"परमानंद दास" के अवतरणों में अंतर

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
छो (Text replace - '[[category' to '[[Category')
पंक्ति ४: पंक्ति ४:
  
 
यह [[वल्लभाचार्य]] जी के शिष्य और [[अष्टछाप]] कवियों में से एक थे। सन् 1551 ई. के आसपास इनका समय माना जाता है। इनका निवास स्थान [[कन्नौज]] था। इसी कारण से ये अनुमान किया जाता हैं कि ये [[कान्यकुब्ज ब्राह्मण]] थे। परमानंद जी अत्यंत तन्मयता के साथ और बड़ी ही सरल कवितायें करते थे। कहते हैं कि इनके किसी एक पद को सुनकर आचार्यजी कई दिनों तक बदन की सुध भूले रहे। इनके फुटकल पद [[कृष्ण]] भक्तों के मुँह से प्राय: सुनने में आते हैं।
 
यह [[वल्लभाचार्य]] जी के शिष्य और [[अष्टछाप]] कवियों में से एक थे। सन् 1551 ई. के आसपास इनका समय माना जाता है। इनका निवास स्थान [[कन्नौज]] था। इसी कारण से ये अनुमान किया जाता हैं कि ये [[कान्यकुब्ज ब्राह्मण]] थे। परमानंद जी अत्यंत तन्मयता के साथ और बड़ी ही सरल कवितायें करते थे। कहते हैं कि इनके किसी एक पद को सुनकर आचार्यजी कई दिनों तक बदन की सुध भूले रहे। इनके फुटकल पद [[कृष्ण]] भक्तों के मुँह से प्राय: सुनने में आते हैं।
----
+
'''कृतियाँ-'''<br />
कृतियाँ-
 
 
*परमानंदसागर
 
*परमानंदसागर
  

१४:१७, ८ अप्रैल २०१० का अवतरण


Logo.jpg पन्ना बनने की प्रक्रिया में है। आप इसको तैयार कर सकते हैं। हिंदी (देवनागरी) टाइप की सुविधा संपादन पन्ने पर ही उसके नीचे उपलब्ध है।

परमानंद दास / Parmanand Das

यह वल्लभाचार्य जी के शिष्य और अष्टछाप कवियों में से एक थे। सन् 1551 ई. के आसपास इनका समय माना जाता है। इनका निवास स्थान कन्नौज था। इसी कारण से ये अनुमान किया जाता हैं कि ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। परमानंद जी अत्यंत तन्मयता के साथ और बड़ी ही सरल कवितायें करते थे। कहते हैं कि इनके किसी एक पद को सुनकर आचार्यजी कई दिनों तक बदन की सुध भूले रहे। इनके फुटकल पद कृष्ण भक्तों के मुँह से प्राय: सुनने में आते हैं। कृतियाँ-

  • परमानंदसागर