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==दीपावली / दिवाली / Deepavali / Diwali==
 
[[चित्र:lakshmi-ganesh-1.jpg|thumb|250|[[लक्ष्मी]]-[[गणेश]]<br />Lakshmi-Ganesha]]
 
त्योहारों का जो वातावरण और [[धनतेरस]] से प्रारम्भ होता है, वह आज के दिन पूरे चरम पर आता है। दीपावली की रात्रि को घरों तथा दुकानों पर भारी संख्या में दीपक, मोमबत्तियां और बल्ब जलाए जाते हैं। दीपावली भारत के त्योहारों में अपना विशिष्ट स्थान रखती है। इस दिन [[लक्ष्मी]] के पूजन का विशेष विधान है। रात्रि के समय प्रत्येक घर में धनधान्य की अधिष्ठात्री देवी [[लक्ष्मी|महालक्ष्मीजी]], विघ्न-विनाशक [[गणेश]] जी और विद्या एवं कला की देवी मातेश्वरी सरस्वती|सरस्वती देवी की पूजा-आराधना की जाती है। [[ब्रह्मपुराण]] के अनुसार [[कार्तिक अमावस्या]] की इस अंधेरी रात्रि अर्थात अर्धरात्रि में महालक्ष्मी स्वयं भूलोक में आती हैं और प्रत्येक सद्गृहस्थ के घर में विचरण करती हैं। जो घर हर प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध और सुंदर तरीके से सुसज्जित और प्रकाशयुक्त होता है वहां अंश रूप में ठहर जाती हैं। और गंदे स्थानों की तरफ देखती भी नहीं।  इसलिए इस दिन घर-बाहर को खूब साफ-सुथरा करके सजाया-संवारा जाता है। दीपावली मनाने से लक्ष्मीजी प्रसन्न होकर स्थायी रूप से सद्गृहस्थों के घर निवास करती हैं। वास्तव में [[धनतेरस]], नरक चतुर्दशी तथा महालक्ष्मी पूजन-इन तीनों पर्वों का मिश्रण है दीपावली। भारतीय पद्धति के अनुसार प्रत्येक आराधना, उपासना व अर्चना में आधिभौतिक, आध्यात्मिक और आधिदैविक इन तीनों रूपों का समन्वित व्यवहार होता है। इस मान्यतानुसार इस उत्सव में भी सोने, चांदी, सिक्के आदि के रूप में आधिभौतिक लक्ष्मी का आधिदैविक लक्ष्मी से संबंध स्वीकार करके पूजन किया जाता हैं घरों को दीपमाला आदि से अलंकृत करना इत्यादि कार्य लक्ष्मी के आध्यात्मिक स्वरूप की शोभा को अविर्भूत करने के लिए किए जाते हैं। इस तरह इस उत्सव में उपरोक्त तीनों प्रकार से लक्ष्मी की उपासना हो जाती है।
 
  
==धार्मिक मान्यता==
 
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दीपावली के दिन [[आतिशबाजी]] की प्रथा के पीछे सम्भवत: यह धारण है कि दीपावली-अमावस्या से पितरों की रात आरम्भ होती है। कहीं वे मार्ग भटक न जाएं, इसलिए उनके लिए प्रकाश की व्यवस्था इस रूप में की जाती है। इस प्रथा का बंगाल में विशेष प्रचलन है।
 
धर्मग्रंथों के अनुसार कार्तिक अमावस्या को भगवान श्री [[राम|रामचंद्रजी]] चौदह वर्ष का वनवास काटकर तथा असुरी वृत्तियों के प्रतीक [[रावण|रावणादि]] का संहार करके [[अयोध्या]] लौटे थे। तब अयोध्याविसयों ने राम के राज्यारोहण पर दीपमालाएं जलाकर महोत्सव मनाया था। इसीलिए दीपावली हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है।  यह पर्व अलग-अलग नाम और विधानों से पूरी दुनिया में मनाया जाता है। इसका एक कारण यह भी कि इसी दिन अनेक विजयश्री युक्त कार्य हुए हैं। बहुत से सुभ कार्यों का प्रारम्भ भी इसी दिन से माना गया है।  इसी दिन उज्जैन के सम्राट [[विक्रमादित्य]] का राजतिलक हुआ था। [[विक्रमी संवत]] का आरम्भ भी इसी दिन से माना जाता है। अत: यह नए वर्ष का प्रथम दिन भी है। आज ही के दिन व्यापारी अपने बही-खाते बदलते हैं। तथा लाभ-हानि का ब्यौरा तैयार करते हैं।
 
