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*जिस समय दक्षिण में [[शिवाजी]] के विजय−अभियानों की घूम थी, और उनसे युद्ध करने में अफजलखाँ एवं शाइस्ताखाँ की हार हुई थी, तथा राजा [[यशवंतसिंह]] को भी सफलता मिली थी; तब औरंगजेब ने मिर्जा राजा जयसिंह को शिवाजी को दबाने के लिए भेजा था। इस प्रकार वह एक तीर से दो शिकार करना चाहता था। जयसिंह ने बड़ी बुद्धिमत्ता, वीरता और कूटनीति से [[शिवाजी]] को औरंगजेब से संधि करने के लिए राजी किया था।
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*उसने सम्राट की इच्छानुसार शिवाजी को [[आगरा]] दरबार में उपस्थित होने को भी भेज दिया, किंतु वहाँ उनके साथ बड़ा अनुचित व्यवहार हुआ और औरंगजेब की आज्ञा से उन्हें नज़रबंद किया गया। बाद में शिवाजी किसी प्रकार औरंगजेब के चंगुल में से निकल गये जिससे औरंगजेब बड़ा दु:खी हुआ। उसने उन सभी लोगों को कड़ा दंड दिया, जिनकी असावधानी से शिवाजी को निकल भागने का अवसर मिल गया था।
आमेर नरेश मिर्जा जयसिंह मुग़ल दरबार का सर्वाधिक प्रभावशाली सामंत था ; वह [[औरंगजेब]] की आँख का काँटा बना हुआ था । जिस समय दक्षिण में शिवाजी के विजय−अभियानों की घूम थी, और उनसे युद्ध करने में अफजलखाँ एवं शाइस्ताखाँ की हार हुई थी, तथा राजा [[यशवंतसिंह]] को भी सफलता मिली थी; तब औरंगजेब ने मिर्जा राजा जयसिंह को शिवाजी को दबाने के लिए भेजा था । इस प्रकार वह एक तीर से दो शिकार करना चाहता था । जयसिंह ने बड़ी बुद्धिमत्ता, वीरता और कूटनीति से [[शिवाजी]] को औरंगजेब से संधि करने के लिए राजी किया था उसने सम्राट् की इच्छानुसार शिवाजी को [[आगरा]] दरबार में उपस्थित होने को भी भेज दिया ; किंतु वहाँ उनके साथ बड़ा अनुचित व्यवहार हुआ और औरंगजेब की आज्ञा से उन्हें नज़रबंद किया गया । बाद में शिवाजी किसी प्रकार औरंगजेब के चंगुल में से निकल गये जिससे औरंगजेब बड़ा दु:खी हुआ । उसने उन सभी लोगों को कड़ा दंड दिया, जिनकी असावधानी से शिवाजी को निकल भागने का अवसर मिल गया था । मिर्जा जयसिंह और उसका पुत्र कुँवर रामसिंह भी उसके लिए दोषी समझे गये, क्योंकि वे ही शिवाजी की आगरा में सुरक्षा के लिए अधिक चिंतित थे । उसने रामसिंह का मनसब और जागीर छीन ली; तथा जयसिंह को तत्काल दरबार में उपस्थित होने का हुक्मनामा भेजा ।
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*मिर्जा जयसिंह और उसका पुत्र कुँवर रामसिंह भी उसके लिए दोषी समझे गये, क्योंकि वे ही शिवाजी की [[आगरा]] में सुरक्षा के लिए अधिक चिंतित थे। उसने रामसिंह का मनसब और जागीर छीन ली तथा जयसिंह को तत्काल दरबार में उपस्थित होने का हुक्मनामा भेजा।
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*मिर्जा राजा जयसिंह को इस बात का बड़ा खेद था कि शिवाजी को आगरा भेजने में उसने जिस कूटनीतिज्ञता और सूझ−बूझ का परिचय दिया था, उसके बदले में उसे वृद्धावस्था में अपमान एवं लांछन सहना पड़ा। इस दु:ख में वह अपनी यात्रा भी पूरी नहीं कर सका और मार्ग में बुरहानपुर नामक स्थान पर सन् 1667 में उसकी मृत्यु हो गई।
