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चित्र:Head-of-Jina-Jain-Museum-Mathura-4.jpg|जैन मस्तक<br /> Head of a Jina
 
चित्र:Head-of-Jina-Jain-Museum-Mathura-4.jpg|जैन मस्तक<br /> Head of a Jina
 
चित्र:Seated-Jaina-Tirthankara-Jain-Museum-Mathura-46.jpg|आसनस्थ जैन तीर्थकर <br /> Seated Jaina Tirthankara
 
चित्र:Seated-Jaina-Tirthankara-Jain-Museum-Mathura-46.jpg|आसनस्थ जैन तीर्थकर <br /> Seated Jaina Tirthankara
चित्र:Goat-Headed-Jaina-Mathura-Museum-51.jpg|अजमुखी [[जैन]] मातृदेवी<br />Goat Headed Jaina  
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चित्र:Goat-Headed-Jaina-Mathura-Museum-51.jpg|अजमुखी जैन मातृदेवी<br />Goat Headed Jaina  
चित्र:Jaina-Tablet-Set-Up-By-Vasu-Mathura-Museum-52.jpg|[[जैन]] आयोगपट्ट<br />Jaina Tablet
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चित्र:Jaina-Tablet-Set-Up-By-Vasu-Mathura-Museum-52.jpg|जैन आयोगपट्ट<br />Jaina Tablet
चित्र:Upper-Half-of-Ayagapatta-Mathura-Museum-53.jpg|[[जैन]] आयोगपट्ट<br />Ayagapatta
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चित्र:Upper-Half-of-Ayagapatta-Mathura-Museum-53.jpg|जैन आयोगपट्ट<br /> Jain Ayagapatta
 
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०८:१२, ७ मार्च २०१० का अवतरण

जैन धर्म / Jainism

जैन धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और दर्शन है। 'जैन' कहते हैं उन्हें, जो 'जिन' के अनुयायी हों । 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' माने-जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया, वे हैं 'जिन'। जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान्‌ का धर्म । जैन धर्म का परम पवित्र और अनादि मूलमन्त्र है- णमो अरिहंताणं।
णमो सिद्धाणं।
णमो आइरियाणं।
णमो उवज्झायाणं।
णमो लोए सव्वसाहूणं॥

अर्थात अरिहंतो को नमस्कार, सिद्धों को नमस्कार, आचार्यों को नमस्कार, उपाध्यायों को नमस्कार, सर्व साधुओं को नमस्कार।

ये पाँच परमेष्ठी हैं।


मथुरा मैं विभिन्न कालों में अनेक जैन मूर्तियाँ मिली हैं जो जैन संग्रहालय मथुरा मैं संग्रहीत हैं।

जैन तीर्थंकर, मथुरा
Jain Tirthankar, Mathura

अवैदिक धर्मों में जैन धर्म सबसे प्राचीन है, प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेव माने जाते हैं। जैन धर्म के अनुसार भी ऋषभ देव का मथुरा से संबंध था। जैन धर्म में की प्रचलित अनुश्रुति के अनुसार, नाभिराय के पुत्र भगवान ऋषभदेव के आदेश से इन्द्र ने 52 देशों की रचना की थी। शूरसेन देश और उसकी राजधानी मथुरा भी उन देशों में थी (जिनसेनाचार्य कृत महापुराण- पर्व 16,श्लोक 155)। जैन `हरिवंश पुराण' में प्राचीन भारत के जिन 18 महाराज्यों का उल्लेख हुआ है, उनमें शूरसेन और उसकी राजधानी मथुरा का नाम भी है । जैन मान्यता के अनुसार प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव के सौ पुत्र हुए थे।

जैन धर्म के सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ का विहार मथुरा में हुआ था।<balloon title="जिनप्रभ सूरि कृत 'बिबिध तीर्थ कल्प' का 'मथुरा पुरी कल्प' प्रकरण, पृष्ठ 17 व 85" style="color:blue">*</balloon> अनेक विहार-स्थल पर कुबेरा देवी द्वारा जो स्तूप बनाया गया था, वह जैन धर्म के इतिहास में बड़ा प्रसिद्ध रहा है। चौदहवें तीर्थकर अनंतनाथ का स्मारक तीर्थ भी मथुरा में यमुना नदी के तटपर था। बाईसवें तीर्थकर नेमिनाथ को जैन धर्म में श्री कृष्ण के समकालीन और उनका चचेरा भाई माना जाता है। इस प्रकार जैन धर्म-ग्रंथों की प्राचीन अनुश्रुतियों में ब्रज के प्राचीनतम इतिहास के अनेक सूत्र मिलते हैं। जैन ग्रंथों मे उल्लेख है कि यहाँ पार्श्वनाथ महावीर स्वामी ने यात्रा की थी। पउमचरिय में एक कथा वर्णित है जिसके अनुसार सात साधुओं द्वारा सर्वप्रथम मथुरा में ही श्वेतांबर जैन संम्प्रदाय का प्रचार किया गया था।

एक अनुश्रुति में मथुरा को इक्कीसवें तीर्थंकर नेमिनाथ<balloon title="बीस़ी भट्टाचार्य, जैन आइकोनोग्राफी (लाहौर, 1939), पृ 80" style="color:blue">*</balloon> की जन्मभूमि बताया गया है, किंतु उत्तर पुराण में इनकी जन्मभूमि मिथिला वर्णित है।<balloon title="बी.सी भट्टाचार्य, जैन आइकोनोग्राफी (लाहौर, 1939), पृ 79" style="color:blue">*</balloon> विविधतीर्थकल्प से ज्ञात होता है कि नेमिनाथ का मथुरा में विशिष्ट स्थान था।<balloon title="विविधतीर्थकल्प, पृ 80" style="color:blue">*</balloon> मथुरा पर प्राचीन काल से ही विदेशी आक्रामक जातियों, शक, यवन एवं कुषाणों का शासन रहा।

वीथिका