==लक्ष्मी पूजन==
 
दीपावली पर लक्ष्मीजी का पूजन घरों में ही नहीं, दुकानों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों में भी किया जाता है। कर्मचारियों को पूजन के बाद मिठाई, बर्तन और रूपये आदि भी दिए जाते हैं। दीपावली पर कहीं-कहीं जुआ भी खेला जाता है। इसका प्रधान लक्ष्य वर्ष भर के भाग्य की परीक्षा करना है।
 
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इस दिन धन के देवता [[कुबेर|कुबेरजी]], विघ्नविनाशक [[गणेश|गणेशजी]], राज्य सुख के दाता [[इन्द्र|इन्द्रदेव]], समस्त मनोरथों को पूरा करने वाले [[विष्णु]] भगवान तथा बुद्धि की दाता [[सरस्वती देवी|सरस्वती]] जी की भी [[लक्ष्मी]] के साथ पूजा करें।
 
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इस प्रथा के साथ भगवान [[शंकर]] तथा [[पार्वती]] के जुआ खेलने के प्रसंग को भी जोड़ा जाता है, जिसमें भगवान शंकर पराजित हो गए थे। जहां तक धार्मिक दृष्टि का प्रश्न है आज पूरे दिन व्रत रखना चाहिए और मध्यरात्रि में लक्ष्मी-पूजन के बाद ही भोजन करना चाहिए। जहां तक व्यावहारिकता का प्रश्न है, तीन देवों-महालक्ष्मी, गणेशजी और सरस्वतीजी के संयुक्त पूजन के बावजूद इस पूजा में त्योहार का उल्लास ही अधिक रहता है। इस दिन प्रदोष काल में पूजन करके जो स्त्री-पुरुष भोजन करते हैं, उनके नेत्र वर्ष भर निर्मल रहते हैं। इसी रात को ऐन्द्रजालिक तथा अन्य तंत्र-मन्त्र वेत्ता श्मशान में मन्त्रों को जगाकर सुदृढ़ करते हैं। कार्तिक मास की अमावस्या के दिन भगवान [[विष्णु]] क्षीरसागर की तरंग पर सुख से सोते हैं और लक्ष्मी जी भी दैत्य भय से विमुख होकर कमल के उदर में सुख से सोती हैं। इसलिए मनुष्यों को सुख प्राप्ति का उत्सव विधिपूर्वक करना चाहिएं। लोकमान्यता के अनुसार इस दिन आंख में काजल न लगवाने वाला व्यक्ति अगले जन्म में छछून्दर रूप में विचरण करता है।
 
 
==पूजन विधि==
 
लक्ष्मी जी के पूजन के लिए घर की साफ-सफ़ाई करके दीवार को गेरू से पोतकर लक्ष्मी जी का चित्र बनाया जाता है। लक्ष्मीजी का चित्र भी लगाया जा सकता है। सन्ध्या के समय भोजन में स्वादिष्ट व्यंजन, केला, पापड़ तथा अनेक प्रकार की मिठाइयाँ होनी चाहिए। लक्ष्मी जी के चित्र के सामने एक चौकी रखकर उस पर मौली बांधनी चाहिए। इस पर गणेश जी की व लक्ष्मी जी की मिट्टी या चांदी की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए तथा उन्हें तिलक करना चाहिए। चौकी पर छ: चौमुखे व 26 छोटे दीपक रखने चाहिए और तेल-बत्ती डालकर जलाना चाहिए। फिर जल, मौली, चावल, फल, गुड़, अबीर, गुलाल, धूप आदि से विधिवत पूजन करना चाहिए। पूजा पहले पुरुष करें, बाद में स्त्रियां। पूजन करने के बाद एक-एक दीपक घर के कोनों में जलाकर रखें। एक छोटा तथा एक चौमुखा दीपक रखकर लक्ष्मीजी का पूजन करें। इस पूजन के पश्चात तिजोरी में गणेश जी तथा लक्ष्मी जी की मूर्ति रखकर विधिवत पूजा करें। अपने व्यापार के स्थान पर बहीखातों की पूजा करें। इसके बाद जितनी श्रद्धा हो घर की बहू-बेटियों को रूपये दें। लक्ष्मी पूजन रात के समय बारह बजे करना चाहिए।
 
