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[[अंग]] देश की राजधानी। [[विष्णु पुराण]] 4, 18, 20 से इंगित होता है कि पृथुलाक्ष के पुत्र चंप ने इस नगरी को बसाया था--'ततश्चंपो यशच्म्पां निवेश्यामास'। जनरल कनिंघम के अनुसार भागलपुर के समीपस्थ ग्राम चंपा नगर और चंपापुर प्राचीन चंपा के स्थान पर ही बसे हैं। [[महाभारत]] शान्ति॰ 5, 6-7 के अनुसार [[जरासंध]] ने [[कर्ण]] को चंपा या मालिनी का राजा मान लिया था, 'प्रीत्या ददौ स कर्णाय मालिनीं नगरीनथ। अंगेषु नरशार्दूल स राजाऽऽसीत् सपत्नजित्॥<br /> पालयामास चम्पां च कर्ण: परबलार्दन:। दुर्योधनस्यानुमते तवापि विदितं तथा'॥<br /> [[वायु पुराण]] 99, 105-106; [[हरिवंश पुराण]] 31, 49 और [[मत्स्य पुराण]] 48, 97 के अनुसार भी चंपा का दूसरा नाम मालिनी था। चंपा को चंपपुरी भी कहा गया है--'चंपस्य तु पुरी चंपा या मालिन्यभवत् पुरा'। इससे यह भी सूचित होता है कि चंपा का पहला नाम मालिनी था और चंप नामक राजा ने उसे चंपा नाम दिया था। दिग्घनिकाय 1,111; 2,235 के वर्णन के अनुसार चंपा अंग देश में स्थित थी।  
 
[[अंग]] देश की राजधानी। [[विष्णु पुराण]] 4, 18, 20 से इंगित होता है कि पृथुलाक्ष के पुत्र चंप ने इस नगरी को बसाया था--'ततश्चंपो यशच्म्पां निवेश्यामास'। जनरल कनिंघम के अनुसार भागलपुर के समीपस्थ ग्राम चंपा नगर और चंपापुर प्राचीन चंपा के स्थान पर ही बसे हैं। [[महाभारत]] शान्ति॰ 5, 6-7 के अनुसार [[जरासंध]] ने [[कर्ण]] को चंपा या मालिनी का राजा मान लिया था, 'प्रीत्या ददौ स कर्णाय मालिनीं नगरीनथ। अंगेषु नरशार्दूल स राजाऽऽसीत् सपत्नजित्॥<br /> पालयामास चम्पां च कर्ण: परबलार्दन:। दुर्योधनस्यानुमते तवापि विदितं तथा'॥<br /> [[वायु पुराण]] 99, 105-106; [[हरिवंश पुराण]] 31, 49 और [[मत्स्य पुराण]] 48, 97 के अनुसार भी चंपा का दूसरा नाम मालिनी था। चंपा को चंपपुरी भी कहा गया है--'चंपस्य तु पुरी चंपा या मालिन्यभवत् पुरा'। इससे यह भी सूचित होता है कि चंपा का पहला नाम मालिनी था और चंप नामक राजा ने उसे चंपा नाम दिया था। दिग्घनिकाय 1,111; 2,235 के वर्णन के अनुसार चंपा अंग देश में स्थित थी।  
 
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महाभारत वन॰ 308, 26 से सूचित होता है कि चंपा गंगा के तट पर बसी थी--'चर्मण्वत्याश्च यमुनां ततो गंगा जगाम ह, गंगाया सूत विषयं चंपामनुययौ पुरीम्'। प्राचीन कथाओं से सूचित होता है कि इस नगरी के चतुर्दिक् चंपक वृक्षों की मालाकार पंक्तियाँ थीं। इस कारण इसे चंपमालिनी या केवल मालिनी कहते थे। जातक कथाओं में इस नगरी का नाम कालचंपा भी मिलता है। महाजनक जातक के अनुसार चंपा मिथिला से साठ कोस दूर थी। इस जातक में चंपा के नगर द्वार तथा प्राचीर का वर्णन है जिसकी [[जैन]] ग्रंथों से पुष्टि होती है। औपपातिक सूत्र में नगर के परकोटे, अनेक द्वारों, उद्यानों, प्रसादों आदि के बारे में निश्चित निर्देश मिलते हैं। जातक-कथाओं में चंपा की श्री, समृद्धि तथा यहाँ के सम्पन्न व्यापारियों का अनेक