मिर्जा राजा जयसिंह को इस बात का बड़ा खेद था कि शिवाजी को आगरा भेजने में उसने जिस कूटनीतिज्ञता और सूझ−बूझ का परिचय दिया था, उसके बदले में उसे वृद्धावस्था में अपमान एवं लांछन सहना पड़ा । इस दु:ख में वह अपनी यात्रा भी पूरी नहीं कर सका और मार्ग में बुरहानपुर नामक स्थान पर सन् 1667 में उसकी मृत्यु हो गई । मिर्जा राजा जयसिंह वीर सेनानायक और कुशल राजनीतिज्ञ होने के साथ ही साथ साहित्य और कला का भी बड़ा प्रेमी था । उसी के आश्रय में कविवर [[बिहारी]] ने अपनी सुप्रसिद्ध सतसई की रचना सन् 1662 में की थी ।
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*मिर्जा राजा जयसिंह वीर सेनानायक और कुशल राजनीतिज्ञ होने के साथ ही साथ साहित्य और कला का भी बड़ा प्रेमी था।
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*उसी के आश्रय में कविवर [[बिहारी]] ने अपनी सुप्रसिद्ध बिहारी सतसई की रचना सन 1662 में की थी।
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०१:५१, ५ मार्च २०१० के समय का अवतरण

मिर्जा राजा जयसिंह / Mirza Raja Jaisingh

  • आमेर नरेश मिर्जा जयसिंह मुग़ल दरबार का सर्वाधिक प्रभावशाली सामंत था, वह औरंगजेब की आँख का काँटा बना हुआ था।
  • जिस समय दक्षिण में शिवाजी के विजय−अभियानों की घूम थी, और उनसे युद्ध करने में अफजलखाँ एवं शाइस्ताखाँ की हार हुई थी, तथा राजा यशवंतसिंह को भी सफलता मिली थी; तब औरंगजेब ने मिर्जा राजा जयसिंह को शिवाजी को दबाने के लिए भेजा था। इस प्रकार वह एक तीर से दो शिकार करना चाहता था। जयसिंह ने बड़ी बुद्धिमत्ता, वीरता और कूटनीति से शिवाजी को औरंगजेब से संधि करने के लिए राजी किया था।
  • उसने सम्राट की इच्छानुसार शिवाजी को आगरा दरबार में उपस्थित होने को भी भेज दिया, किंतु वहाँ उनके साथ बड़ा अनुचित व्यवहार हुआ और औरंगजेब की आज्ञा से उन्हें नज़रबंद किया गया। बाद में शिवाजी किसी प्रकार औरंगजेब के चंगुल में से निकल गये जिससे औरंगजेब बड़ा दु:खी हुआ। उसने उन सभी लोगों को कड़ा दंड दिया, जिनकी असावधानी से शिवाजी को निकल भागने का अवसर मिल गया था।
  • मिर्जा जयसिंह और उसका पुत्र कुँवर रामसिंह भी उसके लिए दोषी समझे गये, क्योंकि वे ही शिवाजी की आगरा में सुरक्षा के लिए अधिक चिंतित थे। उसने रामसिंह का मनसब और जागीर छीन ली तथा जयसिंह को तत्काल दरबार में उपस्थित होने का हुक्मनामा भेजा।
  • मिर्जा राजा जयसिंह को इस बात का बड़ा खेद था कि शिवाजी को आगरा भेजने में उसने जिस कूटनीतिज्ञता और सूझ−बूझ का परिचय दिया था, उसके बदले में उसे वृद्धावस्था में अपमान एवं लांछन सहना पड़ा। इस दु:ख में वह अपनी यात्रा भी पूरी नहीं कर सका और मार्ग में बुरहानपुर नामक स्थान पर सन् 1667 में उसकी मृत्यु हो गई।
  • मिर्जा राजा जयसिंह वीर सेनानायक और कुशल राजनीतिज्ञ होने के साथ ही साथ साहित्य और कला का भी बड़ा प्रेमी था।
  • उसी के आश्रय में कविवर बिहारी ने अपनी सुप्रसिद्ध बिहारी सतसई की रचना सन 1662 में की थी।