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यह स्थल [[मथुरा]] से 15 किमी की दूरी पर [[यमुना]] के पार स्थित है । यह वैष्णव तीर्थ है । विश्वास किया जाता है कि भगवान् कृष्ण ने यहाँ गौएँ चरायी थीं ।  कहा जाता है, श्री कृष्ण के पालक पिता नन्दजी का यहाँ गोष्ठ था ।  संप्रति वल्लभाचार्य, उनके पुत्र गुसाँई बिट्ठलनाथजी एवं गोकुलनाथजी को बैठकें है । मुख्य मन्दिर गोकुलनाथ जी का है । यहाँ वल्लभकुल के चौबीस मन्दिर बतलायें जाते हैं । महालिंगेश्वर तन्त्र में शिवशतनाम स्तोत्र के अनुसार महादेव गोपीश्वर का यह स्थान है:
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यह स्थल [[मथुरा]] से 15 किमी की दूरी पर [[यमुना]] के पार स्थित है । यह वैष्णव तीर्थ है । विश्वास किया जाता है कि भगवान [[कृष्ण]] ने यहाँ गौएँ चरायी थीं ।  कहा जाता है, श्री कृष्ण के पालक पिता [[नन्द]]जी का यहाँ गोष्ठ था ।  संप्रति [[वल्लभाचार्य]], उनके पुत्र गुसाँई बिट्ठलनाथजी एवं गोकुलनाथजी को बैठकें है । मुख्य मन्दिर गोकुलनाथ जी का है । यहाँ वल्लभकुल के चौबीस मन्दिर बतलायें जाते हैं । महालिंगेश्वर तन्त्र में शिवशतनाम स्तोत्र के अनुसार महादेव गोपीश्वर का यह स्थान है:
  
 
गोकुले गोपिनीपूज्यो गोपीश्वर इतीरित: ।
 
गोकुले गोपिनीपूज्यो गोपीश्वर इतीरित: ।
 
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यह ब्रज का बहुत महत्वपूर्ण स्थल है । यहीं पर रोहिणी ने [[बलराम]] को जन्म दिया था । बलराम [[देवकी]] के सातवें गर्भ में थे जिन्हें योगमाया ने आकर्षित करके रोहिणी के गर्भ में डाल दिया था । मथुरा में [[कृष्ण]]  के जन्म के बाद [[कंस]] के सभी सैनिकों को नींद आ गयी और वासुदेव की बेड़ियाँ खुल गयी थीं । तब वासुदेव कृष्ण को गोकुल में नन्दराय के यहाँ छोड़ आये थे । नन्दराय जी के घर लाला का जन्म हुआ है, धीरे धीरे यह बात गोकुल में फैल गयी । सभी गोपगण, [[गोपी|गोपियाँ]], गोकुलवासी खुशियाँ मनाने लगे । सभी घर, गलियाँ चौक आदि सजाये जाने लगे और बधाइयाँ गायी जाने लगीं । कृष्ण और बलराम का पालन पोषण यही हुआ और दोनों अपनी लीलाओं से सभी का मन मोहते रहे । घुटनों के बल चलते हुए दोनों भाई को देखना गोकुलवासियों को सुख देता था, वहीं माखन चुराकर कृष्ण ब्रज की गोपिकाओं के दुखों को हर लेते थे । गोपियाँ कृष्ण जी को छाछ और माखन का लालच देकर नचाती थीं तो कृष्ण जी बांसुरी की धुन से सभी को मंत्र मुग्ध कर देते थे । कृष्ण ने गोकुल में रहते हुए [[पूतना-वध|पूतना]], [[शकटासुर]], तृणावर्त आदि असुरों को मोक्ष प्रदान किया ।
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यह [[ब्रज]] का बहुत महत्वपूर्ण स्थल है । यहीं पर [[रोहिणी]] ने [[बलराम]] को जन्म दिया था । बलराम [[देवकी]] के सातवें गर्भ में थे जिन्हें योगमाया ने आकर्षित करके रोहिणी के गर्भ में डाल दिया था । मथुरा में [[कृष्ण]]  के जन्म के बाद [[कंस]] के सभी सैनिकों को नींद आ गयी और वासुदेव की बेड़ियाँ खुल गयी थीं । तब वासुदेव कृष्ण को गोकुल में नन्दराय के यहाँ छोड़ आये थे । नन्दराय जी के घर लाला का जन्म हुआ है, धीरे धीरे यह बात गोकुल में फैल गयी । सभी गोपगण, [[गोपी|गोपियाँ]], गोकुलवासी खुशियाँ मनाने लगे । सभी घर, गलियाँ चौक आदि सजाये जाने लगे और बधाइयाँ गायी जाने लगीं । कृष्ण और बलराम का पालन पोषण यही हुआ और दोनों अपनी लीलाओं से सभी का मन मोहते रहे । घुटनों के बल चलते हुए दोनों भाई को देखना गोकुलवासियों को सुख देता था, वहीं माखन चुराकर कृष्ण ब्रज की गोपिकाओं के दुखों को हर लेते थे । गोपियाँ कृष्ण जी को छाछ और माखन का लालच देकर नचाती थीं तो कृष्ण जी बांसुरी की धुन से सभी को मंत्र मुग्ध कर देते थे । कृष्ण ने गोकुल में रहते हुए [[पूतना-वध|पूतना]], [[शकटासुर]], तृणावर्त आदि असुरों को मोक्ष प्रदान किया ।
 