स्थानों पर उल्लेख है। चंपा में कौशेय या रेशम का सुन्दर कपड़ा बुना जाता था जिसका दूर-दूर तक भारत से बाहर दक्षिणपूर्व एशिया के अनेक देशों तक व्यापार होता था। (रेशमी कपड़े की बुनाई की यह परम्परा वर्तमान भागलपुर में अभी तक चल रही है) चंपा के व्यापारियों ने हिन्द-चीन पहुँचकर वर्तमान अनाम के प्रदेश में चंपा नामक भारतीय उपनिवेश स्थापित किया था। साहित्य में चंपा का कुणिक [[अजातशत्रु]] की राजधानी के रूप में वर्णन है। औपपातिक-सूत्र में इस नगरी का सुंदर वर्णन है और नगरी में पुष्यभद्र की विश्रामशाला, वहाँ के उद्यान में अशोक वृक्षों की विद्यमानता और कुणिक और उसकी महारानी धारिणी का चंपा से सम्बन्ध आदि बातों का उल्लेख है। इसी ग्रंथ में तीर्थंकर [[महावीर]] का चंपा में समवशरण करने और कुणिक की चंपा की यात्रा का भी वर्णन है। चंपा के कुछ शासनाधिकारियों जैसे गणनायक, दंडनायक और तालवार के नाम भी इस सूत्र में दिए गए हैं। जैन उत्तराध्ययन सूत्र में चंपा के धनी व्यापारी पालित की कथा है जो महावीर का शिष्य था। जैन ग्रंथ विविधतीर्थकल्प में इस नगरी की जैनतीर्थों में गणना की गई है। इस ग्रंथ के अनुसार बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्य का जन्म चंपा में हुआ था। इस नगरी के शासक करकंडु ने कुंड नामक सरोवर में पार्श्वनाथ की मूर्ति की प्रतिष्ठापना की थी। वीरस्वामी ने वर्षाकाल में यहाँ तीन रातें बिताई थीं। कुणिक ([[अजातशत्रु]]) ने अपने पिता बिंबसार की मृत्यु के पश्चात राजगृह छोड़कर यहाँ अपनी राजधानी बनाई थी। युवानच्वांग (वाटर्स 2,181) ने चंपा का वर्णन अपने यात्रावृत्त में किया है। दशकुमार चरित्र 2, चरित्रों में चंपा का उल्लेख है जिससे ज्ञात होता है कि यह नगरी 7वीं शती ई॰ या उसके बाद तक भी प्रसिद्ध थी। चंपापुर के पास कर्णगढ़ की पहाड़ी (भागलपुर के निकट) है जिससे महाभारत  के प्रसिद्ध योद्धा अंगराज [[कर्ण]] से चंपा का सम्बन्ध प्रकट होता है। यहाँ का समीपतम रेल स्टेशन नाथनगर, भागलपुर से सेँट मील है। चंपा इसी नाम की नदी और [[गंगा]] के संगम पर स्थित थी।
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महाभारत वन॰ 308, 26 से सूचित होता है कि चंपा गंगा के तट पर बसी थी--'चर्मण्वत्याश्च यमुनां ततो गंगा जगाम ह, गंगाया सूत विषयं चंपामनुययौ पुरीम्'। प्राचीन कथाओं से सूचित होता है कि इस नगरी के चतुर्दिक् चंपक वृक्षों की मालाकार पंक्तियाँ थीं। इस कारण इसे चंपमालिनी या केवल मालिनी कहते थे। जातक कथाओं में इस नगरी का नाम कालचंपा भी मिलता है। महाजनक जातक के अनुसार चंपा मिथिला से साठ कोस दूर थी। इस जातक में चंपा के नगर द्वार तथा प्राचीर का वर्णन है जिसकी [[जैन]] ग्रंथों से पुष्टि होती है। औपपातिक सूत्र में नगर के परकोटे, अनेक द्वारों, उद्यानों, प्रसादों आदि के बारे में निश्चित निर्देश मिलते हैं। जातक-कथाओं में चंपा की श्री, समृद्धि तथा यहाँ के सम्पन्न व्यापारियों का अनेक स्थानों पर उल्लेख है। चंपा में कौशेय या रेशम का सुन्दर कपड़ा बुना