चतुर्वेदी इतिहास 20

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
जन्मेजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०५:४५, २४ अप्रैल २०१० का अवतरण
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

माथुर चतुर्वेदी ब्राह्मणों का इतिहास-लेखक, श्री बाल मुकुंद चतुर्वेदी

स्वतंत्रता संग्राम के रणबांकुरे बीर

स्वाधीनता संग्रामों में चतुर्वेदी किसी से पीछे नहीं रहे हैं । सैकड़ों हजारों की संख्या में देशभक्त वीरों ने अनेकों विपत्तियाँ उठाकर भी देश के लिये अपना तन मन धन उत्सर्ग करने के प्रशंसनीय प्रयास किये हैं, किन्तु स्वतंत्रता सेनानियों में बहुत कम लोगों के नाम अंकित होने से बड़ी संख्या में ऐसे योद्धा रह गये हैं, जो वास्तव में सम्मान पाने के अधिकारी हैं । वे अभी भी निर्लिप्त और आत्मसंतुष्ट हैं । इनमें से कुछ अति बिशिष्ट शीर्षस्थ बन्धुओं के ही विवरण यहाँ देना पर्याप्त है-

श्री मदनमोहनजी चतुर्वेदी- इन्हें मथुरा क्षेत्र का महात्मा गांधी कहें तो कुछ अतिशयोक्ति न होगी । लंबा खादी का कुर्ता चौड़ा माथा मधुर उदार स्नेह युक्त वाणी हर सहायता को आगे उद्यत उनका सहज शालीन आत्मीय व्यक्तित्व था । उनका जीवनकाल 1950-2037 वि0 था कर्मठ विचारों और गतिविधियों में अग्रगामी होने के कारण वे 20 वर्ष आयु में ही राष्ट्रीय आन्दोलनों में कूद पड़े । 1970 वि0 के जबरन कुलो भर्ती के अमानवीय अत्याचार का उनने डट कर विरोध किया । 1974 वि0 में वे आनंदी प्रसाद चौबे के साथ होमरूल लीग के जिला प्रचार कर्ता बने । 71 से 75 तक सेवा समिति राष्ट्रीय सेवा संगठन के संस्थापक हुए जिसमें अदम्य उत्साह और सेवा भावना के साथ यमुना बाढ़ इनफ्लूऐंजा दीन अनाथों की चिकित्सा आदि में अग्रवर्तो रहे । 76 में रौलटएक्टविरोध 78 में विदेशी माल वहिष्कार तथा जिला के अंग्रेज कलक्टर फ्रीमेन्टल से संघर्ष जम कर छेड़ दिया । इसी वर्ष आप राष्ट्रीय प्रचार करते हुए गोरखपुर में गिरफ्तार हुए तथा सरकार के विरूद्ध षडयंत्र में 1 कठोर कारागार तथा 2 मास की काल कोठरी की सजा से दंडित हुए । लखनऊ जेल में इन्हें भारी बेड़िया पहिना कर ऊपर से मोटी तख्तियों की माला गले में डाल कर चक्की पिसाई में लगाया गया जिससे छाती में गहिरा जखम हो जाने पर श्री मालवीय जी कुंजरू आदि नेताओं द्वारा सरकार को कड़ी भाषा में प्रतारित करने पर इन्हें इस यातना से मुक्त किया गया । इस समय लखनऊ जिला जेल में इनके साथी श्री पुरूषोत्तम दास टंडन, मोतीलाल नेहरू, जबाहरलाल नेहरू, गणेश शंकर विद्यार्थी, मोहनलाल नेहरू, श्यामलाल नेहरू, राजेन्द्र बसु, मोहनलाल सक्सेना, के0 पी0 जाफरी, रवीन्द्रवाशिम, रामनाथ गुर्टू, तसद्दुत हुसेन, रामेश्वर सहायसिंह, बालमुकुन्द बाजपेयी, अब्दुलवाही आदि चोटी के नेता पचीसियों थे जो जेल में श्री चतुर्वेदी की महान इज्जत करते थे तथा अपनी श्रद्धा के प्रमाण रूप इनकी डायरी में इन सभी ने अपने हस्ताक्षर अर्पित किये हैं- यह डायरी अभी भी इनके परिवार के जनों के पास एक अमूल्य धरोहर है । इसी वर्ष आप मथुरा रामलीला केस में भी गिरफ्तार हुए ।

1989 वि0 में इन्होंने कटरा केशवदेव पर प्राचीन मन्दिर की भूमि पर घोषियों द्वारा अनधिकृत जोर जबरदस्ती से कब्जा जमा लेने को कठोरता से निरस्त कर भारी प्राणघात की जोखम उठाई इस उपलक्ष में श्री रायकृष्णदासजी ने यह सारी भूमि इन्हें प्रदान कर इस पर कोई सार्वजनिक संस्थान बनाने का इनसे आग्रह किया ये पत्र इनके वंशजों के पास है । अपनी त्याग भावना में अनुप्राणित हो तब इन्होंने इसे लेने से स्पष्ट निषेध कर दिया और इस हेतु महामना श्री मदनमोहन मालवीय जी को प्रेरित कर वहाँ जन्म भूमि ट्रस्ट महाविद्यालय, सेवा समिति, बाढ़ रिलीफ फंड, महामारी सेवा दलों आदि में सक्रिय रहे । राष्ट्रीय चोटी के नेताओं और क्रान्तिकारियों को भी वे उसी भाव से सहायता पहुँचाते थे । यूनानी और आयुर्वेद में विशेष रूचि होने के कारण वे चिकित्सा और जवाहराती औषधि रसरसायन बनाने में भी परम सिद्ध हस्त थे । उनकी अध्ययन और अनुभव से सिद्ध चिकित्सा शत प्रतिशत लाभकारी होती थी । अपने प्रियजनों से उनका व्यवहार बहुत ही उदार और अहंभाव शून्य था । वास्तव में वे अपने समाज के एक महान देव दुर्लभ पुरूष थे ।

श्री राधामोहन चतुर्वेदी- राजनैतिक क्षेत्र में आपका बड़ा सम्मान है । राष्ट्रीय विचारों के कट्टर समर्थक होने से आप 1987 वि0 में मथुरा जिले के आंदोलन के डिक्टेटर बन कर जेल गये । 97 98 तथा 99 संवतों में आप फिर कारागार वासी हुए तथा श्री द्वारिकाधीश प्रभु की प्रबंध व्यवस्था से आराम लेकर अब शांत जीवन व्यतीत कर रहे हैं ।

