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'''फतेहपुर सीकरी / Fatehpur Sikri'''<br />
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'''फ़तेहपुर सीकरी / Fatehpur Sikri'''<br />
[[आगरा]] से 22 मील दक्षिण, मुग़ल सम्राट [[अकबर]] के बसाए हुए भव्य नगर के खंडहर आज भी अपने प्राचीन वैभव की झाँकी प्रस्तुत करते हैं।  अकबर से पूर्व यहाँ फतेहपुर और सीकरी नाम के दो गाँव बसे हुए थे जो अब भी हैं। इन्हें अंग्रेजी शासक ओल्ड विलेजेस के नाम से पुकारते थे। सन 1527 ई॰ में चित्तौड़-नरेश राणा संग्रामसिंह और [[बाबर]] में यहाँ से लगभग दस मील दूर कनवाहा नामक स्थान पर भारी युद्ध हुआ था जिसकी स्मृति में बाबर ने इस गाँव का नाम फतेहपुर कर दिया था। तभी से यह स्थान फतेहपुर सीकरी कहलाता है। कहा जाता है कि इस ग्राम के निवासी शेख सलीम चिश्ती के आशीर्वाद से अकबर के घर [[जहाँगीर|सलीम]] (जहाँगीर) का जन्म हुआ था। जहाँगीर की माता जोधाबाई (आमेर नरेश बिहारीमल की पुत्री) और अकबर, शेख सलीम के कहने से यहाँ 6 मास तक ठहरे थे जिसके प्रसादस्वरूप उन्हें पुत्र का मुख देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।
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[[चित्र:Fatehpur-Sikri-Agra.jpg|फ़तेहपुर सीकरी, [[आगरा]]<br /> Fatehpur Sikri, Agra|thumb]]
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[[आगरा]] से 22 मील दक्षिण, मुग़ल सम्राट [[अकबर]] के बसाए हुए भव्य नगर के खंडहर आज भी अपने प्राचीन वैभव की झाँकी प्रस्तुत करते हैं।  अकबर से पूर्व यहाँ फतेहपुर और सीकरी नाम के दो गाँव बसे हुए थे जो अब भी हैं। इन्हें अंग्रेजी शासक ओल्ड विलेजेस के नाम से पुकारते थे। सन 1527 ई॰ में चित्तौड़-नरेश राणा संग्रामसिंह और [[बाबर]] में यहाँ से लगभग दस मील दूर कनवाहा नामक स्थान पर भारी युद्ध हुआ था जिसकी स्मृति में बाबर ने इस गाँव का नाम फतेहपुर कर दिया था। तभी से यह स्थान फ़तेहपुर सीकरी कहलाता है। कहा जाता है कि इस ग्राम के निवासी शेख सलीम चिश्ती के आशीर्वाद से अकबर के घर [[जहाँगीर|सलीम]] (जहाँगीर) का जन्म हुआ था। जहाँगीर की माता जोधाबाई (आमेर नरेश बिहारीमल की पुत्री) और अकबर, शेख सलीम के कहने से यहाँ 6 मास तक ठहरे थे जिसके प्रसादस्वरूप उन्हें पुत्र का मुख देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।
 
