छीतस्वामी

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छीतस्वामी

छीतस्वामी विट्ठलनाथ जी के शिष्य और अष्टछाप के अंतर्गत थे । पहले ये मथुरा के सुसम्पन्न पंडा थे और राजा बीरबल जैसे लोग इनके जजमान थे । पंडा होने के कारण ये पहले बड़े अक्खड़ और उद्दंड थे, पीछे गोस्वामी विट्ठलनाथ जी से दीक्षा लेकर परम शांत भक्त हो गए और श्रीकृष्ण का गुणगान करने लगे । इनकी रचनाओं का समय सन् 1555 ई. के आसपास माना जाता हैं । इनके पदों में श्रृंगार के अतिरिक्त ब्रजभूमि के प्रति प्रेमव्यंजना भी अच्छी पाई जाती है । ‘हे विधना तोसों अँचरा पसारि माँगौ जनम जनम दीजो याही ब्रज बसिबो’ पद इन्हीं का है ।