श्री गोपालप्रशाद चतुर्वेदी- इन्हें मथुरा की राजनीति का सुभाष बोस कहना उप युक्त होगा । गांधी आन्दोलनों में अनेक बार जेल यात्रा करने के साथ ही ये क्रान्तिकारियों और हिन्दू सभा गोरक्षा आदि के भी उत्कट समर्थक थे । कितने ही क्रांतिकारियों से इनका निकट सम्पर्क था हिन्दू मित्र पत्र निकाला, भारत में अंग्रेज और गोबध पुस्तिका लिखी और मथुरा के कसाई खाने को जन्म भुमि के समीप से हटाने का बम्बई से आन्दोलन उठाया, महाराज अलवर के राज्योतिषी बन कर मान और द्रव्य कमाया जिसे समाज के लोग युग-युग स्मर्ण करते रहेंगे । इनके अतिरिक्त राष्ट्र समर्पित लोगों में प्रथम श्री गौरीदत्त, श्री भगवानादत्त, श्री कैलाशनाथ 'वायकाट', श्री कर्मवीर कुन्दनलाल, श्री कल्याण सोती, श्री सुन्दरश्याम, श्री रघुनाथप्रशाद घी वाले, श्री विश्वनाथ वैद्य, श्री आनन्दीप्रशाद, श्री कालीचरन, श्री मनोहलाल, श्री गुरूदत्त, श्री त्रिलोकीनाथ, श्रीनाथ, बालमुकुंद, डा0 प्रयागनाथ, दौलतराम सराफ, रामू चौबे, पृथ्वीनाथ, बल्देवजी आदि अनगिनती ऐसे चतुर्वेदी रणवांकुरे देश भक्त कार्यकर्ता हैं जिनके यश और सेवायें पार्टी राजनीति में कुचल कर अज्ञात प्राय होती जा रही है ।

संगठन और समाज सुधार आन्दोलन

माथुरों की संगठन प्रणाली प्राचीन है । ऋग्वेद के समय ये मंडलवृद्ध रहते थे, शत्रुघ्न काल में ये गोत्र कुल संगठनों में तथा वज्रनाभ के समय ये श्रेणीबद्ध (थोक धड़े अखाड़े और मुहल्लों के संगठनों में) अपने सामाजिक क्रिया कलापों में अनुशासनवद्ध रखते थे । गजनवी गोरी मुगल कालों में भी इनके पंचपंचायतों सरदारों के संगठन अपने क्षेत्रों में रक्षा सहायता और समाज सुधार के प्रयासौं को निरन्तर सम्हाले रहते थे । इस समय के निर्णय 'लिखतम' नाम के लेखों में अंकित कर सुरक्षित रक्खे जाते थे, जिन पर सभी प्रमुख सरदारों के हस्ताक्षर रहते थे । ऐसी अनेक लिखतमें मोटे कागजों का आलेखित अभी प्राप्त हैं । श्रीमती माथुर सभा- 1910 वि0 में पहिली बार पंचायतों ने मिलकर माथुर सभा का रूप ग्रहण किया । 1958 वि0 में इसकी एक विशिष्ट समिति ने सरकार द्वारा माथुर चौबों को तीसरे दर्जे का ब्राह्मण घोषित करने का उपक्रम किया तब इस समिति ने इसका विरोध किया प्रमाण संग्रह किये और एक लघु पुस्तिका 'माथुर चन्द्रोदय' छपवाई ।

1969 वि0 में माथुर सभा ने कुरीतियों के सुधार हेतु कुछ 'रसमबन्दी' नियम प्रचारित किये । इस समय के लोग सीधेसादे बड़ों का मान करने वाले और पंचों का फैसला परमेसुर की आज्ञा मानते थे, किन्तु कुछ लोग महा उच्घ्रंखल ऐंडें बैंड़े और बिगारा भी थे जो रसमों को तोड़ने में ही अपनी अहंमन्यता को सफल मानते थे । इन्होंने माथुर सभा को प्राण हीन किया और तब-

श्री माथुर चतुर्वेद परिषद- का जन्म 1975 वि0 में पांड़े श्री डिब्बारामजी के बाड़े (होली दरवाजा) में उनही की अध्यक्षता में हुआ । तब से सुगठित रह कर इस संगठन ने अनेक उपयोग कार्य किये । उस समय इसके कार्यकर्ता सरदार और समाज सेवा ब्रती कितने ही विनम्र जन थे । इनमें श्री क्याखूबजी (चार हजार भाइयों का जूतों का गुलाम हूं एसी विनम्र भावना युक्त), श्री नटवर जी (समाज सेवा हेतु जीवन समर्पित) , श्री गणेशीलाल जी चौधरी (हम तो आपके सिपाही हैं एसी भावना युक्त), निर्लोभ सेवा संचालक गंगाराम (उचाढा), नीत लाल चौधरी के कार्य प्रमुख हैं । अनेक उतार चढावों के बाद परिषद आगे बढ़ती रही और 2005 वि0 में यह रजिष्टर्ड सभा बनी किन्तु इतने पर भी समाज के अवांछनीय कीटाणुओं ने इसका पीछा न छोड़ा । समाज में अभी भी कुछ घातक कुचकी तत्व एसे हैं जो सच्चे कार्यकर्ताओं को पदों पर देखकर दाँतपीसते हैं, उन्हैं अनेक दुष्प्रचारों से लांछित और हतोत्साहित करके पदों से हटजाने को विवश करते हैं, तथा धींगधसेड़ी से आप सभा पर अधिकार करके उसकी सम्पत्तियों कार्यक्रमों यहाँ तक कि कागजात रजिष्टरों आदि को भी उदरस्थ करके संस्था को अपना बुभुक्षा ग्रास बना कर ही चैंन मानते हैं । सामाजिक सम्पत्तियों को लपक कर खाने वाले इन युग दानवों ने पुस्तकालय बगीची अखाड़े बरतन एतिहासिक दस्तावेजैं पाठशालायें औषधालय सभा के फर्श फर्नीचर लालटैंने सरकारी पत्राचार आदि न जाने क्या क्या चवाये और डकारे हैं, तथा इतने पर भी वे समाज के सामने अकड़ते हुंकराते अपनी काली करतूतों पर गर्व ही करते रहते हैं । वर्तमान पीढ़ी को संस्याओं को जीवित रखने के लिये इनका उपचार सोचना ही होगा ।

चतुर्वेदी महासभा- 1952 वि0 में आगरा नगर में विद्यार्थियों द्वारा प्रवासी बन्धुओं की संस्था 'चतुर्वेदी महासभा' का जन्म हुआ । इसने 'चतुर्वेदी' नाम की एक पत्रिका भी निकाली जो अभी चल रही है । इस संस्था ने भी अनेक झंझावात झेले हैं । विशेष सम्पत्ति और विरोध होने पर मुकदमे बाजी की भी नौवतें आयीं, परन्तु अब यह सावधान सुव्यवस्थित और चेतना शील है । सभा ने विद्यार्थियों विधवाओं अनाथों को मासिक वृत्तियाँ देने का भी सत्प्रयास जारी रक्खा है ।

