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+ | *कहते हैं कि इनके किसी एक पद को सुनकर आचार्यजी कई दिनों तक बदन की सुध भूले रहे। | ||
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परमानंद दास / Parmanand Das
- यह वल्लभाचार्य जी के शिष्य और अष्टछाप कवियों में से एक थे।
- सन् 1551 ई. के आसपास इनका समय माना जाता है।
- इनका निवास स्थान कन्नौज था। इसी कारण से ये अनुमान किया जाता हैं कि ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे।
- परमानंद जी अत्यंत तन्मयता के साथ और बड़ी ही सरल कवितायें करते थे।
- कहते हैं कि इनके किसी एक पद को सुनकर आचार्यजी कई दिनों तक बदन की सुध भूले रहे।
- इनके फुटकल पद कृष्ण भक्तों के मुँह से प्राय: सुनने में आते हैं।
कृतियाँ-
- परमानंदसागर
सम्बंधित लिंक
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