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इस दिन धन के [[देवता]] [[कुबेर]]जी, विघ्नविनाशक [[गणेश]]जी, राज्य सुख के दाता [[इन्द्र]]देव, समस्त मनोरथों को पूरा करने वाले [[विष्णु]] भगवान तथा बुद्धि की दाता [[सरस्वती देवी|सरस्वती]] जी की भी लक्ष्मी के साथ पूजा करें। जहां दीवार पर गणेश, लक्ष्मी बनाएं हो वहाँ उनके आगे एक पट्टे पर चौमुखा दीपक और छ: छोटे दीपक में घी, बत्ती डालकर रख दें तथा रात्रि के बारह बजे लक्ष्मी-पूजन करें। इसके लिए एक पाट पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर एक जोड़ी लक्ष्मी तथा गणेशजी की मूर्ति रखें। समीप ही 101 रूपये, सवा सेर चावल, गुड़, चार केले, हरी ग्वार की फली तथा पांच लड्डू रखकर, लक्ष्मी-गणेश का पूजन करके लड्डुओं से भोग लगाएं। फिर गणेश, लक्ष्मी, दीप, रूपये आदि सब की पूजा करें। दीपकों का काजल सब स्त्री-पुरुषों को आंखों में लगाना चाहिए तथा रात्रि जागरण करके गोपाल सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए। यदि इस दिन घर में बिल्ली आए तो उसे भगाना नहीं चाहिए। पूजन की समाप्ति के बाद अपने से बड़ों की चरण वंदना करनी चाहिए। दुकान की गद्दी की भी विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए।
 
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रात को बारह बजे दीपावली पूजन के बाद चूने या गेरू में रूई भिगोकर चक्की, चूल्हा, सिल-बट्टा तथा सूप पर तिलक करना चाहिए। रात्रि की ब्रह्मबेला अर्थात प्रात:काल चार बजे उठकर स्त्रियां पुराने सूप में कूड़ा रखकर उसे दूर फेंकने के लिए ले जाती हैं तथा सूप पीटकर दरिद्रता भगाती हैं। सूप पीटने का तात्पर्य है- 'आज से लक्ष्मीजी का वास हो गया। दुख दरिद्रता का सर्वनाश हो।' फिर घर आकर स्त्रियां कहती हैं- इस घर से दरिद्र चला गया है। हे लक्ष्मी जी! आप निर्भय होकर यहां निवास करिए।
 
 
==दीपावली मनाने की प्रचलित धारणाएं==
 
1. कहा जाता है कि इस दिन भगवान [[विष्णु]] ने राजा [[बलि]] को पाताल लोक का [[इन्द्र]] बनाया था और इन्द्र ने स्वर्ग को सुरक्षित जानकर प्रसन्नतापूर्वक दीपावली मनाई थी।<br/ >
 
2. इसी दिन [[समुद्र मंथन]] के समय क्षीरसागर से [[लक्ष्मी]]जी प्रकट हुई थीं और भगवान विष्णु को अपना पति स्वीकार किया था।<br/ >
 
3. इस दिन जब श्री [[राम|रामचंद्र]] [[लंका]] से वापस आए तो उनका राज्यारोहण किया गया था।  इस ख़ुशी में [[अयोध्या]]वासियों ने घरों में दीपक जलाए थे। <br/ >
 
