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पाणिनि ( 500 ई पू) [[संस्कृत]] व्याकरण के विद्वान थे। | पाणिनि ( 500 ई पू) [[संस्कृत]] व्याकरण के विद्वान थे। | ||
इनका जन्म पंजाब के शालातुला में हुआ था जो आधुनिक पेशावर (पाकिस्तान) के क़रीब तत्कालीन उत्तर पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था। इनका जीवनकाल 520-460 ईसा पूर्व माना जाता है। | इनका जन्म पंजाब के शालातुला में हुआ था जो आधुनिक पेशावर (पाकिस्तान) के क़रीब तत्कालीन उत्तर पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था। इनका जीवनकाल 520-460 ईसा पूर्व माना जाता है। | ||
− | इनके व्याकरण को अष्टाध्यायी कहते हैं। इन्होंने भाषा के शुद्ध प्रयोगों की सीमा का निर्धारण किया, जो प्रयोग अष्टाधायायी की कसौटी पर खरे नहीं उतरे उन्हें विद्वानों ने 'अपणिनीय' कहकर अशुद्ध घोषित कर दिया। संस्कृत भाषा को व्याकरण सम्मत रूप देने में पाणिनि का योगदान अतुलनीय माना जाता है। | + | इनके व्याकरण को अष्टाध्यायी कहते हैं। इन्होंने भाषा के शुद्ध प्रयोगों की सीमा का निर्धारण किया, जो प्रयोग अष्टाधायायी की कसौटी पर खरे नहीं उतरे उन्हें विद्वानों ने 'अपणिनीय' कहकर अशुद्ध घोषित कर दिया। संस्कृत भाषा को व्याकरण सम्मत रूप देने में पाणिनि का योगदान अतुलनीय माना जाता है।<br /> |
+ | अष्टाध्यायी मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है। इसमें प्रकारांतर से तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्र मिलता है। उस समय के भूगोल, सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा और राजनीतिक जीवन, दार्शनिक चिंतन, खान-पान, रहन-सहन आदि के प्रसंग स्थान-स्थान पर अंकित हैं। | ||
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१२:१३, १४ दिसम्बर २००९ का अवतरण
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पाणिनि / Panini
पाणिनि ( 500 ई पू) संस्कृत व्याकरण के विद्वान थे।
इनका जन्म पंजाब के शालातुला में हुआ था जो आधुनिक पेशावर (पाकिस्तान) के क़रीब तत्कालीन उत्तर पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था। इनका जीवनकाल 520-460 ईसा पूर्व माना जाता है।
इनके व्याकरण को अष्टाध्यायी कहते हैं। इन्होंने भाषा के शुद्ध प्रयोगों की सीमा का निर्धारण किया, जो प्रयोग अष्टाधायायी की कसौटी पर खरे नहीं उतरे उन्हें विद्वानों ने 'अपणिनीय' कहकर अशुद्ध घोषित कर दिया। संस्कृत भाषा को व्याकरण सम्मत रूप देने में पाणिनि का योगदान अतुलनीय माना जाता है।
अष्टाध्यायी मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है। इसमें प्रकारांतर से तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्र मिलता है। उस समय के भूगोल, सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा और राजनीतिक जीवन, दार्शनिक चिंतन, खान-पान, रहन-सहन आदि के प्रसंग स्थान-स्थान पर अंकित हैं।