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सीकरी में एक सूफ़ी सन्त शेख़ [[सलीम चिश्ती]] रहा करते थे। उनकी शोहरत सुनकर अकबर, एक पुत्र की कामना लेकर उनके पास पहुंचा और जब अकबर को बेटा हुआ तो अकबर ने उसका नाम सलीम रखा। सीकरी में जहां सलीम चिश्ती रहते थे उसी के पास अकबर ने सन 1571 में एक क़िला बनवाना शुरु किया। अकबर की कई रानियाँ और बेगम थीं, किंतु उनमें से किसी से भी पुत्र नही हुआ था। अकबर पीरों एवं फ़कीरों से पुत्र प्राप्ति के लिए दुआएँ माँगता फिरता था। शेख सलीम चिश्ती ने अकबर को दुआ दी। दैवयोग से अकबर की बड़ी रानी जो कछवाहा राजा बिहारीमल की पुत्री और भगवानदास की बहिन थी, गर्भवती हो गई, और उसने पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम शेख के नाम पर सलीम रखा गया जो बाद में जहाँगीर के नाम से अकबर का उत्तराधिकारी हुआ। अकबर शेख से बहुत प्रभावित था। उसने अपनी राजधानी सीकरी में ही रखने का निश्चय किया। सन 1571 में राजधानी का स्थानांतरण किया गया। उसी साल अकबर ने गुजरात को फ़तह किया। इस कारण नई राजधानी का नाम फतेहपुर सीकरी रखा गया। सन 1584 तक लगभग 14 वर्ष तक फतेहपुर सीकरी ही मुग़ल साम्राज्य की राजधानी रही। अकबर ने अनेक निर्माण कार्य कराये, जिससे वह आगरा के समान बड़ी नगरी बन गई थी। फतेहपुर सीकरी समस्त देश की प्रशासनिक गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र थी। सन 1584 में एक अंग्रेज़ व्यापारी अकबर की राजधानी आया, उसने लिखा है− 'आगरा और फतेहपुर दोनों बड़े शहर हैं। उनमें से हर एक लंदन से बड़ा और अधिक जनसंकुल है। सारे भारत और ईरान के व्यापारी यहाँ रेशमी तथा दूसरे कपड़े, बहुमूल्य रत्न, लाल, हीरा और मोती बेचने के लिए लाते हैं।'
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सीकरी में एक सूफ़ी सन्त शेख़ [[सलीम चिश्ती]] रहा करते थे। उनकी शोहरत सुनकर अकबर, एक पुत्र की कामना लेकर उनके पास पहुंचा और जब अकबर को बेटा हुआ तो अकबर ने उसका नाम सलीम रखा। सीकरी में जहां सलीम चिश्ती रहते थे उसी के पास अकबर ने सन 1571 में एक क़िला बनवाना शुरु किया। अकबर की कई रानियाँ और बेगम थीं, किंतु उनमें से किसी से भी पुत्र नहीं हुआ था। अकबर पीरों एवं फ़कीरों से पुत्र प्राप्ति के लिए दुआएँ माँगता फिरता था। शेख सलीम चिश्ती ने अकबर को दुआ दी। दैवयोग से अकबर की बड़ी रानी जो कछवाहा राजा बिहारीमल की पुत्री और भगवानदास की बहिन थी, गर्भवती हो गई, और उसने पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम शेख के नाम पर सलीम रखा गया जो बाद में जहाँगीर के नाम से अकबर का उत्तराधिकारी हुआ। अकबर शेख से बहुत प्रभावित था। उसने अपनी राजधानी सीकरी में ही रखने का निश्चय किया। सन 1571 में राजधानी का स्थानांतरण किया गया। उसी साल अकबर ने गुजरात को फ़तह किया। इस कारण नई राजधानी का नाम फ़तेहपुर सीकरी रखा गया। सन 1584 तक लगभग 14 वर्ष तक फ़तेहपुर सीकरी ही मुग़ल साम्राज्य की राजधानी रही। अकबर ने अनेक निर्माण कार्य कराये, जिससे वह आगरा के समान बड़ी नगरी बन गई थी। फ़तेहपुर सीकरी समस्त देश की प्रशासनिक गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र थी। सन 1584 में एक अंग्रेज़ व्यापारी अकबर की राजधानी आया, उसने लिखा है− 'आगरा और फतेहपुर दोनों बड़े शहर हैं। उनमें से हर एक लंदन से बड़ा और अधिक जनसंकुल है। सारे भारत और ईरान के व्यापारी यहाँ रेशमी तथा दूसरे कपड़े, बहुमूल्य रत्न, लाल, हीरा और मोती बेचने के लिए लाते हैं।'
 
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फतेहपुर सीकरी में [[अकबर]] के समय के अनेक भवनों, प्रासादों तथा राजसभा के भव्य अवशेष आज भी वर्तमान हैं। यहाँ की सर्वोच्च इमारत [[बुलंद दरवाजा]] है, जिसकी ऊंचाई भूमि से 280 फुट है। 52 सीढ़ियों के पश्चात दर्शक दरवाजे के अंदर पहुंचता है।
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फ़तेहपुर सीकरी में [[अकबर]] के समय के अनेक भवनों, प्रासादों तथा राजसभा के भव्य अवशेष आज भी वर्तमान हैं। यहाँ की सर्वोच्च इमारत [[बुलंद दरवाजा]] है, जिसकी ऊंचाई भूमि से 280 फुट है। 52 सीढ़ियों के पश्चात दर्शक दरवाजे के अंदर पहुंचता है।
 
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संत शेख सलीम चिश्‍ती के सम्‍मान में सम्राट अकबर ने इस शहर की नींव रखी। कुछ वर्षों के अंदर सुयोजनाबद्ध प्रशासनिक, आवासीय और धार्मिक भवन अस्तित्‍व में आए। इस क़िले के भीतर पंचमहल है जो एक पाँच मंज़िला इमारत है और बौद्ध विहार  शैली में बनी है। इसकी पांचवी मंज़िल से मीलों दूर तक का दृश्य दिखायी देता है। जामा मस्जिद संभवतः पहला भवन था, जो निर्मित किया गया। बुलंद दरवाजा लगभग 5 वर्ष बाद जोड़ा गया। अन्‍य महत्‍वपूर्ण भवनों में शेख सलीम चिश्‍ती की दरगाह, नौबत-उर-नक्‍कारख़ाना, टकसाल, कारख़ाना, खज़ाना, हकीम का घर,  दीवान-ए-आम, मरियम का निवास, जिसे सुनहरा मकान भी कहते हैं, जोधाबाई का महल, बीरबल का निवास आदि शामिल हैं।<br />
 
