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इस दिन भगवती [[दुर्गा]] का पूजन कर नवरात्र की पूर्णाहुति की जाती है। भगवती दुर्गा को उबाले हुए चने, हलुआ-पूरी, खीर, पुए आदि का भोग लगाया जाता है। इस दिन देवी दुर्गा की मूर्ति का मंत्रों से विधिपूर्वक पूजन किया जाता है। बहुत से व्यक्ति इस महाशक्ति को प्रसन्न करने के लिए हवन आदि भी करते हैं। शक्ति पीठों में इस दिन बहुत उत्सव मनाया जाता है। इस दिन कन्या, लांगुरा जिमाए जाते हैं।  
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इस दिन भगवती [[दुर्गा]] का पूजन कर नवरात्र की पूर्णाहुति की जाती है। भगवती दुर्गा को उबाले हुए चने, हलुआ-पूरी, खीर, पुए आदि का भोग लगाया जाता है। इस दिन देवी दुर्गा की मूर्ति का मंत्रों से विधिपूर्वक पूजन किया जाता है। बहुत से व्यक्ति इस महाशक्ति को प्रसन्न करने के लिए हवन आदि भी करते हैं। शक्ति पीठों में इस दिन बहुत उत्सव मनाया जाता है। इस दिन कन्या, लांगुरा जिमाए जाते हैं।
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चैत्र शुक्ल अष्टमी का अत्यन्त विशिष्ट महत्व है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नवरात्र पूजा का जो आयोजन प्रारम्भ होता है, वह आज ही के दिन या दूसरे दिन नवमी को पूर्णता प्राप्त करता है। आज के दिन ही आदिशक्ति भवानी का प्रादुर्भाव हुआ था। भगवती भवानी अजेय शक्तिशालिनी महानतम शक्ति हैं और यही कारण है कि इस अष्टमी को महाष्टमी कहा जाता है। महाष्टमी को भगवती के भक्त उनके दुर्गा, काली, भवानी, जगदम्बा, दवदुर्गा आदि रूपों की पूजा-आराधना करते हैं। प्रतिमा को शुद्ध जल से स्नान कराकर वस्त्राभूषणों द्वारा पूर्ण श्रृंगार किया जाता है और फिर विधिपूर्वक आराधना की जाती है। हवन की अग्नि जलाकर धूप, कपूर, घी, गुग्गुल और हवन सामग्री की आहुतियां दी जाती हैं। सिंदूर में एक जायफल की लपेटकर आहुति देने का भी विधान है।
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धूप, दीप,  नैवेद्य से देवी की पूजा करने के बाद मातेश्वरी की जय बोलते हुए 101 परिक्रमाएं दी जाती हैं। कुछ क्षेत्रों में गोबर से [[पार्वती]] जी की प्रतिमा बनाकर पूजने का विधान भी है। वहां इस दिन कुमारियां तथा सुहागिनों पार्वती जी को गोबर निर्मित प्रतिमा का पूजन करती हैं। नवरात्रों के पश्चात इसी दिन दुर्गा का विसर्जन किया जाता है। इस पर्व पर नवमी को प्रात: काल देवी का पूजन किया जाता हैं अनेक पकवानों से दुर्गाजी को भोग लगाया जाता है। छोटे बालक-बालिकाओं की पूजा करके उन्हें पूड़ी , हलवा, चने और भेंट दी जाती है।
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१२:३६, ५ सितम्बर २००९ का अवतरण

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साँचा:पर्व और त्यौहार

दुर्गाष्टमी

इस दिन भगवती दुर्गा का पूजन कर नवरात्र की पूर्णाहुति की जाती है। भगवती दुर्गा को उबाले हुए चने, हलुआ-पूरी, खीर, पुए आदि का भोग लगाया जाता है। इस दिन देवी दुर्गा की मूर्ति का मंत्रों से विधिपूर्वक पूजन किया जाता है। बहुत से व्यक्ति इस महाशक्ति को प्रसन्न करने के लिए हवन आदि भी करते हैं। शक्ति पीठों में इस दिन बहुत उत्सव मनाया जाता है। इस दिन कन्या, लांगुरा जिमाए जाते हैं।


चैत्र शुक्ल अष्टमी का अत्यन्त विशिष्ट महत्व है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नवरात्र पूजा का जो आयोजन प्रारम्भ होता है, वह आज ही के दिन या दूसरे दिन नवमी को पूर्णता प्राप्त करता है। आज के दिन ही आदिशक्ति भवानी का प्रादुर्भाव हुआ था। भगवती भवानी अजेय शक्तिशालिनी महानतम शक्ति हैं और यही कारण है कि इस अष्टमी को महाष्टमी कहा जाता है। महाष्टमी को भगवती के भक्त उनके दुर्गा, काली, भवानी, जगदम्बा, दवदुर्गा आदि रूपों की पूजा-आराधना करते हैं। प्रतिमा को शुद्ध जल से स्नान कराकर वस्त्राभूषणों द्वारा पूर्ण श्रृंगार किया जाता है और फिर विधिपूर्वक आराधना की जाती है। हवन की अग्नि जलाकर धूप, कपूर, घी, गुग्गुल और हवन सामग्री की आहुतियां दी जाती हैं। सिंदूर में एक जायफल की लपेटकर आहुति देने का भी विधान है।

धूप, दीप, नैवेद्य से देवी की पूजा करने के बाद मातेश्वरी की जय बोलते हुए 101 परिक्रमाएं दी जाती हैं। कुछ क्षेत्रों में गोबर से पार्वती जी की प्रतिमा बनाकर पूजने का विधान भी है। वहां इस दिन कुमारियां तथा सुहागिनों पार्वती जी को गोबर निर्मित प्रतिमा का पूजन करती हैं। नवरात्रों के पश्चात इसी दिन दुर्गा का विसर्जन किया जाता है। इस पर्व पर नवमी को प्रात: काल देवी का पूजन किया जाता हैं अनेक पकवानों से दुर्गाजी को भोग लगाया जाता है। छोटे बालक-बालिकाओं की पूजा करके उन्हें पूड़ी , हलवा, चने और भेंट दी जाती है।