"तीर्थंकर" के अवतरणों में अंतर
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
अश्वनी भाटिया (चर्चा | योगदान) |
अश्वनी भाटिया (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति ३६: | पंक्ति ३६: | ||
*जैन सिद्धान्त के अनुसार 'तीर्थंकर' नाम की एक पुण्य (प्रशस्त) कर्म प्रकृति है। उसके उदय से तीर्थंकर होते और वे तत्त्वोपदेश करते हैं। | *जैन सिद्धान्त के अनुसार 'तीर्थंकर' नाम की एक पुण्य (प्रशस्त) कर्म प्रकृति है। उसके उदय से तीर्थंकर होते और वे तत्त्वोपदेश करते हैं। | ||
*आचार्य विद्यानंद ने स्पष्ट कहा है<balloon title="ऋषभादिमहावीरान्तेभ्य: स्वात्मोपलब्धये। धर्मतीर्थकरेभ्योऽस्तु स्याद्वादिभ्यो नमोनम:॥ अकलंक, लघीयस्त्रय, 1" style=color:blue>*</balloon> कि 'बिना तीर्थकरत्वेन नाम्ना नार्थोपदेशना' अर्थात बिना तीर्थंकर-पुण्यनामकर्म के तत्त्वोपदेश संभव नहीं है।<balloon title="आप्तपरीक्षा, कारिका 16" style=color:blue>*</balloon> | *आचार्य विद्यानंद ने स्पष्ट कहा है<balloon title="ऋषभादिमहावीरान्तेभ्य: स्वात्मोपलब्धये। धर्मतीर्थकरेभ्योऽस्तु स्याद्वादिभ्यो नमोनम:॥ अकलंक, लघीयस्त्रय, 1" style=color:blue>*</balloon> कि 'बिना तीर्थकरत्वेन नाम्ना नार्थोपदेशना' अर्थात बिना तीर्थंकर-पुण्यनामकर्म के तत्त्वोपदेश संभव नहीं है।<balloon title="आप्तपरीक्षा, कारिका 16" style=color:blue>*</balloon> | ||
− | + | ==वीथिका== | |
+ | <gallery widths="145px" perrow="4"> | ||
+ | चित्र:23rd-Tirthankara-Parsvanatha-Jain-Museum-Mathura-9.jpg|तीर्थकर पार्श्वनाथ<br /> Tirthankara Parsvanatha | ||
+ | चित्र:Seated-Jain-Tirthankara-Jain-Museum-Mathura-30.jpg|आसनस्थ जैन तीर्थकर<br /> Seated Jaina Tirthankara | ||
+ | </gallery> | ||
[[en:Tirthankar]] | [[en:Tirthankar]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
[[Category:कोश]] [[Category:जैन]] | [[Category:कोश]] [[Category:जैन]] |
११:४०, १२ फ़रवरी २०१० का अवतरण
<sidebar>
- सुस्वागतम्
- mainpage|मुखपृष्ठ
- ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
- विशेष:Contact|संपर्क
- समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
- SEARCH
- LANGUAGES
__NORICHEDITOR__
- जैन दर्शन
- जैन दर्शन का उद्भव और विकास|उद्भव और विकास
- ॠषभनाथ तीर्थंकर|ॠषभनाथ तीर्थंकर
- तीर्थंकर पार्श्वनाथ|पार्श्वनाथ तीर्थंकर
- नेमिनाथ तीर्थंकर|नेमिनाथ तीर्थंकर
- तीर्थंकर उपदेश|तीर्थंकर उपदेश
- तीर्थंकर|तीर्थंकर
- महावीर|महावीर
- जैन तार्किक और उनके न्यायग्रन्थ|तार्किक और न्यायग्रन्थ
- जैन आचार-मीमांसा|आचार-मीमांसा
- जैन दर्शन में अध्यात्म|अध्यात्म
- जैन दर्शन और उसका उद्देश्य|उद्देश्य
- जैन दर्शन के प्रमुख ग्रन्थ|प्रमुख ग्रन्थ
</sidebar>
तीर्थंकर / Tirthankar
- तीर्थ का अर्थ जिसके द्वारा संसार समुद्र तरा जाए,पार किया जाए और वह अहिंसा धर्म है।
- इस विषय में जिन्होंने प्रवर्तन किया, उपदेश दिया, उन्हें तीर्थंकर कहा गया है।
- तीर्थंकर 24 माने गए है।
- जैन धर्म में चौबीस तीर्थकरों के नाम इस प्रकार प्रसिद्ध है-
- ॠषभनाथ तीर्थंकर,
- अजित,
- सम्भव,
- अभिनन्दन,
- सुमति,
- पद्य,
- सुपार्श्व,
- चन्द्रप्रभ,
- पुष्पदन्त,
- शीतल,
- श्रेयांस,
- वासुपूज्य,
- विमल,
- अनन्त,
- धर्मनाथ,
- शांति,
- कुन्थु,
- अरह,
- मल्लिनाथ,
- मुनिसुब्रत,
- नमि,
- नेमिनाथ तीर्थंकर,
- पार्श्वनाथ तीर्थंकर, और
- वर्धमान-महावीर
- इन 24 तीर्थकरों ने अपने-अपने समय में धर्ममार्ग से च्युत हो रहे जन समुदाय को संबोधित किया और उसे धर्ममार्ग में लगाया।
- इसी से इन्हें धर्म मार्ग-मोक्ष मार्ग का नेता तीर्थ प्रवर्त्तक-तीर्थंकर कहा गया है।
- जैन सिद्धान्त के अनुसार 'तीर्थंकर' नाम की एक पुण्य (प्रशस्त) कर्म प्रकृति है। उसके उदय से तीर्थंकर होते और वे तत्त्वोपदेश करते हैं।
- आचार्य विद्यानंद ने स्पष्ट कहा है<balloon title="ऋषभादिमहावीरान्तेभ्य: स्वात्मोपलब्धये। धर्मतीर्थकरेभ्योऽस्तु स्याद्वादिभ्यो नमोनम:॥ अकलंक, लघीयस्त्रय, 1" style=color:blue>*</balloon> कि 'बिना तीर्थकरत्वेन नाम्ना नार्थोपदेशना' अर्थात बिना तीर्थंकर-पुण्यनामकर्म के तत्त्वोपदेश संभव नहीं है।<balloon title="आप्तपरीक्षा, कारिका 16" style=color:blue>*</balloon>