जाता था जिसका दूर-दूर तक भारत से बाहर दक्षिणपूर्व एशिया के अनेक देशों तक व्यापार होता था। (रेशमी कपड़े की बुनाई की यह परम्परा वर्तमान भागलपुर में अभी तक चल रही है) चंपा के व्यापारियों ने हिन्द-चीन पहुँचकर वर्तमान अनाम के प्रदेश में चंपा नामक भारतीय उपनिवेश स्थापित किया था। साहित्य में चंपा का कुणिक [[अजातशत्रु]] की राजधानी के रूप में वर्णन है। औपपातिक-सूत्र में इस नगरी का सुंदर वर्णन है और नगरी में पुष्यभद्र की विश्रामशाला, वहाँ के उद्यान में अशोक वृक्षों की विद्यमानता और कुणिक और उसकी महारानी धारिणी का चंपा से सम्बन्ध आदि बातों का उल्लेख है। इसी ग्रंथ में तीर्थंकर [[महावीर]] का चंपा में समवशरण करने और कुणिक की चंपा की यात्रा का भी वर्णन है। चंपा के कुछ शासनाधिकारियों जैसे गणनायक, दंडनायक और तालवार के नाम भी इस सूत्र में दिए गए हैं। जैन उत्तराध्ययन सूत्र में चंपा के धनी व्यापारी पालित की कथा है जो महावीर का शिष्य था। जैन ग्रंथ विविधतीर्थकल्प में इस नगरी की जैनतीर्थों में गणना की गई है। इस ग्रंथ के अनुसार बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्य का जन्म चंपा में हुआ था। इस नगरी के शासक करकंडु ने कुण्ड नामक सरोवर में पार्श्वनाथ की मूर्ति की प्रतिष्ठापना की थी। वीरस्वामी ने वर्षाकाल में यहाँ तीन रातें बिताई थीं। कुणिक ([[अजातशत्रु]]) ने अपने पिता बिंबसार की मृत्यु के पश्चात राजगृह छोड़कर यहाँ अपनी राजधानी बनाई थी। युवानच्वांग (वाटर्स 2,181) ने चंपा का वर्णन अपने यात्रावृत्त में किया है। दशकुमार चरित्र 2, चरित्रों में चंपा का उल्लेख है जिससे ज्ञात होता है कि यह नगरी 7वीं शती ई॰ या उसके बाद तक भी प्रसिद्ध थी। चंपापुर के पास कर्णगढ़ की पहाड़ी (भागलपुर के निकट) है जिससे महाभारत  के प्रसिद्ध योद्धा अंगराज [[कर्ण]] से चंपा का सम्बन्ध प्रकट होता है। यहाँ का समीपतम रेल स्टेशन नाथनगर, भागलपुर से सेँट मील है। चंपा इसी नाम की नदी और [[गंगा]] के संगम पर स्थित थी।
 
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०४:०८, १८ जनवरी २०१० का अवतरण

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चंपा / Champa

अंग देश की राजधानी। विष्णु पुराण 4, 18, 20 से इंगित होता है कि पृथुलाक्ष के पुत्र चंप ने इस नगरी को बसाया था--'ततश्चंपो यशच्म्पां निवेश्यामास'। जनरल कनिंघम के अनुसार भागलपुर के समीपस्थ ग्राम चंपा नगर और चंपापुर प्राचीन चंपा के स्थान पर ही बसे हैं। महाभारत शान्ति॰ 5, 6-7 के अनुसार जरासंध ने कर्ण को चंपा या मालिनी का राजा मान लिया था, 'प्रीत्या ददौ स कर्णाय मालिनीं नगरीनथ। अंगेषु नरशार्दूल स राजाऽऽसीत् सपत्नजित्॥
पालयामास चम्पां च कर्ण: परबलार्दन:। दुर्योधनस्यानुमते तवापि विदितं तथा'॥
वायु पुराण 99, 105-106; हरिवंश पुराण 31, 49 और मत्स्य पुराण 48, 97 के अनुसार भी चंपा का दूसरा नाम मालिनी था। चंपा को चंपपुरी भी कहा गया है--'चंपस्य तु पुरी चंपा या मालिन्यभवत् पुरा'। इससे यह भी सूचित होता है कि चंपा का पहला नाम मालिनी था और चंप नामक राजा ने उसे चंपा नाम दिया था। दिग्घनिकाय 1,111; 2,235 के वर्णन के अनुसार चंपा अंग देश में स्थित थी।


