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गोदावरी / Godavari
गौतम मुनि बहुत वर्षों तक वहाँ तपस्या में लगे रहे। तदनन्तर अम्बिकापति भगवान शिव ने उनकी तपस्या से संतुष्ट हो उन्हें अपने पार्षदगणों के साथ दर्शन दिया और कहा- 'वर माँगो।' तब मुनिवर गौतम ने भगवान त्र्यंम्बक को साष्टांग प्रणाम किया और बोले-'सबका कल्याण करने वाले भगवन! आपके चरणों में मेरी सदा भक्ति बनी रहे और मेरे आश्रम के समीप इसी पर्वत के ऊपर आपको मैं सदा विराजमान देखूँ, यही मेरे लिये अभीष्ट वर है।' मुनि के ऐसा कहने पर भक्तों को मनोवाञ्छित वर देने वाले पार्वतीवल्लभ भगवान शिव ने उन्हें अपना सामीप्य प्रदान किया। भगवान त्र्यम्बक उसी रूप से वहीं निवास करने लगे। तभी से वह पर्वत त्र्यंम्बक कहलाने लगा। सुभगे! जो मानव भक्तिभाव से गोदावरी-गंगा में जाकर स्नान करते हैं, वे भवसागर से मुक्त हो जाते हैं। जो लोग गोदावरी के जल में स्नान करके उस पर्वत पर विराजमान भगवान त्र्यम्बक का विविध उपचारों से पूजन करते हैं, वे साक्षात महेश्वर हैं। मोहिनी! भगवान त्र्यम्बक का यह माहात्म्य मैंने संक्षेप से बताया है। तदनन्तर जहाँ तक गोदावरी का साक्षात दर्शन होता है, वहाँ तक बहुत-से पुण्यमय आश्रम हैं। उन सब में स्नान करके देवताओं तथा पितरों का विधिपूर्वक तर्पण करने से मनुष्य मनोवांछित कामनाओं को प्राप्त कर लेता है। भद्रे! गोदावरी कहीं प्रकट हैं और कहीं गुप्त हैं; फिर आगे जाकर पुण्यमयी गोदावरी नदी ने इस पृथ्वी को आप्लावित किया है। मनुष्यों की भक्ति से जहाँ वे महेश्वरी देवी प्रकट हुई हैं, वहाँ महान पुण्यतीर्थ है जो स्नान मात्र से पापों को हर लेने वाला है। तदनन्तर गोदावरी देवी पंचवटी में जाकर भली-भाँति प्रकाश में आयी हैं। वहाँ वे सम्पूर्ण लोकों को उत्तम गति प्रदान करती हैं। विधिनन्दिनी! जो मनुष्य नियम एवं व्रत का पालन करते हुए पंचवटी की गोदावरी में स्नान करता है, वह अभीष्ट कामनाओं को प्राप्त कर लेता है। जब त्रेता युग में भगवान श्री राम अपनी धर्मपत्नी सीता और छोटे भाई लक्ष्मण के साथ आकर रहने लगे, तब से उन्होंने पंचवटी को और भी पुण्यमयी बना दिया। शुभे! इस प्रकार यह सब गौतमाश्रम का माहात्म्य कहा गया है।