4. इसी समय कृषकों के घर में नवीन अन्न आते हैं, जिसकी ख़ुशी में दीपक जलाए जाते हैं।<br/ >
 
5. इसी दिन गुप्तवंशीय राजा [[चंद्रगुप्त विक्रमादित्य]] ने अपने '[[विक्रम संवत]]' की स्थापना की थीं  धर्म, गणित तथा ज्योतिष के दिग्गज विद्वानों को आमन्त्रित कर यह मुहूर्त निकलवाया कि-नया [[संवत]] चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से मनाया जाए। <br/ >
 
6. इसी दिन [[आर्यसमाज]] के संस्थापक महर्षि [[दयानंद सरस्वती]] का निर्वाण हुआ था। <br/ >
 
==दीपावली की कथा प्रथम==
 
एक बार सनत्कुमारजी ने सभी महर्षि-मुनियों से कहा- 'महानुभाव! [[कार्तिक]] की अमावस्या को प्रात:काल स्नान करके भक्तिपूर्वक पितर तथा देव पूजन करना चाहिए। उस दिन रोगी तथा बालक के अतिरिक्त और किसी व्यक्ति को भोजन नहीं करना चाहिए। सन्ध्या समय विधिपूर्वक [[लक्ष्मी]]जी का मण्डप बनाकर उसे फूल, पत्ते, तोरण, ध्वज और पताका आदि से सुसज्जित करना चाहिए। अन्य देवी-देवताओं सहित लक्ष्मी जी का षोडशोपचार पूजन तथा पूजनोपरांत परिक्रमा करनी चाहिए। मुनिश्वरों ने पूछा- 'लक्ष्मी-पूजन के साथ अन्य देवी-देवताओं के पूजन का क्या कारण है?'<br/ >
 
इस सनत्कुमारजी बोले -'लक्ष्मीजी समस्त देवी-देवताओं के साथ राजा [[बलि]] के यहां बंधक थीं। आज ही के दिन भगवान [[विष्णु]] ने उन सबको बंधनमुक्त किया था। बंधनमुक्त होते ही सब देवता लक्ष्मी जी के साथ जाकर क्षीर-सागर में सो गए थे। इसलिए अब हमें अपने-अपने घरों में उनके शयन का ऐसा प्रबन्ध करना चाहिए कि वे क्षीरसागर की ओर न जाकर स्वच्छ स्थान और कोमल शैय्या पाकर यहीं विश्राम करें। जो लोग लक्ष्मी जी के स्वागत की उत्साहपूर्वक तैयारियां करते हैं, उनको छोड़कर वे कहीं भी नहीं जातीं। रात्रि के समय लक्ष्मीजी का आह्वान करके उनका विधिपूर्वक पूजन करके नाना प्रकार के मिष्ठान्न का नैवेद्य अर्पण करना चाहिए। दीपक जलाने चाहिए। दीपकों को सर्वानिष्ट निवृत्ति हेतु अपने मस्तक पर घुमाकर चौराहे या श्मशान में रखना चाहिए।
 
