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साधारणतया इस वाद्य को तानपुरा के नाम से पुकारते हैं । उत्तर-भारतीय [[संगीत]] में इसने महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण कर लिया है । कारण यह है कि इसका स्वर बहुत ही मधुर तथा अनुकूल वातावरण की सृष्टि में सहायक होता है । तानपुरे की झन्कार सुनते ही गायक की ह्रदय-तन्त्री भी झंकृत हो उठती है, अत: इसका उपयोग गायन अथवा वादन के साथ स्वर देने में होता है । अपरोक्ष रूप में तानपुरे से सातो स्वरों की उत्पत्ति होती है, जिन्हें हम सहायक नाद कहते हैं । तानपुरा अथवा तानपुरे में 4 तार होते हैं । | साधारणतया इस वाद्य को तानपुरा के नाम से पुकारते हैं । उत्तर-भारतीय [[संगीत]] में इसने महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण कर लिया है । कारण यह है कि इसका स्वर बहुत ही मधुर तथा अनुकूल वातावरण की सृष्टि में सहायक होता है । तानपुरे की झन्कार सुनते ही गायक की ह्रदय-तन्त्री भी झंकृत हो उठती है, अत: इसका उपयोग गायन अथवा वादन के साथ स्वर देने में होता है । अपरोक्ष रूप में तानपुरे से सातो स्वरों की उत्पत्ति होती है, जिन्हें हम सहायक नाद कहते हैं । तानपुरा अथवा तानपुरे में 4 तार होते हैं । | ||
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०१:५२, ५ मार्च २०१० का अवतरण
तानपुरा / Tanpura
साधारणतया इस वाद्य को तानपुरा के नाम से पुकारते हैं । उत्तर-भारतीय संगीत में इसने महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण कर लिया है । कारण यह है कि इसका स्वर बहुत ही मधुर तथा अनुकूल वातावरण की सृष्टि में सहायक होता है । तानपुरे की झन्कार सुनते ही गायक की ह्रदय-तन्त्री भी झंकृत हो उठती है, अत: इसका उपयोग गायन अथवा वादन के साथ स्वर देने में होता है । अपरोक्ष रूप में तानपुरे से सातो स्वरों की उत्पत्ति होती है, जिन्हें हम सहायक नाद कहते हैं । तानपुरा अथवा तानपुरे में 4 तार होते हैं ।