संगठन महासभा- 1985 वि0 में सक्रिय हुई यह 'मीठे चौबे' वर्ग की संस्था है । 2025 वि0 में इसने अपना विराट अधिवेशन मथुरा में आयोजित किया जिसमें 'मीठे कडुए एकीकरण' पर अच्छा वायुमंडल बना परन्तु फिर यह अपनी ही उपेक्षा से मोह निद्रा में ग्रस्त हो गयी । चतुर्वेद सेवा समिति- 1975 वि0 में ही मथुरा में इस श्रेष्ठ सेवाब्रती संस्था का गठन हुआ । इसमें उस समय के प्राय: सभी प्रतिष्ठित परिवारों के सदस्य सरदार मुनैंदार लोग स्वयं सेवक थे । मथुरा के मेले यमद्वितीया स्नान, रामजी द्वारा मेला आदि की स्वयं सेवक दल द्वारा प्रबन्ध व्यवस्था इसने आरम्भ की, जो आज पुलिस के सरकारी तन्त्र के हाथों में जा पहुँची है । पुस्तकालय औषधालय अनाथ रोगी दुर्बलों की सेवा के साथ इस कर्मठ संस्थान ने ब्रज में पड़े भयानक अकाल में भी गाँव-गाँव में जाकर गायों को चारा, भूखों को सस्ता अनाज वस्त्र औषधि आदि वितरण की सराहनीय व्यवस्था चलायी । मथुरा के चौबों की यह आदर्श राष्ट्र भावनामयी मानव कल्याण भावी तथा ब्रज मण्डल के संरक्षण प्रयास युक्त सर्वोपरि प्रगतिशील उदारवादी संस्था थी, जो इतना महान कार्य करने पर भी न जाने क्यों कालग्रास हो गयी । चतुर्वेद किशोर संघ-2019 वि0 में गठित चतुर्वेदी युवकों और विद्यार्थियों की यह श्रेष्ठ कर्मठ संस्था थी । इसने पुस्तकालय वाचनालय शिक्षा, सम्मेलन, कोचिंग नाइट स्कूल आदि कई कार्यक्रम चलाये जिनसे समाज को काफी लाभ मिला । 2021 वि0 में इसका रजिष्ट्रेशन भी हुआ । फिर भी यह चिरनिद्रा में सो गयी ।

श्री माथुर चतुर्वेद विद्यालय- श्रीमती माथुर सभा द्वारा 1960 वि0 में दान दाताओं से चन्दा सहायता 'दान पुस्तिका' द्वारा संग्रह कर इस विद्यालय की जाति सेवा लगनशील स्वाभिमानी युगचिन्तकों द्वारा स्थापना की गई । 1975 वि0 से स्वनाम धन्य उदार दानवीर चौबे बैगनाथ जी ने इसका संचालन अपने संरक्षण में समिति के आधीन लिया । वे इस महान सांस्कृतिक सेवा और उत्थान कार्य से इतने प्रभावित हुए कि 1982 वि0 में इन्होंने एक लाख नौ हजार रूपया लगा कर विद्यालय भवन तथा स्थायी फंड की व्यवस्था करके इसका रजिष्टर्ड ट्रस्ट बोर्ड बना दिया तथा अपने बाद अपनी सारी सम्पत्ति चल अचल कलकत्ते की वेजनाथ चौबे कम्पनी आदि सभी विद्यालय को दान में दे दिये जाने की लिखा पढ़ी करदी । यह एक आदर्श दान था जो अनुदार स्वार्थी सार्वजनिक धन भक्षियों कंजूसौं के मुंह पर एक कसकर लगाया हुआ तमांचा कहा जाना चाहिये । श्री बैज नाथजी के बाद विद्यालय का नाम 'श्री बैजनाथ चौबे चतुर्वेद विद्यालय' हुआ, उन्हें चतुर्वेद सेवा समिति ने स्वर्ण पदक देकर सम्मानित किया, जिसके परवर्ती काल में यह संस्थान फिर दलबन्दी स्वार्थ परता और आपा धापी के दलदल में फंसती चली गयी है । चतुर्वेद महिला शिल्प विद्यालय- 2007 वि0 में इस संस्थान का रजिष्ट्रेशन चतुर्वेदी समाज की नारियों में शिक्षा शिल्प कला और स्वावलंवन की भावना को जाग्रत करने के हेतु से हुआ । यह संस्था जीवित है, किन्तु अपने लक्ष के अनुसार इस के कार्यक्रमों का आधिकारिक विकास नहीं हुआ है ।

चतुर्वेदी युवक संघ- यह संस्था 1980 वि0 में लगभग गठित हुई, जिसने बाल विवाह अनमेल विवाह आदि के उन्मूलन हेतु घनघोर प्रचारकार्य किया ।

चतुर्वेद सेवा समाज- सांस्कृति नवनिर्माण हेतु प्रयासी सुगठित संगठन है, जिसने 2038 वि0 में संगठित होकर मथुरा में होलिकोत्सव के अवसर पर यज्ञ, धार्मिक ग्रंथ पाठ, सन्त सम्मेलन, श्री यमुना छप्पन भोग, गुणीजन सम्मान, नगर शोभा यात्रा, धार्मिक उपदेश प्रवचन लीला प्रदर्शन आदि के सुरम्य गौरवान्वित श्रेष्ठतम कार्यक्रमों का आयोजन करने के साथ ही अपनी एक स्मारिका भी प्रकाशित की है जो नयी पीढ़ी को एक उपयोगी मानसिक पोषक आहार प्रदान करने वाली है । चतुर्वेद प्रगति मंडल, बम्बई- इस उपयोगी संस्थान का गठन 2032 वि0 में चतुर्वेदी समाज के बम्बई निवासी शिक्षित उद्योग प्रवीण अर्थ व्यवस्था सम्पन्न स्वाभिमानी महात्वाकांक्षी बन्धुओं द्वारा हुआ है । इस संस्थान ने 2042 वि0 में बम्बई जैसे महानगर में बड़े शालीन रूप से एक 'चतुर्वेदी महोत्सव' का सफल आयोजन किया था, जो समाज के लिये एक दिशा निर्देश है । इस अवसर पर संस्थान की एक स्मारिका भी भव्य रूप में प्रकाशित हुई है । संस्थान के शिक्षा व्यवसाय और उद्योग सम्पन्न, उदीयमान विकास अध्यवसायी, सदस्यों से समाज को नयी दिशा में गति पाने की महान आशायें हैं ।

माथुरों के सरग्राही जीवन का लोक सन्मान

'हाथ के सच्चे, बात के सच्चे, जीभ के सच्चे और लंगोटी के सच्चे' चौबेजी के चार सर्वोच्च गुण हैं । सुरीली भाँग ठंडाई, तरांतर भोजन, बगीची, संस्कार, मृदुव्यवहार, मनमौजी जीवन ने इन्हें लोक आकर्षण का केन्द्र बनाया है । श्री कृष्ण का गीता में निर्धारित सात्विक: आहार 'आयु सत्व बलारोग्य सुख प्रीति विबर्धन: रस्या स्निग्धा स्थिरा हृद्या आहार: सात्विक: प्रिय:' इनका खीर, रबड़ी, खोआ, खुरचन, माँखन, मलाई, सिखरन, चूरमां दाल बाटी प्रधान आहार हैं । बलिष्ठ विशाल देह बाले पूर्वज 15,20,25 सेर तक तरमाल छक जाते थे । 1945 वि0 में श्री स्वामी विवेकानन्द ने लिखा है- हमारे यहाँ, मथुरा के चौबे कुश्तीगीर आते हैं- लड्डू कचौड़ी खाते हैं, मौज से 5-7 सेर भोजन खा लेते हैं । 'भाधव मिश्र निबंधमाला' के सम्पादक श्री सुदर्शनजी ने लिखा है- मथुरा के पंडे चौबे हैं । ये बड़े हृष्ट पुष्ट देखने में सुश्रीक और स्वभाव के बड़े मधुर हैं । बड़े मिलनसार हैं । कटु बचन कहना व उदास होना तो ये जानते ही नहीं । लड्डू पेड़ा विजया के पूर्ण भक्त हैं । दण्ड पेलना कुश्ती करना यही इनका नित्य कर्म है । 'जै जमुना मैया की' इसी पर चारों वेद की समाप्ति है । एक चौबे को 4-5 सेर लड्डू खाना और आधमन दूध पीना कोई बड़ी बात नहीं है । इनकी स्त्रियाँ भी सुन्दरी और स्वभाव की सुशील मृदु भाषिणी होती है । गीत इतने मधुर सुरूचि पूर्ण और कवित्वमय होते हैं कि और जगह के कवियों को इनसे शिक्षा मिल सकती है । माथुरी भाषा की मधुरिमाँ तो जग प्रसिद्ध है । मथुरा के चौबे और उनकी स्त्रियाँ उसी विशुद्ध सुललित ब्रज भाषा में बोलते हैं । जिसमें सूरदास और कविवर बिहारीलाल ने अपनी रचनायें की हैं । जबकि इसी क्षेत्र के दुकानदारों और साधारण जनों की बोलचाल भ्रष्ट और विचित्र सी है । कि उसका कोई नाम नहीं बताया जा सकता ।

