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एक बार श्री कृष्ण गोप [[गोपी|गोपियों]] के साथ गायें चराते हुए गोवर्धन पर्वत की तराई में पहुच गये। वहाँ उन्होनें देखा कि हजारों गोपियाँ गोवर्धन पर्वत के पास छप्पन प्रकार के भोजन रखकर बडे उत्साह से नाच गाकर उत्सव मना रही है । श्री कृष्ण के पूछने पर गोपियो ने बताया कि मेघों के स्वामी [[इन्द्र]] को प्रसन्न रखने के लिए प्रतिवर्ष यह उत्सव होता है । कृष्ण बोले यदि देवता प्रत्यक्ष आकर भोग लगाएँ तब तो इस उत्सव का कुछ मूल्य है। गोपियाँ बोली तुम्हें इन्द्र की निन्दा नही करनी चाहीए । इन्द्र की कृपा से ही वर्षा होती है । श्री कृष्ण बोले- वर्षा तो गोवर्धन पर्वत के कारण होती है हमें इन्द्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहीए। सभी गोप ग्वाल अपने अपने घरों में पकवान ला लाकर श्रीकृष्ण की बताई विधी से गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे । इन्द्र को जब पता चला कि इस वर्ष मेरी पूजा न कर गोवर्धन की पूजा की जा रही है । तो वह बहुत कुपित हुए और मेघों को आज्ञा दी कि [[गोकुल]] में जाकर इतना पानी बरसाये कि वहाँ पर प्रलय का दृश्य उत्पन्न हो जाए। मेघ इन्द्र की आज्ञा से मूसलाधार वर्षा करने लगे। श्रीकृष्ण ने सब गोप गोपियो को आदेश दिया कि सब अपने अपने गाय बछडो को लेकर गोवर्धन पर्वत की तराई में पहुच जाए। गोवर्धन ही मेघो से रक्षा करेंगे । सब गोप गोपियाँ अपने अपने गाय बछडो, बैलो को लेकर गोवर्धन पर्वत की तराई में पहुँचने लगे । श्री कृष्ण ने गोर्वधन पर्वत को अपनी कनिष्ट उँगली पर धारण कर छाता सा तान दिया । सब ब्रजवासी सात दिन तक गोवर्धन पर्वत की शरण में रहें । सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियो पर एक जल की बूँद भी नही पडी । [[ब्रह्मा]]जी ने इन्द्र को बताया कि पृथ्वी पर श्री कृष्ण ने जन्म ले लिया है । उनसे तुम्हारा बैर लेना उचित नही है । श्रीकृष्ण अवतार की बात जानकर इन्द्रदेव अपनी मूर्खता पर बहुत लज्जित हुए तथा भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा याचना करने लगे । श्रीकृष्ण  ने सातवे दिन गोवर्धन पर्वत को नीचे रखकर ब्रजवासियो से कहा कि अब तुम प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मानाया करो । तभी से यह पर्व के रूप में प्रचलित हो गया ।  
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एक बार श्री कृष्ण गोप [[गोपी|गोपियों]] के साथ गायें चराते हुए गोवर्धन पर्वत की तराई में पहुच गये। वहाँ उन्होनें देखा कि हजारों गोपियाँ गोवर्धन पर्वत के पास छप्पन प्रकार के भोजन रखकर बडे उत्साह से नाच गाकर उत्सव मना रही है । श्री कृष्ण के पूछने पर गोपियो ने बताया कि मेघों के स्वामी [[इन्द्र]] को प्रसन्न रखने के लिए प्रतिवर्ष यह उत्सव होता है । कृष्ण बोले यदि देवता प्रत्यक्ष आकर भोग लगाएँ तब तो इस उत्सव का कुछ मूल्य है। गोपियाँ बोली तुम्हें इन्द्र की निन्दा नही करनी चाहीए । इन्द्र की कृपा से ही वर्षा होती है । श्री कृष्ण बोले- वर्षा तो गोवर्धन पर्वत के कारण होती है हमें इन्द्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहीए। सभी गोप ग्वाल अपने अपने घरों में पकवान ला लाकर श्रीकृष्ण की बताई विधी से गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे । इन्द्र को जब पता चला कि इस वर्ष मेरी पूजा न कर गोवर्धन की पूजा की जा रही है । तो वह बहुत कुपित हुए और मेघों को आज्ञा दी कि [[गोकुल]] में जाकर इतना पानी बरसाये कि वहाँ पर प्रलय का दृश्य उत्पन्न हो जाए। मेघ इन्द्र की आज्ञा से मूसलाधार वर्षा करने लगे। श्रीकृष्ण ने सब गोप गोपियो को आदेश दिया कि सब अपने अपने गाय बछडो को लेकर गोवर्धन पर्वत की तराई में पहुच जाए। गोवर्धन ही मेघो से रक्षा करेंगे । सब गोप गोपियाँ अपने अपने गाय वछ्ड़ो, बैलो को लेकर गोवर्धन पर्वत की तराई में पहुँचने लगे । श्री कृष्ण ने गोर्वधन पर्वत को अपनी कनिष्ट उँगली पर धारण कर छाता सा तान दिया । सब ब्रजवासी सात दिन तक गोवर्धन पर्वत की शरण में रहें । सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियो पर एक जल की बूँद भी नही पड़ी । [[ब्रह्मा]]जी ने इन्द्र को बताया कि पृथ्वी पर श्री कृष्ण ने जन्म ले लिया है । उनसे तुम्हारा बैर लेना उचित नही है । श्रीकृष्ण अवतार की बात जानकर इन्द्रदेव अपनी मूर्खता पर बहुत लज्जित हुए तथा भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा याचना करने लगे । श्रीकृष्ण  ने सातवे दिन गोवर्धन पर्वत को नीचे रखकर ब्रजवासियो से कहा कि अब तुम प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मानाया करो । तभी से यह पर्व के रूप में प्रचलित हो गया ।  
  