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गोकुल से आगे २ किमी. दूर [[महावन]] है । लोग इसे पुरानी गोकुल कहते हैं । यहाँ चौरासी खम्भों का मन्दिर, नन्देश्वर महादेव, मथुरा नाथ, द्वारिका नाथ आदि मन्दिर हैं।
 
गोकुल से आगे २ किमी. दूर [[महावन]] है । लोग इसे पुरानी गोकुल कहते हैं । यहाँ चौरासी खम्भों का मन्दिर, नन्देश्वर महादेव, मथुरा नाथ, द्वारिका नाथ आदि मन्दिर हैं।

०८:३९, ८ अगस्त २००९ का अवतरण

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गोकुल

यह स्थल मथुरा से 15 किमी की दूरी पर यमुना के पार स्थित है । यह वैष्णव तीर्थ है । विश्वास किया जाता है कि भगवान कृष्ण ने यहाँ गौएँ चरायी थीं । कहा जाता है, श्री कृष्ण के पालक पिता नन्दजी का यहाँ गोष्ठ था । संप्रति वल्लभाचार्य, उनके पुत्र गुसाँई बिट्ठलनाथजी एवं गोकुलनाथजी को बैठकें है । मुख्य मन्दिर गोकुलनाथ जी का है । यहाँ वल्लभकुल के चौबीस मन्दिर बतलायें जाते हैं । महालिंगेश्वर तन्त्र में शिवशतनाम स्तोत्र के अनुसार महादेव गोपीश्वर का यह स्थान है:

गोकुले गोपिनीपूज्यो गोपीश्वर इतीरित: ।


यह ब्रज का बहुत महत्वपूर्ण स्थल है । यहीं पर रोहिणी ने बलराम को जन्म दिया था । बलराम देवकी के सातवें गर्भ में थे जिन्हें योगमाया ने आकर्षित करके रोहिणी के गर्भ में डाल दिया था । मथुरा में कृष्ण के जन्म के बाद कंस के सभी सैनिकों को नींद आ गयी और वासुदेव की बेड़ियाँ खुल गयी थीं । तब वासुदेव कृष्ण को गोकुल में नन्दराय के यहाँ छोड़ आये थे । नन्दराय जी के घर लाला का जन्म हुआ है, धीरे धीरे यह बात गोकुल में फैल गयी । सभी गोपगण, गोपियाँ, गोकुलवासी खुशियाँ मनाने लगे । सभी घर, गलियाँ चौक आदि सजाये जाने लगे और बधाइयाँ गायी जाने लगीं । कृष्ण और बलराम का पालन पोषण यही हुआ और दोनों अपनी लीलाओं से सभी का मन मोहते रहे । घुटनों के बल चलते हुए दोनों भाई को देखना गोकुलवासियों को सुख देता था, वहीं माखन चुराकर कृष्ण ब्रज की गोपिकाओं के दुखों को हर लेते थे । गोपियाँ कृष्ण जी को छाछ और माखन का लालच देकर नचाती थीं तो कृष्ण जी बांसुरी की धुन से सभी को मंत्र मुग्ध कर देते थे । कृष्ण ने गोकुल में रहते हुए पूतना, शकटासुर, तृणावर्त आदि असुरों को मोक्ष प्रदान किया ।


गोकुल से आगे २ किमी. दूर महावन है । लोग इसे पुरानी गोकुल कहते हैं । यहाँ चौरासी खम्भों का मन्दिर, नन्देश्वर महादेव, मथुरा नाथ, द्वारिका नाथ आदि मन्दिर हैं।