नयीधारा के प्रगतिगामी चतुर्वेदी

नवीन युग की चेतना के साथ हमारे चतुर्वेदी समाज ने भी अपने कदम बढ़ाये हैं । वैज्ञानिक तकनीकी और चार्टर्ड एकाउन्टेन्सी के साथ अर्थप्रबन्ध, उद्योग( प्रा.लि.) और लि0 कम्पनियों की स्थापना और संचालन में भी महान प्रगति हुई है । इस युग की यह एक महत्वपूर्ण क्रान्ति है । केवल बम्बई क्षेत्र में ही हमारे समाज के अनेकों उद्योग विस्तारत परिवार है । मथुरा तथा अन्य जगहों पर विभिन्न व्यवसायों में सरकारी नौकरियाँ, प्रोफेसर, वकील, डाक्टर, डाइरेक्टर, मैनेजर, चार्टर्ड एकाउन्टैन्ट, परामर्शदाता, ट्रान्सपोर्ट संचालक, कपड़ा, औषधि, साईकिल, विद्युत सामान, इलेक्ट्रानिक, इन्जनीयरी, टेक्नीशियन, बस सर्विस, टैक्सी सर्विस, होटल लघु उद्योगों आदि में हमारे हजारों चतुर्वेद बन्धु अग्रगामी हो रहे हैं जो अगली दशद्वियों में समाज को आदर्श उच्च समाज बनाने में पूर्णत: सफल हो सकेंगे ।

सांसद और विधायक

कुछ सांसदों और विधायकों के नाम भी समाज की गौरवमयी सूची में हैं सांसद श्री रोहनलाल जी उप रेल मंत्री एटा, श्रीमती विद्यावती एटा, श्रीनरेशचन्द कानपुर विधायक-श्रीललितकिशोर जयपुर भू0पू0 मंत्री, श्री भुवनेशजी कोटा, श्री सुखदा मिश्र इटावा, श्री शतीश चन्द्र महाराष्ट्र, आदि समाज को इन सभी पर गर्व है ।

राजनैतिक क्षितिज पर ऊँचे उठते राष्ट्रसेवा ब्रती चतुर्वेदी

राष्ट्र की महान सेवा साधना में चतुर्वेदी आज भी अग्रवर्ती हैं यह 'तथ्य हाल ही के मथुरा में आयोजित प्रधान मन्त्री श्री राजीव गांधी द्वारा निर्देशित संचालित राष्ट्रीय प्रशिक्षण सेवादल के महत्वपूर्ण अवसर पर जनता के सामने आया है । सन् 85 के काँग्रेस शताब्दी समारोह बम्बई के अवसर पर देश के शीर्षस्थ नेता श्री राजीवगांधी ने काँग्रेस सेवादल को उसका पूर्ण गौरवमय स्वरूप देने के लिये एक रचनात्मक कर्मठ कार्यकर्ता प्रशिक्षण की घोषणा की, उसी को साकार रूप देने को बिहार और उत्तर प्रदेश के काँग्रेस (इ0) के होनहार राष्ट्रकर्मियों को देश के नेतृत्व का ठोस प्रशिक्षण देने के लिये पटना नगर में एक शिविर लगाने की आयोजना थी, जिसमें देश के इन राज्यों के 40 वर्ष की आयु तक के स्नातक योग्यता वाले चुने हुए निष्ठावान कार्यकर्ताओं, विधायकों, सांसदों को 150 की संख्या में एकत्र करके उन्हें देश सेवा ब्रत के ज्ञान और कार्यक्षमता में पारंगत किये जाने की योजना थी । मथुरा के श्री महेशपाठक चतुरर्वेदी हाईकामन द्वारा इस शिविर के सयोजक निर्धारक किये गये, उन्होंने इस शिविर में मथुरा को आयोजित करने का निर्णय हाईकमान से लिया और इस हेतु बिहार और उत्तर प्रदेश के 150 सदस्यों की सूची स्वीकृत करायी । यह एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी जिसमें महान प्रबन्ध व्यवस्था साधनों और कार्यक्रमों को सुनियोजित ढंग से सफल बनाने की पूर्णक्षमता अपेक्षित थी । प्रसन्नता की बात यह है कि हमारे निष्ठावान लगनशील कठिन परिश्रमी और सूझबूझ वाले आत्मविश्वासी तरूण बन्धु ने इस सारी जिम्मेदारी को बड़े सुन्दर और सफल ढंग से सम्पन्न करके अपने राष्ट्र सेवा धर्म के पालन की क्षमता का सुयोग्य परिचय दिया । इस आयोजन में प्रमुख सेवा व्यवस्था चतुर्वेदियों के हाथों में थी ।

मथुरा नगर के भूतेश्वर स्थानीय चतुर्वेदियों के ही एक विस्तृत भूभाग पर 'इन्दिरा नगर' के रूप में एक सुन्दर सुसज्जित शिविर की रचना की गयी, जिसमें भव्य पंडाल और तिरंगे झन्डों की शोभा अवर्णनीय थी । 21 अप्रेल से 6 मई 86 तक चलने वाले इस 15 दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का उद्घाटन प्रधान मंत्री श्री राजीवगाँधी ने 25 अप्रेल को किया । अखिल भारतीय सेवादल (ई) के संचालकों के अतिरिक्त जो प्रमुख राजनैतिक हस्तियाँ आयी उनमें प्रधानमंत्री श्री राजीवगाँधी, अध्यक्ष अ0 भा0 कां0 क0 (ई), श्री तारिख अनवर अध्यक्ष अ0 भा0 कां0 (ई) सेवादल, श्री के0 सी0 पन्त केन्द्रीय मंत्री, श्री बीरबहादुर मुख्यमंत्री उ0प्र0, श्री महावीर प्रशाद अध्यक्ष उ0प्र0, कां क0 (ई) श्री आर0 एल0 भाटिया महामन्त्री अ0 भां0 काँ0 क0 (ई), श्री हरदेव जोशी मुख्यमंत्री राजस्थान, श्री अशोक गहलोत अध्यक्ष कां0 क0 राजस्थान, श्री नवलकिशोर शर्मा महामंत्री अ0 भा0 कां0 क0, (ई) श्री सीताराम केसरी केन्द्रीय संसद राज्यमंत्री, डा0 संजयसिंह परिवहन मन्त्री उ0प्र0, श्री नरेन्द्रसिंह चौधरी कृषि मन्त्री उ0प्र0, श्री जगदम्बिका पाल अध्यक्ष कांग्रेस सेवा दल उ0 प्र0, श्री सन्तोसिंह अध्यक्ष उत्तर प्रदेश युवक कां0 क0, श्री नरेन्द्रदेव पांडे शिविर अधिष्ठाता, श्री के0 वी0 पणिक्कर महामंत्री अ0 भा0 काँ0 क0 तथा प्राय: सभी विधायक और सांसद सदस्य सहभागी थे । इस प्रकार बड़े सफल रूप में यह शिविर देश का सर्व प्रारंभिक आदर्श व्यवस्था पूर्ण सुनियोजित आयोजन सम्पन्न बनकर चतुर्वेदियों की देश सेवा को राष्ट्र की प्रगति में उजागर बनाने वाला महत्वपूर्ण शिविर रहा, जो अपनी गरिमां के साथ देश के इतिहास में अपना एक विशिष्ट अमर स्थान बनाकर सदैव चिरस्मणीय रहेगा । चतुर्वेदी समाज की यह अद्यतन राष्ट्रीय सेवा क्षेत्र की गरिमामयी उपलब्धि है । हमारी सर्वतोमुखी प्रगति के तथ्य यह बतलाते हैं कि स्वाधीनता की प्राप्ति के बाद हमारे माथुर चतुर्वेदी समाज ने एक नयी करबट बदली है । प्रत्येक प्रगति के क्षेत्र में हमारे उत्साही जनों ने आगे बढ़कर अपना राष्ट्रीय दायित्व बड़ी शालीनता के साथ निभाया है । प्रगति के नये अग्रगामी पथों में वे कहीं भी रूके झिझके या पिछड़े नहीं रहे हैं ।

