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*प्राचीन काल में ढोल का प्रयोग पूजा प्रार्थना और नृत्य गान में ही नहीं किया जाता था वरन दुश्मनों पर प्रहार करने , खूंखार जानवरों को भगाने , समय व चेतावनी देने के साधन के रूप में भी उस का प्रयोग  किया जाता था ।  
 
*प्राचीन काल में ढोल का प्रयोग पूजा प्रार्थना और नृत्य गान में ही नहीं किया जाता था वरन दुश्मनों पर प्रहार करने , खूंखार जानवरों को भगाने , समय व चेतावनी देने के साधन के रूप में भी उस का प्रयोग  किया जाता था ।  
 
*सामाजिक विकास के चलते ढोल का प्रयोग दायरा और विस्तृत हो गया है, जातीय संगीत मंडली, विभिन्न प्रकार के नृत्यगान , नौका प्रतियोगिता ,  जश्न मनाने और श्रम प्रतियोगिता में ताल व उत्साहपूर्ण वातावरण बनाने के लिये ढोल का सहारा लिया जाता है । ढोल की संरचना बहुत सरल है । आवाज निकलने के लिये ढोल के ऊपरी व निचली दोनों तरफ जानवर की खाल लगाई जाति है । इसका खोल लकड़ी का होता है ।   
 
*सामाजिक विकास के चलते ढोल का प्रयोग दायरा और विस्तृत हो गया है, जातीय संगीत मंडली, विभिन्न प्रकार के नृत्यगान , नौका प्रतियोगिता ,  जश्न मनाने और श्रम प्रतियोगिता में ताल व उत्साहपूर्ण वातावरण बनाने के लिये ढोल का सहारा लिया जाता है । ढोल की संरचना बहुत सरल है । आवाज निकलने के लिये ढोल के ऊपरी व निचली दोनों तरफ जानवर की खाल लगाई जाति है । इसका खोल लकड़ी का होता है ।   
*फाग तथा शैला नृत्यों में इनका विशेष उपयोग होते हैं । ढोल की लयबद्ध ध्वनि बेहद मनमोहक है , आम तौर लोक नृत्य गान और लोकप्रिय संगीतों में उसका ज्यादा प्रयोग किया जाता है।
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*फाग तथा शैला नृत्यों में इनका विशेष उपयोग होते हैं । ढोल की लयबद्ध ध्वनि बेहद मनमोहक है , आम तौर लोक नृत्य गान और लोकप्रिय संगीतों में उसका ज़्यादा प्रयोग किया जाता है।
  
  

०६:३३, ११ मई २०१० का अवतरण

ढोल / Dhol

  • ढोल, ढोलक या ढोलकी भारतीय वाद्य-यंत्र है। ढोल भारत के बहुत पुराने ताल वाद्य यंत्रों में से है। उत्तर भारत में इसका अधिकतर प्रयोग किया जाता है।
  • ये हाथ या छडी से बजाए जाने वाले छोटे नगाड़े हैं जो मुख्य रूप से लोक संगीत या भक्ति संगीत को ताल देने के काम आते हैं।
  • होली के गीतो में ढोलक का जमकर प्रयोग होता है। ढोलक और ढोलकी को अधिकतर हाथ से बजाया जाता है जबकि ढोल को अलग अलग तरह की छड़ियों से।
  • ढोलक आम, बीजा, शीशम, सागौन या नीम की लकड़ी से बनाई जाती है। लकड़ी को पोला करके दोनों मुखों पर बकरे की खाल डोरियों से कसी रहती है। डोरी में छल्ले रहते हैं, जो ढोलक का स्वर मिलाने में काम आते हैं। चमड़े अथवा सूत की रस्सी के द्वारा इसको खींचकर कसा जाता है ।
  • यह गायन व नृत्य के साथ बजायी जाती है। यह एक प्रमुख ताल वाद्य है।
  • प्राचीन काल में ढोल का प्रयोग पूजा प्रार्थना और नृत्य गान में ही नहीं किया जाता था वरन दुश्मनों पर प्रहार करने , खूंखार जानवरों को भगाने , समय व चेतावनी देने के साधन के रूप में भी उस का प्रयोग किया जाता था ।
  • सामाजिक विकास के चलते ढोल का प्रयोग दायरा और विस्तृत हो गया है, जातीय संगीत मंडली, विभिन्न प्रकार के नृत्यगान , नौका प्रतियोगिता , जश्न मनाने और श्रम प्रतियोगिता में ताल व उत्साहपूर्ण वातावरण बनाने के लिये ढोल का सहारा लिया जाता है । ढोल की संरचना बहुत सरल है । आवाज निकलने के लिये ढोल के ऊपरी व निचली दोनों तरफ जानवर की खाल लगाई जाति है । इसका खोल लकड़ी का होता है ।
  • फाग तथा शैला नृत्यों में इनका विशेष उपयोग होते हैं । ढोल की लयबद्ध ध्वनि बेहद मनमोहक है , आम तौर लोक नृत्य गान और लोकप्रिय संगीतों में उसका ज़्यादा प्रयोग किया जाता है।