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कलावता ग्राम के पास में इन्द्रसेन पर्वत पर फिसलनी शिला विद्यमान है। गोचारण करने के समय श्री [[कृष्ण]] सखाओं के साथ यहाँ फिसलने की क्रीड़ा करते थे। कभी–कभी [[राधा|राधिकाजी]] भी सखियों के साथ यहाँ फिसलने की क्रीड़ा करती थीं। आज भी निकट गाँव के लड़के गोचारण करते समय बड़े आनन्द से यहाँ पर फिसलने की क्रीड़ा करते हैं। यात्री भी इस क्रीड़ा कौतुकवाली शिला को दर्शन करने के लिए जाते हैं। | कलावता ग्राम के पास में इन्द्रसेन पर्वत पर फिसलनी शिला विद्यमान है। गोचारण करने के समय श्री [[कृष्ण]] सखाओं के साथ यहाँ फिसलने की क्रीड़ा करते थे। कभी–कभी [[राधा|राधिकाजी]] भी सखियों के साथ यहाँ फिसलने की क्रीड़ा करती थीं। आज भी निकट गाँव के लड़के गोचारण करते समय बड़े आनन्द से यहाँ पर फिसलने की क्रीड़ा करते हैं। यात्री भी इस क्रीड़ा कौतुकवाली शिला को दर्शन करने के लिए जाते हैं। | ||
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०८:००, १४ अप्रैल २०१० का अवतरण
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फिसलनी शिला / Phisalani Shila
कलावता ग्राम के पास में इन्द्रसेन पर्वत पर फिसलनी शिला विद्यमान है। गोचारण करने के समय श्री कृष्ण सखाओं के साथ यहाँ फिसलने की क्रीड़ा करते थे। कभी–कभी राधिकाजी भी सखियों के साथ यहाँ फिसलने की क्रीड़ा करती थीं। आज भी निकट गाँव के लड़के गोचारण करते समय बड़े आनन्द से यहाँ पर फिसलने की क्रीड़ा करते हैं। यात्री भी इस क्रीड़ा कौतुकवाली शिला को दर्शन करने के लिए जाते हैं।