संत शेख सलीम चिश्‍ती के सम्‍मान में सम्राट अकबर ने इस शहर की नींव रखी। कुछ वर्षों के अंदर सुयोजनाबद्ध प्रशासनिक, आवासीय और धार्मिक भवन अस्तित्‍व में आए। इस क़िले के भीतर पंचमहल है जो एक पाँच मंज़िला इमारत है और बौद्ध विहार  शैली में बनी है। इसकी पांचवी मंज़िल से मीलों दूर तक का दृश्य दिखायी देता है। जामा मस्जिद संभवतः पहला भवन था, जो निर्मित किया गया। बुलंद दरवाजा लगभग 5 वर्ष बाद जोड़ा गया। अन्‍य महत्‍वपूर्ण भवनों में शेख सलीम चिश्‍ती की दरगाह, नौबत-उर-नक्‍कारख़ाना, टकसाल, कारख़ाना, खज़ाना, हकीम का घर,  दीवान-ए-आम, मरियम का निवास, जिसे सुनहरा मकान भी कहते हैं, जोधाबाई का महल, बीरबल का निवास आदि शामिल हैं।<br />
भक्ति में अकबर ने बिना विचारे ही सीकरी को राजधानी बना दिया था। इस स्थान में पानी की बड़ी कमी थी, जिसको पूरा करने के लिए पहाड़ी पर बाँध बना कर एक झील बनाई गई थी। उसी का पानी राजधानी में आता था। अगस्त 1582 में बाँध टूट गया, जिससे पर्याप्त हानि हुई। 14 वर्ष तक सीकरी में राजधानी रखने पर अकबर ने अनुभव किया कि यह स्थान उपुयक्त नहीं है, अत: सन् 1584 में पुन: राजधानी [[आगरा]] बनाई गई। राजधानी के हटते ही फतेहपुर सीकरी का ह्रास होने लगा आजकल वह एक छोटा सा कस्बा रह गया है।
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भक्ति में अकबर ने बिना विचारे ही सीकरी को राजधानी बना दिया था। इस स्थान में पानी की बड़ी कमी थी, जिसको पूरा करने के लिए पहाड़ी पर बाँध बना कर एक झील बनाई गई थी। उसी का पानी राजधानी में आता था। अगस्त 1582 में बाँध टूट गया, जिससे पर्याप्त हानि हुई। 14 वर्ष तक सीकरी में राजधानी रखने पर अकबर ने अनुभव किया कि यह स्थान उपुयक्त नहीं है, अत: सन् 1584 में पुन: राजधानी [[आगरा]] बनाई गई। राजधानी के हटते ही फ़तेहपुर सीकरी का ह्रास होने लगा आजकल वह एक छोटा सा कस्बा रह गया है।
  
 
==बुलंद दरवाजा और दरगाह==
 
==बुलंद दरवाजा और दरगाह==
 
[[FIle:Buland-Darwaja-Fatehpur-Sikri-Agra.jpg|बुलंद दरवाजा, [[आगरा]]<br /> Buland Darwaja, Agra|thumb|250px]]  
 