नयी चेतना की इस जानकारी का संक्षिप्त परिचय देना भी यहाँ समाज के बन्धुजनों के लिये उपयोगी होगा । स्वाधीनता की स्थापना के बाद हमारे कर्मठ नेता देश भक्त और उत्साही कार्यकर्ता प्रत्येक कार्यक्षेत्र में आगे बढ़े हैं । काँग्रेस (ई0) सोशलिष्ट, कम्यूनिष्ट, जनता पार्टी, भारतीय जनता पार्टी, लोकदल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक, संघ,किसान, मजदूर आन्दोलनों आदि प्राय: सभी दलों और संगठनों में हमारा सर्वेतोमुखी विचार स्वातंत्र्य पूर्णयोगदान रहा है । श्री जवाहरलाल नेहरू, बल्लभ भाई पटेल, श्री राजेन्द्र बाबू, श्री इन्दिरा गाँधी, गोविन्दवल्लभ पंत, श्री मदनमोहन मालवीय, चौधरी चरणसिंह, श्री जगजीवनराम, श्रीराममनोहर लोहिया, श्री जयप्रकाशजी तथा वर्तमान में माननीय राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंहजी तथा राजीवगांधी आदि सभी राष्ट्र के कर्णधारों से हमारे समाज के सुमधुर प्रेरणात्मक और सद्भावात्मक संबंध रहे हैं । देश के नरेश सत्ता उन्मूलन प्रजा परिषदों के आन्दोलनों , जमीदारी उन्मूलन, सहकारी संगठनों की गतिविधियों, कृषि विकास, हिन्दी प्रचार, राष्ट्रीय अखंडता और एकता के प्रचार में हमारे कर्मठजन अनेक प्रदेशों में प्रचार रत रहे हैं । चुनाव प्रचार अभियानों के चतुर्वेदी सर्वोपरि संचालक माने जाते हैं । अपने गीत-संगीत प्रदर्शन काव्य रचनाओं भाषणों से जनता को बांध लेते हैं । तथा जिधर चतुर्वेदी दल की उपस्थिति होती है उसकी जीत निश्चित मान ली जाती है । इस प्रचार तंत्र की श्रेष्ठता काव्य के रचना कारण बड़े बड़े नेता और पार्टियां इन्हें दूर दूर तक अपने क्षेत्रों में सम्मान के साथ बुलाते हैं ।

देश की सभी भाषायें बोलने और उन भाषा भाषियों के साथ हमारे अति सुमधुर तीर्थ पोराहित्य सबंध हैं । प्रत्येक प्रान्त के भारतीय प्रजाजन तथा विदेशों के पर्यटक जिज्ञासु जन भी जो ब्रज भूमि और मथुरा दर्शन को आते हैं । उन्हें उन्हीं की भाषा में ब्रज की दर्शनीय वस्तुओं का ज्ञान, ब्रजभक्ति और मथुरा की गरिमा का महत्व तथा अपने चरित्र को ऊँचा उठाने विश्व बंधुता और भक्ति की पावनता को धारण करने का मार्ग दर्शन कराते हुए हमारे जन देश की भावनात्मक एकता और चरित्र निर्माण मानव प्रेम को राष्ट्रीय लक्ष बनाने के लिये पूर्ण प्रयत्न रत रहते हैं । हमारी धार्मिक सहिष्णुता तो इतनी प्रबल है कि हमारा कभी किसी धार्मिक वर्ग मुसलमान ईसाई जैन सिख आदि से असह्म विरोध या संघर्ष नहीं हुआ । सभी मतों के लोग हमारा समान रूप से आदर करते हैं ।

स्वतंत्रता सेनानियों में हमारे पर्याप्त देश भक्त सम्मानित हैं । राष्ट्र सेवा कार्यों में सेना में, पुलिस में, न्यायालयों में, रेल यातायात, परिवहन, विश्वविद्यालयों मेडीकल सेवाओं, सहकारी वितरण सेवाओं में हमारे शतश: बन्धु उद्योगरत हैं । रेडियों, टेलीविजन, वीड़ियों काव्य और साहित्य की नई धाराओं में हम आगे ही बढ़ते जा रहे हैं । ब्रज भाषा हमारी माधुर्य और गरिमामयी मातृ भाषा है । अत: उसके रचना क्षेत्र पर हमारा सर्वाधिक प्रमुख अधिकार है । ब्रजभाषा आज भी हमारे घरों में विशुद्ध रूप में बोली जाती हैं । तथा ब्रज भाषा की काव्य रचना के सर्वोपरि जगमगाते सामर्थशाली कवि और साहित्य निर्माता हमारे ही समाज में है । हमारे कथाकार ब्रजभाषा भाषी विद्वान देश के प्रत्येक भागों में बुलाये जाकर अपनी रसमयी ललित ललाम ब्रज वाणी से जन जन को मोहित और आत्म विभोर बनाते हैं । अभिनय के क्षेत्र में रामलीला का प्रचार हमारे समाज में दिन दूना बढ़ता जा रहा है । तथा हमारे शिक्षा क्षेत्र में सुयोग्य विद्वान संस्कृत विद्यालयों में, संगीत, साहित्य के गृह प्रशिक्षण (ट्यूशनों) में बड़ी योग्यता से कार्य कर रहे हैं । धार्मिक स्थानों में हमारे सुयोग्य प्रबंधक प्रशासकों का मान हैं मथुरा द्वारिकाधीश , ब्रन्दावन के बांकेबिहारी, दाऊजी के दाऊजी मंदिर, गोकुल नाथराजा के गोकुलठाकुर, तथा अन्य अनेक धर्मशालाओं पाठशालाओं कार्यशालाओं में हमारे बन्धु सम्मान के साथ प्रतिष्ठित हैं ।

