देवकी

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
Katya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित १४:४५, २० अगस्त २००९ का अवतरण
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ


देवकी / Devaki

आहुक ने अपनी बहिन आहुकी का ब्याह अवंती देश में किया था। आहुक की एक पुत्री भी थी, जिसने दो पुत्र उत्पन्न किये। उनके नाम हैं- देवक और उग्रसेन। वे दोनों देवकुमारों के समान तेजस्वी हैं। देवक के चार पुत्र हुए, जो देवताओं के समान सुन्दर और वीर हैं। उनके नाम हैं- देववान्, उपदेव, सुदेव और देवरक्षक। उनके सात बहिनें थीं, जिनका ब्याह देवक ने वसुदेवजी के साथ कर दिया। उन सातों के नाम इस प्रकार हैं- देवकी, श्रुतदेवा, यशोदा, श्रुतिश्रवा, श्रीदेवा, उपदेवा और सुरूपा। उग्रसेन के नौ पुत्र हुए; उनमें कंस सबसे बड़ा था। शेष के नाम इस प्रकार हैं- न्यग्रोध, सुनामा, कंक, शंकु, सुभू, राष्ट्रपाल, बद्धमुष्टि और सुमुष्टिक। उनके पाँच बहिनें थीं- कंसा, कंसवती, सुरभी, राष्ट्रपाली और कंका। ये सब-की-सब बड़ी सुन्दरी थीं। इस प्रकार सन्तानों सहित उग्रसेन तक कुकुर-वंश का वर्णन किया गया।


देवकी- कृष्ण की माता का नाम देवकी तथा पिता का नाम वसुदेव है। देवकी कंस की बहिन थी। कंस ने पति सहित उसको कारावास में बन्द कर रखा था, क्योंकि उसको ज्योतिषियों ने बताया था कि देवकी का कोई पुत्र ही उसका वध करेगा। कंस ने देवकी के सभी पुत्रों का वध किया, किन्तु जब कृष्ण उत्पन्न हुए तो वसुदेव रातों-रात उन्हें गोकुल ग्राम में नन्द-यशोदा के यहाँ छोड़ आये। देवकी के बारे में इससे अधिक कुछ विशेष वक्तव्य ज्ञात नहीं होता है। छान्दोग्य उपनिषद् में भी देवकीपुत्र कृष्ण(घोर आगिंरस के शिष्य) का उल्लेख है।


मथुरा के राजा उग्रसेन के छोटे भाई देवक की पुत्री, वासुदेव की पत्नी तथा कृष्ण की वास्तविक माता का नाम देवकी था। इसके अतिरिक्त शैव्य की कन्या, युधिष्ठिर की पत्नी, उद्गीथ ऋषि की पत्नी का भी देवकी के नाम से उल्लेख मिलता है। यद्यपि देवकी कृष्ण की वास्तविक माता हैं, तथापि कृष्ण-भक्त कवि यशोदा की तुलना में उसके व्यक्तित्व में मातृत्व का उभार नहीं दे सके। देवकी को कृष्ण-जन्म के पूर्व ही उनके अतिप्राकृत व्यक्तित्व का ज्ञान था फिर भी जन्म के समय उनके अतिप्राकृत चिह्नों को देखकर वह चिन्तित हो जाती हैं(सू0सा0, प0 622-625)। इस अवसर पर उनके मातृत्व का आभासमात्र मिलता हैं। वह वासुदेव से किसी भी प्रकार कृष्ण की रक्षा की प्रार्थना करती हैं (सू0सा0प0 627)। कृष्ण-कथा में देवकी की दूसरी झलक मथुरा में उसके कृष्ण से पुनर्मिलन के अवसर पर होती है (सू0 सा0, प0 3708)। कृष्ण के अलौकिक व्यक्तित्व के परिचय एवं बलराम के स्वयं को शेषनाग का अवतार कहने पर वह अपना विलाप त्यागकर मौन हो जाती हैं। इसलिए कथा के उत्तरार्द्ध में देवकी का मातृत्व दब सा गया हैं अन्त में देवकी का वात्सल्य भक्ति में बदल जाता है। वह कृष्ण से स्वयं को गोकुल में शरण देने की प्रार्थना करती हैं (सू0सा0प0 3740)।


कृष्ण-कथा में अंकित सभी पात्र किसी न किसी कारणवश शापग्रस्त होकर जन्मे थे। कश्यप ने वरूण से कामधेनु मांगी थी फिर लौटायी नहीं, अत: वरूण के शाप से वे ग्वाले हुए। देवी भागवत में दिति और अदिति को दक्ष कन्या माना गया है। अदिति का पुत्र इंद्र था जिसने मां की प्रेरणा से दिति के गर्भ के 49 भाग कर दिए थे जो मरूत हुए। अदिति से रूष्ट होकर दिति ने शाप दिया था-"जिस प्रकार गुप्त रूप से तूने मेरा गर्भ नष्ट करने का प्रयत्न करवाया है उसी प्रकार पृथ्वी पर जन्म लेकर तू बार-बार मृतवत्सा होगी। फलत: उसने देवकी के रूप में जन्म लिया। -(देवी भागवत)