[[FIle:Buland-Darwaja-Fatehpur-Sikri-Agra.jpg|बुलंद दरवाजा, [[आगरा]]<br /> Buland Darwaja, Agra|thumb|250px]]  
फतेहपुर सीकरी में अकबर के समय के अनेक भवनों, प्रासादों तथा राजसभा के भव्य अवशेष आज भी वर्तमान हैं। यहाँ की सर्वोच्च इमारत [[बुलंद दरवाजा]] है, जिसकी ऊंचाई भूमि से 280 फुट है। 52 सीढ़ियों के पश्चात दर्शक दरवाजे के अंदर पहुंचता है। दरवाजे में पुराने जमाने के विशाल किवाड़ ज्यों के त्यों लगे हुए हैं। शेख सलीम की मान्यता के लिए अनेक यात्रियों द्वारा किवाड़ों पर लगवाई हुई घोड़े की नालें दिखाई देती हैं। बुलंद दरवाजे को, 1602 ई॰ में अकबर ने अपनी गुजरात-विजय के स्मारक के रूप में बनवाया था। इसी दरवाजे से होकर शेख की दरगाह में प्रवेश करना होता है। बाईं ओर जामा मस्जिद है और सामने शेख का मज़ार। मज़ार या समाधि के पास उनके संबंधियों की क़ब्रें हैं। मस्जिद और मज़ार के समीप एक घने वृक्ष की छाया में एक छोटा संगमरमर का सरोवर है। मस्जिद में एक स्थान पर एक विचित्र प्रकार का पत्थर लगा है जिसकों थपथपाने से नगाड़े की ध्वनि सी होती है। मस्जिद पर सुंदर नक्काशी है। शेख सलीम की समाधि संगमरमर की बनी है। इसके चतुर्दिक पत्थर के बहुत बारीक काम की सुंदर जाली लगी है जो अनेक आकार प्रकार की बड़ी ही मनमोहक दिखाई पड़ती है। यह जाली कुछ दूर से देखने पर जालीदार श्वेत रेशमी वस्त्र की भांति दिखाई देती है। समाधि के ऊपर मूल्यवान सीप, सींग तथा चंदन का अद्भुत शिल्प है जो 400 वर्ष प्राचीन होते हुए भी सर्वथा नया सा जान पड़ता है। श्वेत पत्थरों में खुदी विविध रंगोंवाली फूलपत्तियां नक्काशी की कला के सर्वोत्कृष्ट उदाहरणों में से हैं। समाधि में एक चंदन का और एक सीप का कटहरा है। इन्हें ढाका के सूबेदार और शेख सलीम के पौत्र नवाब इस्लामख़ाँ ने बनवाया था। जहाँगीर ने समाधि की शोभा बढ़ाने के लिए उसे श्वेत संगमरमर का बनवा दिया था यद्यपि अकबर के समय में यह लाल पत्थर की थी।  जहाँगीर ने समाधि की दीवार पर चित्रकारी भी करवाई। समाधि के कटहरे का लगभग डेढ़ गज़ खंभा विकृत हो जाने पर 1905 में लार्ड कर्जन ने 12 सहस्त्र रूपए की लागत से पुन: बनवाया था। समाधि के किवाड़ आबनूस के बने है।
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फ़तेहपुर सीकरी में अकबर के समय के अनेक भवनों, प्रासादों तथा राजसभा के भव्य अवशेष आज भी वर्तमान हैं। यहाँ की सर्वोच्च इमारत [[बुलंद दरवाजा]] है, जिसकी ऊंचाई भूमि से 280 फुट है। 52 सीढ़ियों के पश्चात दर्शक दरवाजे के अंदर पहुंचता है। दरवाजे में पुराने जमाने के विशाल किवाड़ ज्यों के त्यों लगे हुए हैं। शेख सलीम की मान्यता के लिए अनेक यात्रियों द्वारा किवाड़ों पर लगवाई हुई घोड़े की नालें दिखाई देती हैं। बुलंद दरवाजे को, 1602 ई॰ में अकबर ने अपनी गुजरात-विजय के स्मारक के रूप में बनवाया था। इसी दरवाजे से होकर शेख की दरगाह में प्रवेश करना होता है। बाईं ओर जामा मस्जिद है और सामने शेख का मज़ार। मज़ार या समाधि के पास उनके संबंधियों की क़ब्रें हैं। मस्जिद और मज़ार के समीप एक घने वृक्ष की छाया में एक छोटा संगमरमर का सरोवर है। मस्जिद में एक स्थान पर एक विचित्र प्रकार का पत्थर लगा है जिसकों थपथपाने से नगाड़े की ध्वनि सी होती है। मस्जिद पर सुंदर नक्काशी है। शेख सलीम की समाधि संगमरमर की बनी है। इसके चतुर्दिक पत्थर के बहुत बारीक काम की सुंदर जाली लगी है जो अनेक आकार प्रकार की बड़ी ही मनमोहक दिखाई पड़ती है। यह जाली कुछ दूर से देखने पर जालीदार श्वेत रेशमी वस्त्र की भांति दिखाई देती है। समाधि के ऊपर मूल्यवान सीप, सींग तथा चंदन का अद्भुत शिल्प है जो 400 वर्ष प्राचीन होते हुए भी सर्वथा नया सा जान पड़ता है। श्वेत पत्थरों में खुदी विविध रंगोंवाली फूलपत्तियां नक्काशी की कला के सर्वोत्कृष्ट उदाहरणों में से हैं। समाधि में एक चंदन का और एक सीप का कटहरा है। इन्हें ढाका के सूबेदार और शेख सलीम के पौत्र नवाब इस्लामख़ाँ ने बनवाया था। जहाँगीर ने समाधि की शोभा बढ़ाने के लिए उसे श्वेत संगमरमर का बनवा दिया था यद्यपि अकबर के समय में यह लाल पत्थर की थी।  जहाँगीर ने समाधि की दीवार पर चित्रकारी भी करवाई। समाधि के कटहरे का लगभग डेढ़ गज़ खंभा विकृत हो जाने पर 1905 में लार्ड कर्जन ने 12 सहस्त्र रूपए की लागत से पुन: बनवाया था। समाधि के किवाड़ आबनूस के बने है।
 
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पांच मंज़िला पंचमहल या हवामहल जोधाबाई के सूर्य को अर्ध्य देने के लिए बनवाया गया था। यहीं से अकबर की मुसलमान बेगमें [[ईद-उल-फ़ितर|ईद]] का चांद देखती थी। समीप ही मुग़ल राजकुमारियों का मदरसा है।  जोधाबाई का महल प्राचीन घरों के ढंग का बनवाया गया था। इसके बनवाने तथा सजाने में अकबर ने अपने रानी की हिंदू भावनाओं का विशेष ध्यान रखा था। भवन के अंदर आंगन में [[तुलसी]] के बिरवे का थांवला है और सामने दालान में एक मंदिर के चिन्हं हैं। दीवारों में मूर्तियों के लिए आले बने हैं।  कहीं-कहीं दीवारों पर [[कृष्णलीला]] के चित्र हैं जो बहुत मद्धिम पड़ गए है। मंदिर के घंटों के चिन्ह पत्थरों पर अंकित हैं। इस तीन मंज़िले घर के ऊपर के कमरों को ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन महल कहा जाता था। ग्रीष्मकालीन महल में पत्थर की बारीक जालियों में से ठंडी हवा छन-छन कर आती थी।   
 
