परस्तात् = अतिपरे शुद्ध सच्चिदानन्दघन परमात्मा को ; धातारम् = धारण-पोषण करने वाले ; अचिन्त्यरूपम् = अचिन्त्य स्वरूप ; आदित्यवर्णम् = सूर्य के सद्य्श नित्य चेतन प्रकाशरूप ; तमस: = अविद्या से ; अनुस्मरेत् = स्मरण करता है
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