नयी प्रगति के युग में हमारी सम्पत्तियाँ भी बढ़ी हैं । मथुरा में ही चतुर्वेदियों की मार्केटें, निजी भवनों की संख्या वृद्धि, दुकान फैक्ट्रियाँ, निजी उद्योग, होटल, पर्यटन व्यवसाय, तथा मथुरा से बाहर बम्बई, कलकत्ता, दिल्ली, लखनऊ, कानपुर, बंगलोर, कोचीन, आगरा आदि में भी हमारे भाइयों के अनेकानेक उद्योग व्यवसाय और राष्ट्र के 20 सूत्री कार्यक्रम में परिवार नियोजन में ग्राम पंचायतों के विकास तथा हरित शान्ति में 'हमारे कार्यकर्ताओं को सुदृढ़ निष्ठा है । चतुर्वेदी राजकीय अधिकारियों की यह विशेष गुणवत्ता है कि वे अपने कार्यों में नैतिकता को मान देते हुए रिश्वत भ्रष्टाचार सिफारिशों से दूर रहे हैं । कठिन परिश्रम, सूझ बूझ, कर्तव्यनिष्ठा स्वामिभक्ति, आत्म सम्मान, सदाचार और सहज त्याग संयम और निर्लोभी जीवन के साथ जीने में चतुर्वेदी, अटूट पैतृक निष्ठा रहते हैं । यही कारण है जो इन्हें सब जगह सहज सम्मान आदर और श्रेष्ठता की उपलब्धि स्वाभविक रूप से हो जाती है । चतुर्वेदी बालक स्वरूपवान स्वस्थ प्रतिभा सम्पन्न निर्भीक, और साहस शौर्य से सम्पन्न होते हैं ।

महिलाबर्ग- माथुरों का महिला वर्ग अनेक गुणों से सम्पन्न है । सुमधुर भाषण गीत संगीत की सरसता, ब्रजवाणी का लालित्य गृह कर्मों की कुशलता, काव्य रचना की सहज स्वाभाविक प्रवृति, धार्मिक आचरणों का निष्ठा के साथ पालन, तीर्थ यात्रा दान ब्रत देव अर्चना आदि में दृढ़ विश्वास इनके प्रमुख गुण हैं । इनमें रूढ़ियों का पालन कुरीतियों का सृजन सीमा से अधिक औदार्य अशिक्षा आदि कुछ प्राचीन त्रुर्टिया भी हैं जो नयी पीढ़ी की बालिकाओं में जो शिक्षा के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ती रही हैं इनमें ये लुप्त होती जा रही हैं । महिलाओं में नवीन सभ्यता के पहिनावे उत्तम कोटि के भोजन पदार्थ, गहनों से लादे जाने की अभिलाषा कमी बालकों को शिक्षित बनाने साफ सुथरा रखने गृह सज्जा की उत्तमता में भी ये प्रयत्नशील होती जा रही है ।

चतुर्वेदियों ने कंस के मेला की नवीन प्रभावशाली आत्म प्रतिष्ठामय रूप दिया है, सेवा समाज द्वारा होली के अवसर पर भव्य संत सम्मेलन यज्ञ कथा लीला नगर यात्रा आदि के साथ महान महोत्सव का प्रति वर्ष आयोजन प्रसंशनीय है ।ब्रज यात्रा के भक्त श्रद्धालुओं को सर्व सुविधा सम्पन्न यात्रा व्यवस्था (रसोड़ा) की परम्परा का विकास भी एक नये युग की मांग की पूर्ति कहा जा सकता हैं जिससे यजमान के साथ पुरोहित का अति विश्वस्त घनिष्ट पारिवारिक संबंध जैसा श्रद्धाफल स्नेहभाव के साथ ही पुरोहित कर्म में धनापार्जन की भी यथा वृद्धि हो जाती है । समाज के विकास के पथ में बढ़ते स्वरूप का यह चित्र उत्साहवर्धक है ।

दिशाबोध

श्री माथुर चतुर्वेदी ब्राह्मण समाज की लंबी इतिहास यात्रा के बाद आगे हमारा क्या कर्तव्य है तथा इतिहास से हमें क्या प्रेरणायें लेनी हैं यह विचारना आवश्यक हो जाता है । हमारे सामने आज अनेक चुनौतियाँ हैं जिनका हमें सामना और निराकरण करना है । हमारे यशस्वी पूर्वज जिस पथ से आगे बढ़कर आदर्श के शिखर पर पहुँचे हैं वही हमारा श्रेय पंथ है । इस चेतना को आगे बढ़ाने में हमें इन प्रयासों की अवधारणा निष्ठा के साथ करनी है ।

(1) स्वधर्म रक्षण- माथुरों का कुल धर्म प्रभु श्री कृष्ण द्वारा उपदिष्ट श्री मद्भागवत एकादश स्कंध तथा गीता 3,12,17,18 आध्यायों में वर्णित वैदिक स्मार्त सनातन धर्म है, जिसमें यज्ञ दान तप इष्ट आराधना गुरूजन सेवा नित्यकर्म उपासना कुलमर्यादाओं के रक्षण के साथ सत्य दया क्षमा स्थैर्य अस्तेय आचार विचारों की पवित्रता तृष्णा और बिलास व्यसनों का त्याग लोक शिक्षा के प्रयास आदि श्रेष्ठ मानवी गुणा का विकास अपने जीवन में करना है । समय पर संस्कार संध्या, गायत्रीजाप, आचमन प्राणायाम मार्जन अघमर्षण भूतशुद्धि सूर्याध्यदान उपस्थान आदि का नित्य आचरण दैनिक ज्ञान चर्चा हमारा परम पालनीय ब्रह्मकर्म में होना चाहिये, इनसे ब्रह्मतेज आत्मबल देवत्व और लोक प्रतिष्ठा की महती स्थिति प्राप्त होती है ।

(2) विकृत्तियों से सावधानी- समय के प्रवाह से देश समाज और वातावरण में जो विदेशी प्रभाव के प्रवेश से स्वधर्म घातक संस्कृति के दूषण बढ़ने लगते हैं उनसे सावधानी के साथ अपनी रक्षा उचित कर्तव्य है । संस्कारों के प्रति अश्रद्धा उनमें बढ़ाये हुए दिखावट अपव्यय, प्रमाद, बालकों को शुद्ध आहार संयम लोक सदाचार की शिक्षा न दिलाकर उन्हें कुमार्ग में जाते देखकर उसे उन्नति मानना जीवन के घातक विदूषण हैं । सगोत्र, सपिंड स्वच्छंद व बहिर्जातीय विवाह, की संतानें दुष्टकर्मा, इन्द्रिय लोलुप निर्लज्ज झूठी चोर कुल मर्यादा विनाशक माता पिता की सेवा का तिरस्कार करने वाली द्रोही अधर्मी स्वार्थरत दुशकर्मा आनन्दी होती हैं ।, ऐसा भगवान मनुका अनुभव युक्त आदेश है । इससे धर्म समाज कुल की मर्यादायें टटकर बिखर जाती हैं, अत: ऐसे सभी दुराचारों से अपने परिवार को बचाना चाहिये ।