पांच मंज़िला पंचमहल या हवामहल जोधाबाई के सूर्य को अर्ध्य देने के लिए बनवाया गया था। यहीं से अकबर की मुसलमान बेगमें [[ईद-उल-फ़ितर|ईद]] का चांद देखती थी। समीप ही मुग़ल राजकुमारियों का मदरसा है।  जोधाबाई का महल प्राचीन घरों के ढंग का बनवाया गया था। इसके बनवाने तथा सजाने में अकबर ने अपने रानी की हिंदू भावनाओं का विशेष ध्यान रखा था। भवन के अंदर आंगन में [[तुलसी]] के बिरवे का थांवला है और सामने दालान में एक मंदिर के चिन्हं हैं। दीवारों में मूर्तियों के लिए आले बने हैं।  कहीं-कहीं दीवारों पर [[कृष्णलीला]] के चित्र हैं जो बहुत मद्धिम पड़ गए है। मंदिर के घंटों के चिन्ह पत्थरों पर अंकित हैं। इस तीन मंज़िले घर के ऊपर के कमरों को ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन महल कहा जाता था। ग्रीष्मकालीन महल में पत्थर की बारीक जालियों में से ठंडी हवा छन-छन कर आती थी।   
 
==अन्य भवन==
 
==अन्य भवन==
इस भवन के निकट ही बीरबल का महल है जो 1582 ई॰ में बना था। इसके पीछे अकबर का निजी अस्तबल था जिसमें 150 घोड़े तथा अनेक ऊंटों के बांधने के लिए छेददार पत्थर लगें है। अस्तबल के समीप ही अबुलफज़ल और फैज़ी के निवासगृह अब नष्टभ्रष्ट दशा में हैं। यहाँ से पश्चिम की ओर प्रसिद्ध हिरनमीनार है। किंवदंती है कि इस मीनार के अंदर ख़ूनी हाथी हनन की समाधि है। मीनार में ऊपर से नीचे तक आगे निकले हुए हिरन के सींगों की तरह पत्थर जड़े है। मीनार के पास मैदान में अकबर शिकार खेलता था और बेगमों के आने के लिए अकबर ने एक आवरण-मार्ग बनवाया था। फतेहपुर सीकरी से प्राय: 1 मील दूर अकबर के प्रसिद्ध मन्त्री टोडरमल का निवासस्थान था जो अब भग्न दशा में है। प्राचीन समय में नगर की सीमा पर मोती झील नामक एक बड़ा तालाब था जिसके चिन्ह अब नहीं मिलते। फतेहपुर सीकरी के भवनों की कला उनकी विशालता में है, लंबे-चौड़े सरल रेखाकार नक्शों पर बने भवन, विस्तृत प्रांगण तथा ऊंची छतें, कुल मिला कर दर्शक के मन में विशालता तथा भव्यता का गहरा प्रभाव डालते हैं। वास्तव में अकबर की इस स्थापत्य-कलाकृति में उसकी अपनी विशालहृदयता तथा उदारता के दर्शन होते हैं।
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इस भवन के निकट ही बीरबल का महल है जो 1582 ई॰ में बना था। इसके पीछे अकबर का निजी अस्तबल था जिसमें 150 घोड़े तथा अनेक ऊंटों के बांधने के लिए छेददार पत्थर लगें है। अस्तबल के समीप ही अबुलफज़ल और फैज़ी के निवासगृह अब नष्टभ्रष्ट दशा में हैं। यहाँ से पश्चिम की ओर प्रसिद्ध हिरनमीनार है। किंवदंती है कि इस मीनार के अंदर ख़ूनी हाथी हनन की समाधि है। मीनार में ऊपर से नीचे तक आगे निकले हुए हिरन के सींगों की तरह पत्थर जड़े है। मीनार के पास मैदान में अकबर शिकार खेलता था और बेगमों के आने के लिए अकबर ने एक आवरण-मार्ग बनवाया था। फ़तेहपुर सीकरी से प्राय: 1 मील दूर अकबर के प्रसिद्ध मन्त्री टोडरमल का निवासस्थान था जो अब भग्न दशा में है। प्राचीन समय में नगर की सीमा पर मोती झील नामक एक बड़ा तालाब था जिसके चिन्ह अब नहीं मिलते। फ़तेहपुर सीकरी के भवनों की कला उनकी विशालता में है, लंबे-चौड़े सरल रेखाकार नक्शों पर बने भवन, विस्तृत प्रांगण तथा ऊंची छतें, कुल मिला कर दर्शक के मन में विशालता तथा भव्यता का गहरा प्रभाव डालते हैं। वास्तव में अकबर की इस स्थापत्य-कलाकृति में उसकी अपनी विशालहृदयता तथा उदारता के दर्शन होते हैं।
 
[[Category: कोश]]
 
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[[Category:मुग़ल काल]]
 
