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|| आदिम काल [ कृष्ण पूर्व काल] || [[पौराणिक इतिहास 2]] ||  [[पौराणिक इतिहास 3]]
 
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==आदिम काल (कृष्ण पूर्व काल)==
 
अय सबसे पुरानी क़ौम दुनिया की सलाम
 
  
ॠषियों ने बताये तुझे वह राज़े-दवाम
 
 
कहते हैं जिन्हें रुहे-रवाने-तहज़ीब
 
 
मुज़्मर जिनमें है जिन्दगी के पैग़ाम
 
 
-फ़िराक गोरखपुरी
 
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[[आर्य]] और उनका प्रारंभिक निवास [वैदिक संस्कृति] :- जिसे `सप्त सिंघव' देश कहा गया है, वह भाग भारतवर्ष का उत्तर पश्चिमी भाग था । मान्यताऔं के अनुसार यही सृष्टि का आरंभिक स्थल और आर्यों का आदि देश है । सप्त सिंघव देश का फैलाव कश्मीर, पाकिस्तान और पंजाब के अधिकांश भाग में था । आर्य, उत्तरी ध्रुव, मध्य एशिया अथवा किसी अन्य स्थान से भारत आये हों, भारतीय मान्यता में पूर्ण रूप से स्वीकार्य नहीं है । भारत में ही नहीं विश्व भर में संख्या 'सात' का आश्चर्यजनक मह्त्व है जैसे सात सुर, सात रंग, सप्त-ॠषि, सात सागर, आदि इसी तरह सात नदियों के कारण सप्त सिंघव देश के नामकरण हुआ था । वे नदियाँ हैं,
 
 
*[[सिंधु (सिंध)]],
 
*[[विपासा (व्यास)]],
 
*[[आतुल (सतलज)]],
 
*[[वितस्ता (झेलम)]],
 
*[[अस्क्नी (चिनाव)]],
 
*[[परूसी (रावी)]]
 
*[[सरस्वती]]
 
 
नई संभावनाओं से यह विचार और दृढ़ होता है कि प्राचीन सप्त सिंधव और निकटवर्ती प्रदेश [[ब्रह्मावर्त]] में वेदों का उदय और वैदिक संस्कृति का प्रादुर्भाव हुआ होगा । [[वेदों]] में सिंधु और [[सरस्वती]] नदियों का बहुदा उल्लेख और गुणगान है । इन्ही नदियों के मध्य का भू-भाग वैदिक संस्कृति का प्रदेश है । वहाँ आर्यों एवं अनार्यों की संश्लिष्ण संस्कृति रही थी । वह संस्कृति सिंधु घाटी स्थित [[मोहनजोदड़ो]] और [[हड़प्पा]] से लेकर दक्षिण-पूर्व में मेरठ जिले के अलमगीरपुर तक तथा दक्षिण -पश्चिम में सुदूर [[गुजरात]] -काठियावाड़ के रंगपुर-लोथल तक फैली थी ।
 
 
सरस्वती के निकट ही दृषद्वती नदी बहती थी । मनु ने [[सरस्वती]] और दृषद्वती नदियों के दोआब को `ब्रह्मावर्त ।' प्रदेश की संज्ञा दी है । ब्रह्मावर्त का निकटवर्ती भू-भाग `[[ब्रह्मर्षि प्रदेश]]' कहलाता था । उसके अंतर्गत [[कुरू]], [[मत्स्य]], [[पंचाल]] और [[शूरसेन]] जनपदों की स्थिति मानी गई है । [[मनुस्मृति]] [2-17,16, 20] में जनपदों के निवासियों के आचार-विचार समस्त पृथ्वी के नर-नारियों के लिए आदर्श बतलाये गये हैं । वैदिक संस्कृति का प्रादुर्भाव चाहे सप्त सिंधव प्रदेश में हुआ, किंतु वह ब्रह्मावर्त और ब्रह्मर्षि प्रदेशों में विकसित हुई थी । सिंधु, सरस्वती और दृषद्वती से लेकर [[यमुना]] नदी तक के विशाल पावन प्रदेश ने वैदिक संस्कृति के प्रादुर्भाव और विकास में महत्वपूर्ण योग दिया था । इस प्रकार शूरसेन जनपद, जो [[मथुरा]] मंडल अथवा [[ब्रजमंडल]] का प्राचीन नाम है, वैदिक संस्कृति के विकास का अन्यतम पुरातन प्रदेश रहा है ।
 

१०:५५, १८ मई २००९ का अवतरण