(3) स्वरूप संरक्षण- स्वरूप की रक्षा हमारा तीसरा प्रधान कर्तव्य है । 'चौबेजी' की पहिचान हजारों में बिना बतलाये हो जाती थी, यह हमारे परम गौरव और आचार श्रेष्ठता का प्रतीक है, इसके लिए ब्रह्मचार्य, व्यायाम, सात्विक भोजन और स्वास्थ्य के घातक भोजनों का त्याग शुद्धवाणी देव आराधना का तेज निर्लोभ निर्भय स्वभाव जीवन में आनन्द और मस्ती हमारे खास गुण हैं, जो हमारे बालकों में आने चाहिये । किसी प्राचीन पूर्वज ने चौबे के सात गुण कहे हैं- त्याग तपस्या आत्मबल, ब्रह्मचर्य कुल मान । निर्भय निरलोभी सुदृढ़ सो, माथुर मुनि जान ।। सेवा प्रेम उदार मृदु, छिमाँ सान्त सन्तोष । चौबे के गुन सात हैं, जग पूजैं निरदोस ।

(4) द्रव्य का सदुपयोग- अपनी कठिन श्रम की शुद्ध कमाई के धन को गृहस्थी के आदर्श वातावरण निर्माण में, समाज सेवा कार्यों में बन्धुओं की यथाशक्ति सहायता में, तीर्थ यज्ञ, माता पिता की सेवा में, आनन्द और उत्सवों अभावग्रस्त दीन दुखियों की सहायता में उपयोग करना ही महानता का पद है । साहित्य का प्रकाशन प्रचार माथुर गरिमां के ग्रंथों बाराह पुराण गर्गसंहिता भागवत गोपालतापिनी उपनिषद, गीता आदि का पठन पाठन कराकर नयी पीढ़ी को सुसंस्कृत बनाना । प्रभु बामन परशुराम, महर्षि वेदव्यास श्री उद्धवाचार्य महाकवि बिहारी, सात ऋषि, वेदज्ञान आदि के उत्सव आयोजित कर अपने पूर्वजों की गरिमां को जन जन में व्याप्त बनाना यही द्रव्य का सदुपयोग है ।

(5)दहेज लोलुपता- यह महान घातक अकमै समाज में पनपता जा रहा है । सभी इससे आटंकित और भयग्रस्त हैं । हमें सामाजिक तिरस्कार असहयोग और पक्षपात हीन निर्भयता से साहसी वातावरण बनाकर इस दानवी प्रवृति का दमन करना चाहिये ।

(6) कुरीतियों की बृद्धि- समाज में कुरीतियाँ अकुशहीन होकर बढ़ती जा रही हैं । कुछ लोग धन के मद में अपने को ऊँचा बनाने के दंभ में इन्हें बढ़ा रहे हैं । पिछलग्गू मध्यम वर्ग इनके पीछे घिसटता हुआ क्षोभ और संत्रास के गर्त में गरकर कराह रहा है । चरूई, गौंने की अड़-अड़ी, आदि असाधारण कुरीतियाँ ग्रहस्थों को रौद कुचल रही हैं । मध्यमवर्ग को संगठित होकर अल्पमत वाले अहंकारियों के मान मर्दन को बहुमत के सुदृढ़ प्रयासों द्वारा इसका युगानुकूल स्वावलंबी जन जागरण आन्दोलन चलाना चाहिये । उन्हें यह शिक्षा दी जानी चाहिये । कि धन का यशस्वी उपयोग समाज सेवा में विद्यादान, शिक्षा सहायता, बेकारी निवारण , दीन दुखियों अभाव ग्रस्त जनों की सेवा, नवीन उद्योगों की स्थापना आदि सत्कायों में विनियोग करने में है ।

(7) खान-पान की शुद्धता- 'यादृशी भक्षते अन्नं तादृशी जायते मति:' 'जैसा खाय अन्न वैसा बने मन' के अनुभवी सिद्धान्त के अनुसार हमें अपने आहार बिहार में सावधानी बरतना नई पीढ़ी को सिखलाना होगा । विदेशी शिक्षा धन कमाने के लिये आत्म घातक हैं । हम अपना भोजन स्वयं सिद्ध करें, विशेष परिस्थियों में भी यह देखें कि हमारा आहार शुद्ध, सात्विक , निर्दोष, व्यसनहीन, मदहीन, और हमारी कुल मर्यादाओं के अनुकूल है या नहीं । उदरबाद के नाम पर हमें डुबाने वाले होटलों का भ्रष्ट खाना, सिगरेट, शराब, अण्डा, मांस मछली, केकब्रैड, आदि से हम सावधान रहें । हमारा अब तक सम्मान और श्रेष्ठता आहार बिहार भी शुद्धि से ही लोक नमस्कृत रहे हैं ।

(8) दैनिकचर्या और सामाजिक आचरण- अपने व्यक्तिगत आचरण में हमें अपना जीवन पवित्र शांत सुखी सम्पन्न धीर गम्भीर शालीनतामय और गुण सम्पन्न बनाना है । हमें चतुर्वेदी रहना है तो शास्त्रोचित आचरण स्थिर रखना ही होगा तथा इसके लिये शिखा सूत्र, तिलक मुद्रा नित्यस्नान, संध्यावंदन, गायत्री जाप, सूर्याध्यदान, जूठकूठ का विचार रखते हुए दया क्षमा सत्य सन्तोष ईश्वरविश्वास उदारता सर्वजन स्नेह, मृदु भाषण परोपकार सार्वजनिक सेवा देश भक्ति, माता पिता गुरूजनों की सेवा विनम्रता अन्याय की कमाई से विरक्ति, बन्धुजन सन्मान निर्भयता निष्पक्षता आत्मनिग्रह आदि मानवीय सद्गुणों को धारण कर कुल गौरव की मर्यादा को उच्च से उच्चतर बनाना है ।

(9) भ्रातृत्व स्नेह- हमें अपने जातिय बन्धुजनों से सहज स्वाभाविक प्रेमभाव बढ़ाना चाहिये । हमारे सजातीय बन्धु हमारे सहायक रक्षक संकट में आढे आने वाले हमारे प्राण हैं । समूहबद्धता से ही हमारा लोक में अस्तित्व पहिचान और सन्मान है, अत: समाज की दृढता के लिये हमें सामाजिक संगठनों नियमों मर्यादाओं में पूर्णत: अनुशासन बद्ध बनकर रहना है । यह शिक्षा अपने पुत्र पोत्रों परिवारों को भी सिखानी है ।

(10) नव निर्माण- नव निर्माण के कार्यों में उत्साह से योग देकर शिक्षा संस्थान, उद्योग संस्थान, जनसेवा आदि व्यवसायों में सहयोग देना, संस्थानों, जातिय भवन, पुस्तकालय, चिकित्सालय, कुरीतिनिवारण आन्दोलनों सामाजिक संपत्तियों की रक्षा, गरीब साधन हीन बन्धुओं का मार्ग दर्शन और सेवा, जातीय सम्मेलनों का आयोजन, बैंक, प्रेस, कालेज, प्रकाशन-गृह, यमुना प्रदूषण निवारण, तीर्थ विकास, यात्री व्यवस्था, सांस्कृतिक महोत्सव, गुरूजन विशिष्टजन सन्मान, जातिय गरिमां प्रचारक इतिहास , विशिष्टजन परिचय ग्रंथों का प्रसारण, लोकवंद्य अपने पूर्वजों के चरित्र ग्रंन्थों का प्रकाशन, बेकार बन्धुओं के लिये राजकीय सहायता, लघु उद्योगों की स्थापना और संचालन का निर्देशन, प्रगति के मार्गों और प्रगतिपथ में बढते हुए प्रयासों की समीक्षा और जानकारी समय-समय पर अपने बन्धुओं को देते रहना आदि कार्यों में प्रत्येक समर्थजन को सचेष्ट रहना आज के युग की मांग है ।

