देवता

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देवता

'देव' शब्द में 'तल्' प्रत्यय लगाकर 'देवता' शब्द की व्युत्पत्ति होती है। अत: दोनों में अर्थ-साम्य है। निरूक्तकार ने इसकी व्याख्या करते हुए कहा, 'जो कुछ देता है वही देवता है अर्थात देव स्वयं द्युतिमान हैं- शक्तिसंपन्न हैं- किंतु अपने गुण वे स्वयं अपने में समाहित किये रहते हैं जबकि देवता अपनी शक्ति, द्युति आदि संपर्क में आये व्यक्तियों को भी प्रदान करते हैं। देवता देवों से अधिक विराट हैं क्योंकि उनकी प्रवृत्ति अपनी शक्ति, द्युति, गुण आदि का वितरण करने की होती है। जब कोई देव दूसरे को अपना सहभागी बना लेता है, वह देवता कहलाने लगता है।

  • पाणिनि दोनों शब्दों को पर्यायवाची मानते हैं:

देवो दानाद्वा दीपनाद्वा द्योतनाद्वा द्युस्थानो भवतीति वा।
यो देव: सा देवता इति।<balloon title="निरूक्त 7-15" style=color:blue>*</balloon> जब देव वेद-मंत्र का विषय बन जाता है, तब वह देवता कहलाने लगता है जिससे किसी शक्ति अथवा पदार्थ को प्राप्त करने की प्रार्थना की जाय और वह जी खोलकर देना आंरभ करे, तब वह देवता कहलाता है।<balloon title="ऋग्वेद 9.1.23" style=color:blue>*</balloon> वेदमंत्र विशेष में, जिसके प्रति याचना है, उस मंत्र का वही देवता माना जाता है

  • यजुर्वेद के अनुसार मुख्य देवताओं की संख्या बारह हैं।

अग्निदेवता वातो देवता सूर्यो देवता चन्द्रमा देवता
वसवो देवता, रुद्रा देवता, आदित्या देवता मरुतो देवता।
विश्वेदेवा देवता बृहस्पतिर्दैवतेन्द्रो देवता वारुणों देवता।