[[Category:मुग़ल काल]]

०९:४७, ९ फ़रवरी २०१४ के समय का अवतरण

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फ़तेहपुर सीकरी / Fatehpur Sikri

थंबनेल बनाने में त्रुटि हुई है: /bin/bash: /usr/local/bin/convert: No such file or directory Error code: 127
फ़तेहपुर सीकरी, आगरा
Fatehpur Sikri, Agra

आगरा से 22 मील दक्षिण, मुग़ल सम्राट अकबर के बसाए हुए भव्य नगर के खंडहर आज भी अपने प्राचीन वैभव की झाँकी प्रस्तुत करते हैं। अकबर से पूर्व यहाँ फतेहपुर और सीकरी नाम के दो गाँव बसे हुए थे जो अब भी हैं। इन्हें अंग्रेजी शासक ओल्ड विलेजेस के नाम से पुकारते थे। सन 1527 ई॰ में चित्तौड़-नरेश राणा संग्रामसिंह और बाबर में यहाँ से लगभग दस मील दूर कनवाहा नामक स्थान पर भारी युद्ध हुआ था जिसकी स्मृति में बाबर ने इस गाँव का नाम फतेहपुर कर दिया था। तभी से यह स्थान फ़तेहपुर सीकरी कहलाता है। कहा जाता है कि इस ग्राम के निवासी शेख सलीम चिश्ती के आशीर्वाद से अकबर के घर सलीम (जहाँगीर) का जन्म हुआ था। जहाँगीर की माता जोधाबाई (आमेर नरेश बिहारीमल की पुत्री) और अकबर, शेख सलीम के कहने से यहाँ 6 मास तक ठहरे थे जिसके प्रसादस्वरूप उन्हें पुत्र का मुख देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।


सीकरी में एक सूफ़ी सन्त शेख़ सलीम चिश्ती रहा करते थे। उनकी शोहरत सुनकर अकबर, एक पुत्र की कामना लेकर उनके पास पहुंचा और जब अकबर को बेटा हुआ तो अकबर ने उसका नाम सलीम रखा। सीकरी में जहां सलीम चिश्ती रहते थे उसी के पास अकबर ने सन 1571 में एक क़िला बनवाना शुरु किया। अकबर की कई रानियाँ और बेगम थीं, किंतु उनमें से किसी से भी पुत्र नहीं हुआ था। अकबर पीरों एवं फ़कीरों से पुत्र प्राप्ति के लिए दुआएँ माँगता फिरता था। शेख सलीम चिश्ती ने अकबर को दुआ दी। दैवयोग से अकबर की बड़ी रानी जो कछवाहा राजा बिहारीमल की पुत्री और भगवानदास की बहिन थी, गर्भवती हो गई, और उसने पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम शेख के नाम पर सलीम रखा गया जो बाद में जहाँगीर के नाम से अकबर का उत्तराधिकारी हुआ। अकबर शेख से बहुत प्रभावित था। उसने अपनी राजधानी सीकरी में ही रखने का निश्चय किया। सन 1571 में राजधानी का स्थानांतरण किया गया। उसी साल अकबर ने गुजरात को फ़तह किया। इस कारण नई राजधानी का नाम फ़तेहपुर सीकरी रखा गया। सन 1584 तक लगभग 14 वर्ष तक फ़तेहपुर सीकरी ही मुग़ल साम्राज्य की राजधानी रही। अकबर ने अनेक निर्माण कार्य कराये, जिससे वह आगरा के समान बड़ी नगरी बन गई थी। फ़तेहपुर सीकरी समस्त देश की प्रशासनिक गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र थी। सन 1584 में एक अंग्रेज़ व्यापारी अकबर की राजधानी आया, उसने लिखा है− 'आगरा और फतेहपुर दोनों बड़े शहर हैं। उनमें से हर एक लंदन से बड़ा और अधिक जनसंकुल है। सारे भारत और ईरान के व्यापारी यहाँ रेशमी तथा दूसरे कपड़े, बहुमूल्य रत्न, लाल, हीरा और मोती बेचने के लिए लाते हैं।'


Blockquote-open.gif फ़तेहपुर सीकरी में अकबर के समय के अनेक भवनों, प्रासादों तथा राजसभा के भव्य अवशेष आज भी वर्तमान हैं। यहाँ की सर्वोच्च इमारत बुलंद दरवाजा है, जिसकी ऊंचाई भूमि से 280 फुट है। 52 सीढ़ियों के पश्चात दर्शक दरवाजे के अंदर पहुंचता है। Blockquote-close.gif