महाभारत वन॰ 308, 26 से सूचित होता है कि चंपा गंगा के तट पर बसी थी--'चर्मण्वत्याश्च यमुनां ततो गंगा जगाम ह, गंगाया सूत विषयं चंपामनुययौ पुरीम्'। प्राचीन कथाओं से सूचित होता है कि इस नगरी के चतुर्दिक् चंपक वृक्षों की मालाकार पंक्तियाँ थीं। इस कारण इसे चंपमालिनी या केवल मालिनी कहते थे। जातक कथाओं में इस नगरी का नाम कालचंपा भी मिलता है। महाजनक जातक के अनुसार चंपा मिथिला से साठ कोस दूर थी। इस जातक में चंपा के नगर द्वार तथा प्राचीर का वर्णन है जिसकी जैन ग्रंथों से पुष्टि होती है। औपपातिक सूत्र में नगर के परकोटे, अनेक द्वारों, उद्यानों, प्रसादों आदि के बारे में निश्चित निर्देश मिलते हैं। जातक-कथाओं में चंपा की श्री, समृद्धि तथा यहाँ के सम्पन्न व्यापारियों का अनेक स्थानों पर उल्लेख है। चंपा में कौशेय या रेशम का सुन्दर कपड़ा बुना जाता था जिसका दूर-दूर तक भारत से बाहर दक्षिणपूर्व एशिया के अनेक देशों तक व्यापार होता था। (रेशमी कपड़े की बुनाई की यह परम्परा वर्तमान भागलपुर में अभी तक चल रही है) चंपा के व्यापारियों ने हिन्द-चीन पहुँचकर वर्तमान अनाम के प्रदेश में चंपा नामक भारतीय उपनिवेश स्थापित किया था। साहित्य में चंपा का कुणिक अजातशत्रु की राजधानी के रूप में वर्णन है। औपपातिक-सूत्र में इस नगरी का सुंदर वर्णन है और नगरी में पुष्यभद्र की विश्रामशाला, वहाँ के उद्यान में अशोक वृक्षों की विद्यमानता और कुणिक और उसकी महारानी धारिणी का चंपा से सम्बन्ध आदि बातों का उल्लेख है। इसी ग्रंथ में तीर्थंकर महावीर का चंपा में समवशरण करने और कुणिक की चंपा की यात्रा का भी वर्णन है। चंपा के कुछ शासनाधिकारियों जैसे गणनायक, दंडनायक और तालवार के नाम भी इस सूत्र में दिए गए हैं। जैन उत्तराध्ययन सूत्र में चंपा के धनी व्यापारी पालित की कथा है जो महावीर का शिष्य था। जैन ग्रंथ विविधतीर्थकल्प में इस नगरी की जैनतीर्थों में गणना की गई है। इस ग्रंथ के अनुसार बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्य का जन्म चंपा में हुआ था। इस नगरी के शासक करकंडु ने कुण्ड नामक सरोवर में पार्श्वनाथ की मूर्ति की प्रतिष्ठापना की थी। वीरस्वामी ने वर्षाकाल में यहाँ तीन रातें बिताई थीं। कुणिक (अजातशत्रु) ने अपने पिता बिंबसार की मृत्यु के पश्चात राजगृह छोड़कर यहाँ अपनी राजधानी बनाई थी। युवानच्वांग (वाटर्स 2,181) ने चंपा का वर्णन अपने यात्रावृत्त में किया है। दशकुमार चरित्र 2, चरित्रों में चंपा का उल्लेख है जिससे ज्ञात होता है कि यह नगरी 7वीं शती ई॰ या उसके बाद तक भी प्रसिद्ध थी। चंपापुर के पास कर्णगढ़ की पहाड़ी (भागलपुर के निकट) है जिससे महाभारत के प्रसिद्ध योद्धा अंगराज कर्ण से चंपा का सम्बन्ध प्रकट होता है। यहाँ का समीपतम रेल स्टेशन नाथनगर, भागलपुर से सेँट मील है। चंपा इसी नाम की नदी और गंगा के संगम पर स्थित थी।