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श्री [[गुप्त]] के पुत्र का नाम था घटोत्कच। घटोत्कच ( 300-319 ई०) के लगभग शासक बना। यह तत्सामयिक शक साम्राज्य का सेनापति था। उस समय [[शक]] जाति ब्राह्मणों से बलात् क्षत्रिय बनने को आतुर थी। शक राज परिवार को तो क्षत्रियत्व हस्तगत हो चला था, किन्तु साधारण राजकर्मी अपनी क्रूरता के माध्यम से क्षत्रियत्व पाने को इस प्रकार लालायित हो उठे कि उनके अत्याचारों से ब्राह्मण त्रस्त हो चले। उन्होंने क्षत्रियों की शरण ली, किन्तु वे उनसे पहले ही रुष्ट थे अतः ब्राह्मणों की रक्षा न हो सकी । ठीक इसी जाति-विपणन के काका रोर में पड़कर एक ब्राह्मण की रक्षा हेतु घटोत्कच ने कर्ण और सुवर्ण नामक दो शक मल्लों को मार गिराया । यह उनका स्पष्ट राजद्रोह था शकराज क्रोध से फुँकार उठे। लगा, मानों ब्राह्मण और क्षत्रिय अब इस धरती से उठ जायेंगे। ‘मधुमती’ नामक क्षत्रिय कन्या से इसका पाणिग्रहण हुआ। [[लिच्छवी|लिच्छिवियों]] ने घटोत्कच को शरण दी, साथ ही उनके पुत्र [[चंद्रगुप्त प्रथम]] के साथ अपनी पुत्री कुमारदेवी का विवाह भी कर दिया। | श्री [[गुप्त]] के पुत्र का नाम था घटोत्कच। घटोत्कच ( 300-319 ई०) के लगभग शासक बना। यह तत्सामयिक शक साम्राज्य का सेनापति था। उस समय [[शक]] जाति ब्राह्मणों से बलात् क्षत्रिय बनने को आतुर थी। शक राज परिवार को तो क्षत्रियत्व हस्तगत हो चला था, किन्तु साधारण राजकर्मी अपनी क्रूरता के माध्यम से क्षत्रियत्व पाने को इस प्रकार लालायित हो उठे कि उनके अत्याचारों से ब्राह्मण त्रस्त हो चले। उन्होंने क्षत्रियों की शरण ली, किन्तु वे उनसे पहले ही रुष्ट थे अतः ब्राह्मणों की रक्षा न हो सकी । ठीक इसी जाति-विपणन के काका रोर में पड़कर एक ब्राह्मण की रक्षा हेतु घटोत्कच ने कर्ण और सुवर्ण नामक दो शक मल्लों को मार गिराया । यह उनका स्पष्ट राजद्रोह था शकराज क्रोध से फुँकार उठे। लगा, मानों ब्राह्मण और क्षत्रिय अब इस धरती से उठ जायेंगे। ‘मधुमती’ नामक क्षत्रिय कन्या से इसका पाणिग्रहण हुआ। [[लिच्छवी|लिच्छिवियों]] ने घटोत्कच को शरण दी, साथ ही उनके पुत्र [[चंद्रगुप्त प्रथम]] के साथ अपनी पुत्री कुमारदेवी का विवाह भी कर दिया। | ||
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०१:४८, ५ मार्च २०१० का अवतरण
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घटोत्कच (गुप्त काल) / Ghatotkach (Gupt period)
श्री गुप्त के पुत्र का नाम था घटोत्कच। घटोत्कच ( 300-319 ई०) के लगभग शासक बना। यह तत्सामयिक शक साम्राज्य का सेनापति था। उस समय शक जाति ब्राह्मणों से बलात् क्षत्रिय बनने को आतुर थी। शक राज परिवार को तो क्षत्रियत्व हस्तगत हो चला था, किन्तु साधारण राजकर्मी अपनी क्रूरता के माध्यम से क्षत्रियत्व पाने को इस प्रकार लालायित हो उठे कि उनके अत्याचारों से ब्राह्मण त्रस्त हो चले। उन्होंने क्षत्रियों की शरण ली, किन्तु वे उनसे पहले ही रुष्ट थे अतः ब्राह्मणों की रक्षा न हो सकी । ठीक इसी जाति-विपणन के काका रोर में पड़कर एक ब्राह्मण की रक्षा हेतु घटोत्कच ने कर्ण और सुवर्ण नामक दो शक मल्लों को मार गिराया । यह उनका स्पष्ट राजद्रोह था शकराज क्रोध से फुँकार उठे। लगा, मानों ब्राह्मण और क्षत्रिय अब इस धरती से उठ जायेंगे। ‘मधुमती’ नामक क्षत्रिय कन्या से इसका पाणिग्रहण हुआ। लिच्छिवियों ने घटोत्कच को शरण दी, साथ ही उनके पुत्र चंद्रगुप्त प्रथम के साथ अपनी पुत्री कुमारदेवी का विवाह भी कर दिया।