संत शेख सलीम चिश्‍ती के सम्‍मान में सम्राट अकबर ने इस शहर की नींव रखी। कुछ वर्षों के अंदर सुयोजनाबद्ध प्रशासनिक, आवासीय और धार्मिक भवन अस्तित्‍व में आए। इस क़िले के भीतर पंचमहल है जो एक पाँच मंज़िला इमारत है और बौद्ध विहार शैली में बनी है। इसकी पांचवी मंज़िल से मीलों दूर तक का दृश्य दिखायी देता है। जामा मस्जिद संभवतः पहला भवन था, जो निर्मित किया गया। बुलंद दरवाजा लगभग 5 वर्ष बाद जोड़ा गया। अन्‍य महत्‍वपूर्ण भवनों में शेख सलीम चिश्‍ती की दरगाह, नौबत-उर-नक्‍कारख़ाना, टकसाल, कारख़ाना, खज़ाना, हकीम का घर, दीवान-ए-आम, मरियम का निवास, जिसे सुनहरा मकान भी कहते हैं, जोधाबाई का महल, बीरबल का निवास आदि शामिल हैं।
भक्ति में अकबर ने बिना विचारे ही सीकरी को राजधानी बना दिया था। इस स्थान में पानी की बड़ी कमी थी, जिसको पूरा करने के लिए पहाड़ी पर बाँध बना कर एक झील बनाई गई थी। उसी का पानी राजधानी में आता था। अगस्त 1582 में बाँध टूट गया, जिससे पर्याप्त हानि हुई। 14 वर्ष तक सीकरी में राजधानी रखने पर अकबर ने अनुभव किया कि यह स्थान उपुयक्त नहीं है, अत: सन् 1584 में पुन: राजधानी आगरा बनाई गई। राजधानी के हटते ही फ़तेहपुर सीकरी का ह्रास होने लगा आजकल वह एक छोटा सा कस्बा रह गया है।

बुलंद दरवाजा और दरगाह

बुलंद दरवाजा, आगरा
Buland Darwaja, Agra

फ़तेहपुर सीकरी में अकबर के समय के अनेक भवनों, प्रासादों तथा राजसभा के भव्य अवशेष आज भी वर्तमान हैं। यहाँ की सर्वोच्च इमारत बुलंद दरवाजा है, जिसकी ऊंचाई भूमि से 280 फुट है। 52 सीढ़ियों के पश्चात दर्शक दरवाजे के अंदर पहुंचता है। दरवाजे में पुराने जमाने के विशाल किवाड़ ज्यों के त्यों लगे हुए हैं। शेख सलीम की मान्यता के लिए अनेक यात्रियों द्वारा किवाड़ों पर लगवाई हुई घोड़े की नालें दिखाई देती हैं। बुलंद दरवाजे को, 1602 ई॰ में अकबर ने अपनी गुजरात-विजय के स्मारक के रूप में बनवाया था। इसी दरवाजे से होकर शेख की दरगाह में प्रवेश करना होता है। बाईं ओर जामा मस्जिद है और सामने शेख का मज़ार। मज़ार या समाधि के पास उनके संबंधियों की क़ब्रें हैं। मस्जिद और मज़ार के समीप एक घने वृक्ष की छाया में एक छोटा संगमरमर का सरोवर है। मस्जिद में एक स्थान पर एक विचित्र प्रकार का पत्थर लगा है जिसकों थपथपाने से नगाड़े की ध्वनि सी होती है। मस्जिद पर सुंदर नक्काशी है। शेख सलीम की समाधि संगमरमर की बनी है। इसके चतुर्दिक पत्थर के बहुत बारीक काम की सुंदर जाली लगी है जो अनेक आकार प्रकार की बड़ी ही मनमोहक दिखाई पड़ती है। यह जाली कुछ दूर से देखने पर जालीदार श्वेत रेशमी वस्त्र की भांति दिखाई देती है। समाधि के ऊपर मूल्यवान सीप, सींग तथा चंदन का अद्भुत शिल्प है जो 400 वर्ष प्राचीन होते हुए भी सर्वथा नया सा जान पड़ता है। श्वेत पत्थरों में खुदी विविध रंगोंवाली फूलपत्तियां नक्काशी की कला के सर्वोत्कृष्ट उदाहरणों में से हैं। समाधि में एक चंदन का और एक सीप का कटहरा है। इन्हें ढाका के सूबेदार और शेख सलीम के पौत्र नवाब इस्लामख़ाँ ने बनवाया था। जहाँगीर ने समाधि की शोभा बढ़ाने के लिए उसे श्वेत संगमरमर का बनवा दिया था यद्यपि अकबर के समय में यह लाल पत्थर की थी। जहाँगीर ने समाधि की दीवार पर चित्रकारी भी करवाई। समाधि के कटहरे का लगभग डेढ़ गज़ खंभा विकृत हो जाने पर 1905 में लार्ड कर्जन ने 12 सहस्त्र रूपए की लागत से पुन: बनवाया था। समाधि के किवाड़ आबनूस के बने है।

