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[[चंद्रमा]] के पथ में पड़ने वाले तारों का समूह जो सौर जगत के भीतर नहीं है। इनकी कुल संख्या 27 है। [[पुराण|पुराणों]] में इन्हे [[दक्ष]] प्रजापति की पुत्रियाँ बताया गया है जो सभी सोम  अर्थात चंद्रमा को ब्याही गयीं थी। इनमें से चंद्रमा को [[रोहिणी]] सबसे प्रिय थी जिसके कारण चंद्रमा को शापग्रस्त भी होना पड़ा था। नक्षत्रों का महत्व वैदिक काल से ही रहा है। ग्रह और नक्षत्रों के आधार पर ही शुभ और अशुभ का निर्नय होता रहा है। 27 नक्षत्र ये हैं-
1॰अश्विनी
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#अश्विनी
2॰भरणी
+
#भरणी
3॰कृतिका
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#कृतिका
4॰रोहिणी
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#रोहिणी
5॰मृगशिरा
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#मृगशिरा
6॰आर्द्रा
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#आर्द्रा
7॰पुनर्वसु
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#पुनर्वसु
8॰पुष्य
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#पुष्य
9॰अश्लेशा
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#अश्लेशा
10॰मघा
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#मघा
11॰पूर्वा फाल्गुनी
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#पूर्वा फाल्गुनी
12॰उत्तरा फाल्गुनी
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#उत्तरा फाल्गुनी
13॰हस्त
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#हस्त
14॰चित्रा
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#चित्रा
15॰स्वाति
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#स्वाति
16॰विशाखा
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#विशाखा
17॰अनुराधा
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#अनुराधा
18॰ज्येष्ठा
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#ज्येष्ठा
19॰मूल
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#मूल
20॰पूर्वाषाढ़ा
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#पूर्वाषाढ़ा
21॰उत्तराषाढ़ा
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22॰श्रवण
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#श्रवण
23॰धनिष्ठा
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#धनिष्ठा
24॰शतभिषा
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#शतभिषा
25॰पूर्वा भाद्रपद
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#पूर्वा भाद्रपद
26॰उत्तरा भाद्रपद
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#उत्तरा भाद्रपद
27॰रेवती
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#रेवती
 
==नक्षत्रदान==
 
==नक्षत्रदान==
 
पुराणों के अनुसार विभिन्न नक्षत्रों में भिन्न भिन्न वस्तुओं का दान करने से अत्यन्त पुण्य तथा स्वर्ग की प्राप्ति होती है। रोहिणी नक्षत्र में घी,दूध,रत्न का; मृगशिरा में वत्स सहित गाय का, आर्द्रा में खिचड़ी का, हस्त में हाथी और रथ का; अनुराधा में उत्तरीय सहित वस्त्र का; पूर्वाषाढ़ा में दही और साने हुए सत्तू का बर्तन समेत; रेवती में कांसे का और उत्तरा भाद्रपद में मांस का दान करने का नियम है।
 
पुराणों के अनुसार विभिन्न नक्षत्रों में भिन्न भिन्न वस्तुओं का दान करने से अत्यन्त पुण्य तथा स्वर्ग की प्राप्ति होती है। रोहिणी नक्षत्र में घी,दूध,रत्न का; मृगशिरा में वत्स सहित गाय का, आर्द्रा में खिचड़ी का, हस्त में हाथी और रथ का; अनुराधा में उत्तरीय सहित वस्त्र का; पूर्वाषाढ़ा में दही और साने हुए सत्तू का बर्तन समेत; रेवती में कांसे का और उत्तरा भाद्रपद में मांस का दान करने का नियम है।

०९:४९, १९ नवम्बर २००९ का अवतरण


नक्षत्र / Nakshatra

चंद्रमा के पथ में पड़ने वाले तारों का समूह जो सौर जगत के भीतर नहीं है। इनकी कुल संख्या 27 है। पुराणों में इन्हे दक्ष प्रजापति की पुत्रियाँ बताया गया है जो सभी सोम अर्थात चंद्रमा को ब्याही गयीं थी। इनमें से चंद्रमा को रोहिणी सबसे प्रिय थी जिसके कारण चंद्रमा को शापग्रस्त भी होना पड़ा था। नक्षत्रों का महत्व वैदिक काल से ही रहा है। ग्रह और नक्षत्रों के आधार पर ही शुभ और अशुभ का निर्नय होता रहा है। 27 नक्षत्र ये हैं-

  1. अश्विनी
  2. भरणी
  3. कृतिका
  4. रोहिणी
  5. मृगशिरा
  6. आर्द्रा
  7. पुनर्वसु
  8. पुष्य
  9. अश्लेशा
  10. मघा
  11. पूर्वा फाल्गुनी
  12. उत्तरा फाल्गुनी
  13. हस्त
  14. चित्रा
  15. स्वाति
  16. विशाखा
  17. अनुराधा
  18. ज्येष्ठा
  19. मूल
  20. पूर्वाषाढ़ा
  21. उत्तराषाढ़ा
  22. श्रवण
  23. धनिष्ठा
  24. शतभिषा
  25. पूर्वा भाद्रपद
  26. उत्तरा भाद्रपद
  27. रेवती

नक्षत्रदान

पुराणों के अनुसार विभिन्न नक्षत्रों में भिन्न भिन्न वस्तुओं का दान करने से अत्यन्त पुण्य तथा स्वर्ग की प्राप्ति होती है। रोहिणी नक्षत्र में घी,दूध,रत्न का; मृगशिरा में वत्स सहित गाय का, आर्द्रा में खिचड़ी का, हस्त में हाथी और रथ का; अनुराधा में उत्तरीय सहित वस्त्र का; पूर्वाषाढ़ा में दही और साने हुए सत्तू का बर्तन समेत; रेवती में कांसे का और उत्तरा भाद्रपद में मांस का दान करने का नियम है।

नक्षत्र व्रत

अलग अलग नक्षत्रों में विभिन्न देवताओं आदि के पूजन का विधान है- अश्विनी में अश्विनी कुमारों का; भरणी में यम का; कृतिका में अग्नि का;आर्द्रा में शिव का; पुनर्वसु में अदिति का; पुष्य में बृहस्पति का; श्लेषा में सर्प का; मघा में पितरों का; पूर्वा फाल्गुनी में भग का, उत्तरा फाल्गुनी में अर्यमा का; हस्त में सूर्य का; चित्रा में इंद्र का; अनुराधा में मित्र का; ज्येष्ठा में इंद्र का; मूल में राक्षसों का; पूर्वाषाढ़ा में जल का; उत्तराषाढ़ा में विश्वेदेवों का; श्रवण में विष्णु का; धनिष्ठा में वसु का; शतभिषा में वरुण का; पूर्वा भाद्रपद में अजैकपात का; उत्तरा भाद्रपद में अहिर्बुध्य का और रेवती में पूषा का व्रत और पूजन किया जाता है। प्राचीन काल से इन व्रतों को आरोग्य, आयुवृध्दि और सुखसम्मान कारक बताया जाता है।