प्रतिष्ठानपुर

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प्रतिष्ठानपुर / Pratishthanpur

पुरूवरा की राजधानी प्रतिष्ठानपुर गंगा के उत्तरी तट पर थी । भारद्वाज ऋषि का आश्रम भी यहीं पर था । प्रयाग- संगम स्थान, अश्वमेध फलदाता, स्वर्गप्रदाता सब कुछ है । प्रतिष्ठानपुर नगर में वाराह मिहिर एवं भद्रबाहु दोनों सगे भाई थे । राजा त्रिलोचन पाल 1027 ई. में प्रयाग के प्रतिष्ठान पुर में रहते थे । इन्होंने प्रतिष्ठानपुर के एक तीर्थ पुरोहित को ग्राम दान में दिया था । इनके वंश के तीर्थ पुरोहित प्रतिष्ठानपुर ( झूँसी ) में आज भी विद्यमान है । राजा पुरुरवा सोम-वंश के आदि पुरुष हुए हैं । उनकी राजधानी प्रयाग के पास, प्रतिष्ठानपुर में थी । पुराणों में कहा गया है कि जब मनु और श्रद्धा को सन्तान की इच्छा हुई, उन्होंने वसिष्ठ ऋषि से यज्ञ करवाया । श्रद्धा की मनोकामना थी कि वे कन्या की माता बनें, मनु चाहते थे कि उन्हें पुत्र प्राप्त हो । किन्तु, इस यज्ञ से कन्या ही उत्पन्न हुई । पीछे, मनु की निराशा से द्रवित होकर वसिष्ठ ने उसे पुत्र बना दिया । मनु के इस पुत्र का नाम सुद्युम्न पड़ा । प्रतिष्ठानपुर (इलाहाबाद में गंगा पार का ( झूँसी क्षेत्र) के नरेश ययाति की पुत्री माधवी एक राजपुत्री थी । राजपुरुषों की संगिनी थी । राजमाता थी । किन्तु जीवन भर अरण्यबाला बनी तपस्या करती रही । गंगा और यमुना के मध्यवर्ती पुरातन प्रदेश में आर्य संस्कृति का सर्वोत्तम रुप सजाया और सँवारा गया था । उनके संगम पर ही आर्य सभ्यता के आदिम केन्द्र 'प्रतिष्ठानपुर' (वर्तमान प्रयाग के समीप 'झूँसी') की स्थापना हुई थी ।