"द्वारिकाधीश मन्दिर" के अवतरणों में अंतर
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|Near=[[बिहारी जी मन्दिर, मथुरा|बिहारी जी मन्दिर]], [[गोवर्धननाथ जी मन्दिर]], [[दीर्घ विष्णु मन्दिर]], [[श्रीनाथ जी भण्डार मन्दिर]], [[गोपी नाथ जी मन्दिर, मथुरा|गोपी नाथ जी मन्दिर]], [[सती बुर्ज]], [[विश्राम घाट]], [[स्वामी घाट]] | |Near=[[बिहारी जी मन्दिर, मथुरा|बिहारी जी मन्दिर]], [[गोवर्धननाथ जी मन्दिर]], [[दीर्घ विष्णु मन्दिर]], [[श्रीनाथ जी भण्डार मन्दिर]], [[गोपी नाथ जी मन्दिर, मथुरा|गोपी नाथ जी मन्दिर]], [[सती बुर्ज]], [[विश्राम घाट]], [[स्वामी घाट]] | ||
− | |A=निर्माणकाल- | + | |A=निर्माणकाल- 1814 |
− | |C=यह समतल छत वाला दोमंजिला मन्दिर है जिसका आधार आयताकार (118’ X 76’) है । पूर्वमुखी द्वार के खुलने पर खुला हुआ आंगन चारों ओर से कमरों से घिरा हुआ दिखता है । यह मंदिर छोटे-छोटे शानदार उत्कीर्णित दरवाजों से घिरा हुआ है । मुख्य द्वार से जाती सीढ़ियां चौकोर वर्गाकार के प्रांगण में पहुँचती हैं । इसका गोलाकार मठ इसकी शोभा बढ़ाता है । इसके बीच में चौकोर इमारत है जिसके सहारे स्वर्ण परत चढ़े त्रिगुण पंक्त्ति में खम्बे हैं जिन्हें छत-पंखों व उत्कीर्णित चित्रांकनों से सुसज्जित किया गया है । इसे बनाने में लखोरी ईंट व चूने, लाल एवं बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया है । मन्दिर के बाहरी स्वरूप को बंगलाधार मेहराब दरवाजों, पत्थर की जालियों, छज्जों व जलरंगों से बने चित्रों से सजाया है । | + | |C=यह समतल छत वाला दोमंजिला मन्दिर है जिसका आधार आयताकार (118’ X 76’) है । पूर्वमुखी द्वार के खुलने पर खुला हुआ आंगन चारों ओर से कमरों से घिरा हुआ दिखता है । यह मंदिर छोटे-छोटे शानदार उत्कीर्णित दरवाजों से घिरा हुआ है । मुख्य द्वार से जाती सीढ़ियां चौकोर वर्गाकार के प्रांगण में पहुँचती हैं । इसका गोलाकार मठ इसकी शोभा बढ़ाता है । इसके बीच में चौकोर इमारत है जिसके सहारे स्वर्ण परत चढ़े त्रिगुण पंक्त्ति में खम्बे हैं जिन्हें छत-पंखों व उत्कीर्णित चित्रांकनों से सुसज्जित किया गया है । इसे बनाने में लखोरी ईंट व चूने, लाल एवं बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया है । मन्दिर के बाहरी स्वरूप को बंगलाधार मेहराब दरवाजों, पत्थर की जालियों, छज्जों व जलरंगों से बने चित्रों से सजाया है । |
|Owner=अध्यक्ष गोस्वामी ब्रजेश कुमार | |Owner=अध्यक्ष गोस्वामी ब्रजेश कुमार | ||
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०८:०१, २९ जनवरी २०१० का अवतरण
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द्वारिकाधीश मन्दिर / Dwarikadish Temple
मथुरा नगर के राजाधिराज बाजार में स्थित यह मन्दिर अपने सांस्कृतिक वैभव कला एवं सौन्दर्य के लिए अनुपम है । ग्वालियर राज के कोषाध्यक्ष सेठ गोकुल दास पारीख ने इसका निर्माण 1814–15 में प्रारम्भ कराया, जिनकी मृत्यु पश्चात इनकी सम्पत्ति के उत्तराधिकारी सेठ लक्ष्मीचन्द्र ने मन्दिर का निर्माण कार्य पूर्ण कराया । वर्ष 1930 में सेवा पूजन के लिए यह मन्दिर पुष्टिमार्ग के आचार्य गिरधरलाल जी कांकरौली वालों को भेंट किया गया । तब से यहां पुष्टिमार्गीय प्रणालिका के अनुसार सेवा पूजा होती है । श्रावण के महीने में प्रति वर्ष यहां लाखों श्रृद्धालु सोने–चाँदी के हिंडोले देखने आते हैं ।
इतिहास
यह मथुरा का सबसे विस्तृत पुष्टिमार्ग मंदिर है । भगवान कृष्ण को ही द्वारिकाधीश (द्वारिका का राजा) कहते हैं । यह उपाधी पुष्टीमार्ग के तीसरी गद्दी के मूल देवता से मिली है
वीथिका द्वारिकाधीश मन्दिर
द्वारिकाधीश मन्दिर, मथुरा
Dwarikadish Temple, Mathuraआसमानी घटा, द्वारिकाधीश मन्दिर, मथुरा
Aasmani Ghata, Dwarikadish Temple, Mathuraद्वारिकाधीश मन्दिर, मथुरा
Dwarikadish Temple, Mathuraगुलाबी घटा, द्वारिकाधीश मन्दिर, मथुरा
Gulabi Ghata, Dwarikadish Temple, Mathuraहरी घटा, द्वारिकाधीश मन्दिर, मथुरा
Hari Ghata, Dwarikadish Temple, Mathuraकाली घटा, द्वारिकाधीश मन्दिर, मथुरा
Kali Ghata, Dwarikadish Temple, Mathuraकाली घटा, द्वारिकाधीश मन्दिर, मथुरा
Kali Ghata, Dwarikadish Temple, Mathuraकेसरिया घटा, द्वारिकाधीश मन्दिर, मथुरा
Kesariya Ghata, Dwarikadish Temple, Mathuraलहरिया घटा, द्वारिकाधीश मन्दिर, मथुरा
Lehariya Ghata, Dwarikadish Temple, Mathuraलहरिया घटा, द्वारिकाधीश मन्दिर, मथुरा
Lehariya Ghata, Dwarikadish Temple, Mathuraलाल घटा, द्वारिकाधीश मन्दिर, मथुरा
Lal Ghata, Dwarikadish Temple, Mathuraद्वारिकाधीश मन्दिर, मथुरा
Dwarikadish Temple, Mathura