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अपनी सौतेली माँ के वाक्यबाण से बिद्ध होने पर अपनी माता सुनीति के निर्देशानुसार पञ्चवर्षीय बालक [[ध्रुव]] देवर्षि [[नारद]] से यहीं [[यमुना]] तट पर मिला था । देवर्षि नारद के आदेशानुसार ध्रुव ने इसी घाट पर स्नान किया तथा देवर्षि नारद से द्वादशाक्षर मन्त्र प्राप्त किया । पुन: यहीं से [[मधुवन]] के गंभीर निर्जन एवं उच्च भूमिपर कठोर रूप से भगवदाराधनाकर भगवद्दर्शन प्राप्त किया था । यहाँ स्नान करने पर मनुष्य ध्रुवलोक में पूजित होते हैं । यहाँ [[श्राद्ध]] करने से पितृगण प्रसन्न होते है। । [[गया]] में [[पिण्ड दान]] करने का फल भी उसे यहाँ प्राप्त हो जाता है । यहाँ प्राचीन [[निम्बादित्य]] सम्प्रदाय के बहुत से महात्मा गुरुपरम्परा की धारा में रहते आये हैं । प्राचीन निम्बादित्य सम्प्रदाय का [[ब्रजमण्डल]] में यही एक स्थान बचा हुआ है ।
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==वास्तु==
 
==वास्तु==
यह घाट ध्रुव टीले के नीचे स्थित है । इसे बनाने में लखोरी ईंट व चूने, लाल एवं बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया है । यह बहुपत्रित मेहराबों व सुन्दर छज्जों से सुसज्जित है ।
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यह घाट ध्रुव टीले के नीचे स्थित है। इसे बनाने में लखोरी ईंट व चूने, लाल एवं बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। यह बहुपत्रित मेहराबों व सुन्दर छज्जों से सुसज्जित है।
==वीथिका==
 
 
==टीका-टिपण्णी==
 
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{{ब्रज के दर्शनीय स्थल}}
 
[[en:Dhruva Tirth]]
 
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१२:५४, २ नवम्बर २०१३ के समय का अवतरण

स्थानीय सूचना
ध्रुव तीर्थ

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मार्ग स्थिति: यह मथुरा के परिक्रमा मार्ग पर स्थित है।
आस-पास:
पुरातत्व: निर्माणकाल- उन्नीसवीं शताब्दी
वास्तु:
स्वामित्व:
प्रबन्धन:
स्त्रोत: इंटैक
अन्य लिंक:
अन्य:
सावधानियाँ:
मानचित्र:
अद्यतन: 2009

ध्रुव तीर्थ / Dhruv Tirth

यत्र ध्रुवेन स्न्तपृमिच्छया परमं तप:।
तत्रैत्र स्नानमात्रेण ध्रुवलोके महीयते।।
ध्रुवतीर्थं च वसुधे ! य: श्राद्धं कुरुते नर:।
पितृन सन्तारयेत् सर्वान् पितृपक्षे विशेषत:।। [१] अपनी सौतेली माँ के वाक्यबाण से बिद्ध होने पर अपनी माता सुनीति के निर्देशानुसार पञ्चवर्षीय बालक ध्रुव देवर्षि नारद से यहीं यमुना तट पर मिला था। देवर्षि नारद के आदेशानुसार ध्रुव ने इसी घाट पर स्नान किया तथा देवर्षि नारद से द्वादशाक्षर मन्त्र प्राप्त किया। पुन: यहीं से मधुवन के गंभीर निर्जन एवं उच्च भूमिपर कठोर रूप से भगवदाराधनाकर भगवद्दर्शन प्राप्त किया था। यहाँ स्नान करने पर मनुष्य ध्रुवलोक में पूजित होते हैं। यहाँ श्राद्ध करने से पितृगण प्रसन्न होते है।। गया में पिण्ड दान करने का फल भी उसे यहाँ प्राप्त हो जाता है। यहाँ प्राचीन निम्बादित्य सम्प्रदाय के बहुत से महात्मा गुरुपरम्परा की धारा में रहते आये हैं। प्राचीन निम्बादित्य सम्प्रदाय का ब्रजमण्डल में यही एक स्थान बचा हुआ है।

वास्तु

यह घाट ध्रुव टीले के नीचे स्थित है। इसे बनाने में लखोरी ईंट व चूने, लाल एवं बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। यह बहुपत्रित मेहराबों व सुन्दर छज्जों से सुसज्जित है।

टीका-टिपण्णी

  1. आदि वराह पुराण

सम्बंधित लिंक