  
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१०:५९, १७ नवम्बर २००९ का अवतरण

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गोवर्धन पूजा / Govardhan Pooja

गोवर्धन पूजा, मथुरा

दीपावली के दूसरे दिन सायंकाल ब्रज में गोवर्धन पूजा का विशेष आयोजन होता है । भगवान श्रीकृष्ण ने आज ही के दिन इन्द्र का मानमर्दन कर गिरिराज पूजन किया था । इस दिन मन्दिरों में अन्नकूट किया जाता है । सायंकाल गोबर के गोवर्धन बनाकर पूजा की जाती है ।

पूजन विधी

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा का उत्सव मनाया जाता है । इस दिन अन्नकूट आदि उत्सव भी सम्पन्न होते है । यह ब्रजवासियों का मुख्य त्यौहार है । अन्नकूट या गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारम्भ हुई । गाय, बैल आदि पशुओ को स्नान कराकर फूल माला, धूप, चन्दन आदि से उनका पूजन किया जाता है । गायों को मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारी जाती है तथा प्रदक्षिणा की जाती है । गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर जल, मौली, रोली, चावल, फूल दही तथा तेल का दीपक जलाकर पूजा करते है तथा परिक्रमा करते है ।

कथा

गोवर्धन पूजा, मथुरा

एक बार श्री कृष्ण गोप गोपियों के साथ गायें चराते हुए गोवर्धन पर्वत की तराई में पहुच गये। वहाँ उन्होनें देखा कि हजारों गोपियाँ गोवर्धन पर्वत के पास छप्पन प्रकार के भोजन रखकर बडे उत्साह से नाच गाकर उत्सव मना रही है । श्री कृष्ण के पूछने पर गोपियो ने बताया कि मेघों के स्वामी इन्द्र को प्रसन्न रखने के लिए प्रतिवर्ष यह उत्सव होता है । कृष्ण बोले यदि देवता प्रत्यक्ष आकर भोग लगाएँ तब तो इस उत्सव का कुछ मूल्य है। गोपियाँ बोली तुम्हें इन्द्र की निन्दा नही करनी चाहीए । इन्द्र की कृपा से ही वर्षा होती है । श्री कृष्ण बोले- वर्षा तो गोवर्धन पर्वत के कारण होती है हमें इन्द्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहीए। सभी गोप ग्वाल अपने अपने घरों में पकवान ला लाकर श्रीकृष्ण की बताई विधी से गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे । इन्द्र को जब पता चला कि इस वर्ष मेरी पूजा न कर गोवर्धन की पूजा की जा रही है । तो वह बहुत कुपित हुए और मेघों को आज्ञा दी कि गोकुल में जाकर इतना पानी बरसाये कि वहाँ पर प्रलय का दृश्य उत्पन्न हो जाए। मेघ इन्द्र की आज्ञा से मूसलाधार वर्षा करने लगे। श्रीकृष्ण ने सब गोप गोपियो को आदेश दिया कि सब अपने अपने गाय बछडो को लेकर गोवर्धन पर्वत की तराई में पहुच जाए। गोवर्धन ही मेघो से रक्षा करेंगे । सब गोप गोपियाँ अपने अपने गाय वछ्ड़ो, बैलो को लेकर गोवर्धन पर्वत की तराई में पहुँचने लगे । श्री कृष्ण ने गोर्वधन पर्वत को अपनी कनिष्ट उँगली पर धारण कर छाता सा तान दिया । सब ब्रजवासी सात दिन तक गोवर्धन पर्वत की शरण में रहें । सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियो पर एक जल की बूँद भी नही पड़ी । ब्रह्माजी ने इन्द्र को बताया कि पृथ्वी पर श्री कृष्ण ने जन्म ले लिया है । उनसे तुम्हारा बैर लेना उचित नही है । श्रीकृष्ण अवतार की बात जानकर इन्द्रदेव अपनी मूर्खता पर बहुत लज्जित हुए तथा भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा याचना करने लगे । श्रीकृष्ण ने सातवे दिन गोवर्धन पर्वत को नीचे रखकर ब्रजवासियो से कहा कि अब तुम प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मानाया करो । तभी से यह पर्व के रूप में प्रचलित हो गया ।




साँचा:पर्व और त्यौहार