फ़तेहपुर सीकरी
फ़तेहपुर सीकरी का विहंगम दृश्य
Panoramic View Of Fatehpur Sikri

राजमहल

अकबर के राजप्रासाद समाधि के पीछे की ओर ऊंचे लंबे-चौड़े चबूतरों पर बना हैं। इनमें चार-चमन और ख्वाबगाह अकबर के मुख्य राजमहल थे। यहीं उसका शयनकक्ष और विश्राम-गृह थे। चार-चमन के सामने आंगन में अनूप ताल है जहां तानसेन दीपक राग गाया करता था। ताल के पूर्व में अकबर की तुर्की बेगम रूकैया का महल है। यह इस्तंबूल की रहने वाली थी। कुछ लोगों के मत में इस महल में सलीमा बेगम रहती थी। यह बाबर की पोती (अकबर की बहिन)और बैरम ख़ाँ की विधवा थी। इस महल की सजावट तुर्की के दो शिल्पियों ने की थी। समुद्र की लहरें नामक कलाकृति बहुत ही सुंदर एवं वास्तविक जान पड़ती है। भित्तियों पर पशुपक्षियों के अतिसुंदर तथा कलात्मक चित्र हैं जिन्हें बाद मेंऔरंगजेब ने नष्ट-भ्रष्ट कर दिया था। भवन के जड़े हुए कीमती पत्थर भी निकाल लिए गए हैं।

दीवान-ए-ख़ास

रूकैया बेग़म के महल के दाहिनी ओर अकबर का दीवान-ए-ख़ास है जहां दो बेगमों के साथ अकबर न्याय करता था। बादशाह के नवरत्न-मन्त्री थोड़ा हट कर नीचे बैठते थे। यहाँ सामान्य जनता तथा दर्शकों के लिए चारों तरफ बरामदे बने हैं। बीच के बड़े मैदान में हनन नामक ख़ूनी हाथी के बांधने के लिए एक मोटा पत्थर गड़ा है। यह हाथी मृत्युदंड प्राप्त अपराधियों को रोंदने के काम में लाया जाता था। कहते हैं कि यह हाथी जिसे तीन बार, पादाहत करके छोड़ देता था उसे मुक्त कर दिया जाता था। दीवान-ए-ख़ास की यह विशेषता है कि वह एक पद्माकार प्रस्तर-स्तंभ के ऊपर टिका हुआ है। इसी पर आसीन होकर अकबर अपने मन्त्रियों के साथ गुप्त मन्त्रणा करता था। दीवान-ए-ख़ास के निकट ही आंखमिचौनी नामक भवन है जो अकबर का निजी मामलों का दफ़्तर था।

पंचमहल

पांच मंज़िला पंचमहल या हवामहल जोधाबाई के सूर्य को अर्ध्य देने के लिए बनवाया गया था। यहीं से अकबर की मुसलमान बेगमें ईद का चांद देखती थी। समीप ही मुग़ल राजकुमारियों का मदरसा है। जोधाबाई का महल प्राचीन घरों के ढंग का बनवाया गया था। इसके बनवाने तथा सजाने में अकबर ने अपने रानी की हिंदू भावनाओं का विशेष ध्यान रखा था। भवन के अंदर आंगन में तुलसी के बिरवे का थांवला है और सामने दालान में एक मंदिर के चिन्हं हैं। दीवारों में मूर्तियों के लिए आले बने हैं। कहीं-कहीं दीवारों पर कृष्णलीला के चित्र हैं जो बहुत मद्धिम पड़ गए है। मंदिर के घंटों के चिन्ह पत्थरों पर अंकित हैं। इस तीन मंज़िले घर के ऊपर के कमरों को ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन महल कहा जाता था। ग्रीष्मकालीन महल में पत्थर की बारीक जालियों में से ठंडी हवा छन-छन कर आती थी।

अन्य भवन

इस भवन के निकट ही बीरबल का महल है जो 1582 ई॰ में बना था। इसके पीछे अकबर का निजी अस्तबल था जिसमें 150 घोड़े तथा अनेक ऊंटों के बांधने के लिए छेददार पत्थर लगें है। अस्तबल के समीप ही अबुलफज़ल और फैज़ी के निवासगृह अब नष्टभ्रष्ट दशा में हैं। यहाँ से पश्चिम की ओर प्रसिद्ध हिरनमीनार है। किंवदंती है कि इस मीनार के अंदर ख़ूनी हाथी हनन की समाधि है। मीनार में ऊपर से नीचे तक आगे निकले हुए हिरन के सींगों की तरह पत्थर जड़े है। मीनार के पास मैदान में अकबर शिकार खेलता था और बेगमों के आने के लिए अकबर ने एक आवरण-मार्ग बनवाया था। फ़तेहपुर सीकरी से प्राय: 1 मील दूर अकबर के प्रसिद्ध मन्त्री टोडरमल का निवासस्थान था जो अब भग्न दशा में है। प्राचीन समय में नगर की सीमा पर मोती झील नामक एक बड़ा तालाब था जिसके चिन्ह अब नहीं मिलते। फ़तेहपुर सीकरी के भवनों की कला उनकी विशालता में है, लंबे-चौड़े सरल रेखाकार नक्शों पर बने भवन, विस्तृत प्रांगण तथा ऊंची छतें, कुल मिला कर दर्शक के मन में विशालता तथा भव्यता का गहरा प्रभाव डालते हैं। वास्तव में अकबर की इस स्थापत्य-कलाकृति में उसकी अपनी विशालहृदयता तथा उदारता के दर्शन होते हैं।