(11) जन-जागरण- जन जागरण और अपने अधिकारों के लिये संघर्ष करना आज के युग का व्यापक कर्तव्य है । जनता को साथ लेकर शिक्षा के लिये, बेकारी की समस्या को हल करने के लिये, नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिये दुर्बलों के संरक्षण और उनके अधिकारों की सुरक्षा के लिए, अपनी सांस्कृतिक गरिमां की रक्षा, तीर्थयात्री और पर्यटकों के मार्ग दर्शन ज्ञान के प्रशिक्षण हेतु एक संस्थान की स्थापना, मथुरा का सांस्कृतिक विकास, तथा इसे भारत के तीर्थों के मानचित्र में प्रमुख स्थान दिलाने के लिये, रेल बस आदि यातायात सुविधाओं, यात्री विश्राम गृहों के राजकीय निर्माणों के लिये, खांद्य पदार्थों की मिलावट दूर करने के लिये अपने जातीय निवास चतुर्वेद पुर (चौबिया पाड़ा) की उपेक्षा दूर करने के लिये, प्राचीन देव स्थानों परिक्रमा मार्गों, यात्रा मार्गों, ब्रजयात्रा के विश्राम स्थलों में कूप बृक्ष सरोवर पशुपक्षी वृक्षों की रक्षा के लिये हमें जोरदार आवाज उठानी चाहिये तथा सम्भावित कष्टों का साहस के साथ सामना करके अपनी संस्कृति की रक्षा में आगे बढ़ने के जोरदार प्रयास चलाने चाहिये । इससे हमारा आदरकीय रूप फिर देश के सामने आयेगा । प्रभु हमें इसके लिये बल दैं ? भगवान श्री बाराह देव का माथुर विप्र स्वरूप दर्शन आज से 11, 303 वर्ष (9260 विक्रम संवत पूर्व) में प्रभु बाराह देव ने हिरण्याक्ष के बध के अनन्तर बसुंधारा देवी से जो मथुरा और माथुर विप्रवर्य महात्म कथन किया है उसके कुछ वाक्य हमारे एक इतिहास प्रेमी बन्धु के आग्रह से आवश्यक समझ कर विषय समाप्ति के बाद भी यहाँ संयुक्त किये जा रहे हैं-

श्री राम अयोध्यापति वाक्य- भवंतोमम पूज्यसिंह रक्ष्या पोष्याश्च सर्वदा ।

येषां पूजन मात्रेण परमात्मा पृहृष्यति ।।12-54।।
श्री बाराह देव वाणी- अनृचो माथुरोयत्र चतुर्वेदस्तथा पर: ।
चतुर्वेदं परित्यज्य माथुरं परिपूजयेत् ।।12-49।।
माथुराणां हि यद्रूपं तन्मेरूपं वसुंधरे ।
एकस्मिन्भोजिते विप्रे कोटिर्भवति भोजित:।।61।।
न केशव समो देवो न माथुर समो द्विज:।
न विश्वेश्वर समंलिंग सत्यं-सत्यं वसुंधरे।।62।।
माथुरामम रूपाहि माथुरामम बल्लभा: ।
माथुरे परितुष्टेतु तुष्टोहं नात्र संशय: ।।64।।
माथुरा परमात्मानो माथुरा परमाशिष: ।
माथुरा मम प्राणावै सत्यं सत्यं वसुंधरे ।।65।।
भार्गवाख्य पुनर्भूत्वा पूजयिष्यामि माथुरान् ।
सूर्यवंशोद्भवश्चैव शत्रुघ्नोहं वसुंधरे ।।66।।
यदुवंशेभविष्यामि पूजयिष्यामि माथुरान् ।
एषां पूजनमात्रेण तुष्टोहं त्ववने सदा ।।68।।
धन्यौऽसौ माथुरो लोके धन्यासौ मथुरापुरी ।
धन्यास्ते माथुरा विप्रा: कपिलंपश्यन्ति ये सदा ।।63।।
यदन्येषां सहस्त्राणां ब्राह्मणानां महात्मनाम् ।
एकेनपूजितेन स्यान्माथुरेणाखिलं हि तत् ।।64।।
भवंतिसर्व तीर्थानि पुण्यान्यायतनानि च ।
मंगलानि च सर्वाणि यत्रतिष्ठन्ति माथुरा: ।।66।।
नार्यावर्त समोदशो न मथुरा सदृशी पुरी ।
न केशव समोदवो न माथुरसमो द्विज: ।।67।।
सिद्ध भूतगणा सर्वे ये च देवगणा: भुवि ।
देवात्मान् माथुरान् लोके तेपश्यन्ति चतुर्भुजान् ।।68।।
मथुरायां ये वसन्ति देवरूपाह्रि माथुरान् ।
अज्ञानास्तान्नपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञान चक्षुषा: ।।69।।
मथुरावसथ: शास्तास्तपोयुक्ता मनीषिण: ।
कलिंदजा जले स्नाता विप्रास्ते मामकी तनु: ।।18-23।।
विद्धिभागवतान्देवि विश्रान्तौ तु गतश्रमनान् ।
मथुरायां वर्तमाना ये माथुरा: स्नानतत्परा: ।।22।।
भगवान नारायण वाक्य- माथुराणां तु यद्रूपतन्मेरूपं विहंगम ।
ये पापास्ते न पश्यन्ति ममरूपान्माथुराद्विजान् ।।33।।
त्रिराज कृच्छया एकं चांद्रायण समाधिना ।
तेषा पादांतकेबासो कृतेन सुकृतो भवेत् ।।25-58।।

माथुर ब्राह्मणों के पूजनार्थ श्री राघवेन्द्र सरकार और श्री शत्रुघ्न देव का मथुरा में विप्रार्चन महोत्सव वर्णन-

शत्रुघ्नेन पुरा घोरोलवणो सूदितो यदा ।
द्विजानुग्रहकामार्थं सत्रमुत्सवरूपिणम् ।।27-1।।
मार्गशीर्षस्य द्वादश्यां उपोश्यनियत: शुचि: ।
य: करोतिवरारोहे शत्रुघ्न चरितं यथा ।।3।।
द्विजानां सुप्रियं कृत्वां शुद्धांन्नंवरदक्षिणाम् ।
हर्षस्तु सुमहान्जातो रामश्याक्लिष्टकर्मण: ।।
अयोध्याया समायातो राम:सबलवाहन: ।।4।।
एकादश्यां सोपवास: स्नात्वाविश्रांत संज्ञके ।
कृत्वा महोत्सवं तत्र कुटुंव सहित: पुरा ।।6।।
माथुरान्भोजयेत्भक्त्या य: कुर्यात्सुमहोत्सवम् ।
यथाकामं तीर्थफलं लभते माथुर चनात् ।।7।।
सर्वपाप विनिर्मुक्त: देवैश्च सह मोदते ।
स्वर्ग लोके चिरंकालं यावस्थित्यग्रजन्मन: ।।8।।
एतन्माथुर माहात्म्यं वाराहोकथितं पुरा ।
व्यासदेवेन संगृह्र पुरार्ण संप्रतिष्ठितम् ।।9।।
इति श्रीवाराहपुराणे माथुर मथुरा महात्म्यम् ।।