==दीपावली की कथा द्वितीय==
 
प्राचीनकाल में एक साहूकार था। उसकी एक सुशील और सुंदर बेटी थी। वह प्रतिदिन पीपल पर जल चढ़ाने जाती थीं। उस पीपल पर [[लक्ष्मी]] जी का वास था। एक दिन लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी से कहा- 'तुम मेरी सहेली बन जाओ।' तब साहूकार के बेटी ने लक्ष्मी जी से कहा- 'मैं कल अपने पिता से पूछकर उत्तर दूंगी।' घर जाकर उसने अपने पिता को सारी बात कह सुनाई। उसने कहा- 'पीपल पर एक स्त्री मुझे अपनी सहेली बनाना चाहती है।' तब साहूकार ने कहा- 'वह तो लक्ष्मी जी हैं। और हमें क्या चाहिए, तू उनकी सहेली बन जा।' इस प्रकार पिता के हां कर देने पर दूसरे दिन साहूकार की बेटी जब पीपल सींचने गई तो उसने लक्ष्मी जी को सहेली बनाना स्वीकार कर लिया। एक दिन लक्ष्मी जी ने साहूकार की बेटी को भोजन का न्यौता दिया। जब साहूकार की बेटी लक्ष्मी जी के यहां भोजन करने गई तो लक्ष्मी जी ने उसको ओढ़ने के लिए शाल दुशाला दिया तथा सोने की चौकी पर बैठाकर, सोने की थाली में अनेक प्रकार के भोजन कराए। जब साहूकार की बेटी खा-पीकर अपने घर को लौटने लगी तो लक्ष्मी जी ने उसे पकड़ लिया और कहा- 'तुम मुझे अपने घर कब बुला रही हो? मैं भी तेरे घर जीमने आऊंगी।' पहले तो उसने आनाकानी की, फिर कहा -'अच्छा, आ जाना।' घर आकर वह रूठकर बैठ गई। तब साहूकार ने कहा- 'तुम लक्ष्मीजी को तो घर आने का निमन्त्रण दे आई हो और स्वयं उदास बैठी हो।' तब साहूकार की बेटी बोली- 'पिताजी! लक्ष्मी जी ने तो मुझे इतना दिया और बहुत उत्तम भोजन कराया। मैं उन्हें किस प्रकार खिलाऊंगी, हमारे घर में तो वैसा कुछ भी नहीं है।'
 
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तब साहूकार ने कहा- 'जो अपने से बनेगा, वही ख़ातिर कर देंगे। तू जल्दी से गोबर मिट्टी से चौका देकर सफ़ाई कर दे। चौमुखा दीपक बनाकर लक्ष्मी जी का नाम लेकर बैठ जा।' तभी एक चील किसी रानी का नौलखा हार उठा लाई और उसे साहूकार की बेटी के पास डाल गई। साहूकार की बेटी ने उस हार को बेचकर सोने का थाल, शाल, दुशाला और अनेक प्रकार के भोजन की तैयारी कर ली। थोड़ी देर बाद लक्ष्मी जी उसके घर पर आ गईं। साहूकार की बेटी ने लक्ष्मी जी को बैठने के लिए सोने की चौकी दी। लक्ष्मी जी ने बैठने को बहुत मना किया और कहा- 'इस पर तो राजा-रानी बैठते हैं।' तब साहूकार की बेटी ने कहा- 'तुम्हें तो हमारे यहां बैठना ही पड़ेगा।' तब लक्ष्मी जी उस पर बैठ गई। साहूकार की बेटी ने लक्ष्मीजी की बहुत ख़ातिरदारी की, इससे लक्ष्मी जी बहुत प्रसन्न हुई और साहूकार के पास बहुत धन-दौलत हो गई।
 
*हे लक्ष्मी माता! जैसे तुम साहूकार की बेटी की चौकी पर बैठी और बहुत सा धन दिया, वैसे ही सबको देना।
 
 
==सावधानियाँ==
 
*सावधान और सजग रहें। असावधानी और लापरवाही से मनुष्य बहुत कुछ खो बैठता है। [[विजयादशमी]] और दीपावली के आगमन पर इस त्योहार का आनंद, ख़ुशी और उत्साह बनाये रखने के लिए सावधानीपूर्वक रहें।
 
*पटाखों के साथ खिलवाड़ न करें। उचित दूरी से पटाखे चलाएँ।
 
*मिठाइयों और पकवानों की शुद्धता, पवित्रता का ध्यान रखें ।
 
*भारतीय संस्कृति के अनुसार आदर्शों व सादगी से मनायें। पाश्चात्य जगत का अंधानुकरण ना करें।
 
*पटाखे घर से दूर चलायें और आस-पास के लोगों की असुविधा के प्रति सजग रहें।
 
*स्वच्छ्ता और पर्यावरण का ध्यान रखें।
 
*पटाखों से बच्चों को उचित दूरी बनाये रखने और सावधानियों को प्रयोग करने का सहज ज्ञान दें।
 
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{{साँचा:पर्व और त्योहार}}
 
[[Category:कोश]]
 
[[Category:पर्व और त्योहार]]
 
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०९:३३, २८ अप्रैल २०१० का अवतरण