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*कोटा के कछवाहा राजपूत राजा जसराज ने इसे बसाया था। | *कोटा के कछवाहा राजपूत राजा जसराज ने इसे बसाया था। | ||
*छटीकरा से यह स्थान तीन मील दूर है। | *छटीकरा से यह स्थान तीन मील दूर है। | ||
− | *अघासुर का वध हो जाने के बाद आकाश में स्थित [[देवता|देवताओं]] ने 'भगवान् श्री[[कृष्ण]] की जय हो! जय हो!'<ref>ततोऽतिदृष्टा: स्वकृतोऽकृतार्हणं,पुष्पै सुरा अप्सरसश्च नर्तनै: । गीतै: सुगा वाद्यधराश्च वाद्यकै: स्तवैश्च विप्रा जयनि: स्वनैर्गणा:। श्रीमद्भागवत10/12/34</ref> की ध्वनि से आकाश और आस-पास के वन प्रदेश को गुञ्जा दिया। | + | *अघासुर का वध हो जाने के बाद आकाश में स्थित [[देवता|देवताओं]] ने 'भगवान् श्री[[कृष्ण]] की जय हो! जय हो!'<ref>ततोऽतिदृष्टा: स्वकृतोऽकृतार्हणं,पुष्पै सुरा अप्सरसश्च नर्तनै:। गीतै: सुगा वाद्यधराश्च वाद्यकै: स्तवैश्च विप्रा जयनि: स्वनैर्गणा:। श्रीमद्भागवत10/12/34</ref> की ध्वनि से आकाश और आस-पास के वन प्रदेश को गुञ्जा दिया। |
*ग्वालबालों ने भी आनन्द से उनके स्वर में स्वर मिलाकर 'जय हो! जय हो! ' की ध्वनि से आकाश मण्डल को परिव्याप्त कर दिया। | *ग्वालबालों ने भी आनन्द से उनके स्वर में स्वर मिलाकर 'जय हो! जय हो! ' की ध्वनि से आकाश मण्डल को परिव्याप्त कर दिया। | ||
*इस प्रकार श्रीकृष्ण की अघासुर पर विजयगाथा की स्मृति को अपने अंक में धारणकर यह स्थली जैंत नाम से प्रसिद्ध है। | *इस प्रकार श्रीकृष्ण की अघासुर पर विजयगाथा की स्मृति को अपने अंक में धारणकर यह स्थली जैंत नाम से प्रसिद्ध है। | ||
*यहाँ के एक तालाब में सर्प की मूर्ति है। | *यहाँ के एक तालाब में सर्प की मूर्ति है। | ||
− | *उसे इस प्रकार कला से निर्मित किया गया है कि कुण्ड में पानी चाहे जितना भी बढ़े-घटे वह सर्प मूर्ति सदैव पानी के ऊपर में ही दिखाई देती है। | + | *उसे इस प्रकार कला से निर्मित किया गया है कि कुण्ड में पानी चाहे जितना भी बढ़े-घटे वह सर्प मूर्ति सदैव पानी के ऊपर में ही दिखाई देती है। |
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१२:५१, २ नवम्बर २०१३ के समय का अवतरण
जैंत / Jaint
- मथुरा-दिल्ली सड़क पर यह एक बड़ा गाँव है।
- यह मथुरा से लगभग 9 मील दूरी पर स्थित है।
- कोटा के कछवाहा राजपूत राजा जसराज ने इसे बसाया था।
- छटीकरा से यह स्थान तीन मील दूर है।
- अघासुर का वध हो जाने के बाद आकाश में स्थित देवताओं ने 'भगवान् श्रीकृष्ण की जय हो! जय हो!'[१] की ध्वनि से आकाश और आस-पास के वन प्रदेश को गुञ्जा दिया।
- ग्वालबालों ने भी आनन्द से उनके स्वर में स्वर मिलाकर 'जय हो! जय हो! ' की ध्वनि से आकाश मण्डल को परिव्याप्त कर दिया।
- इस प्रकार श्रीकृष्ण की अघासुर पर विजयगाथा की स्मृति को अपने अंक में धारणकर यह स्थली जैंत नाम से प्रसिद्ध है।
- यहाँ के एक तालाब में सर्प की मूर्ति है।
- उसे इस प्रकार कला से निर्मित किया गया है कि कुण्ड में पानी चाहे जितना भी बढ़े-घटे वह सर्प मूर्ति सदैव पानी के ऊपर में ही दिखाई देती है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ततोऽतिदृष्टा: स्वकृतोऽकृतार्हणं,पुष्पै सुरा अप्सरसश्च नर्तनै:। गीतै: सुगा वाद्यधराश्च वाद्यकै: स्तवैश्च विप्रा जयनि: स्वनैर्गणा:। श्रीमद्भागवत10/12/34