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काशी /बनारस
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ऐतिहासिक आलेखों से प्रमाणित होता है कि ईसा पूर्व की छठी शताब्दी में काशी भारतवर्ष का बड़ा ही समृद्धशाली और महत्वपूर्ण राज्य था । मध्य युग में यह [[कन्नौज]] राज्य का अंग था और बाद में बंगाल के पाल नरेशों का इस पर अधिकार हो गया था । सन् 1194 में [[शहाबुद्दीन गौरी]] ने इस नगर को लूटा- पाटा और क्षति पहुँचायी । [[मुगल काल]] में इसका नाम बदल कर मुहम्मदाबाद रखा गया । बाद में इसे अवध दरबार के प्रत्यक्ष नियंत्रण में रखा गया । बलवंत सिंह ने बक्सर की लड़ाई में अंग्रेजों का साथ दिया और इसके उपलक्ष्य में काशी को अवध दरबार से स्वतंत्र कराया । सन् 1911 में अंग्रेजों ने महाराज प्रभुनारायण सिंह को बनारस का राजा बना दिया । सन् 1950 में यह राज्य स्वेच्छा से भारतीय गणराज्य में शामिल हो गया ।
 
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काशी विभिन्न मत-मतान्तरों की संगम स्थली रही है । विद्या के इस पुरातन और शाश्वत नगर ने सदियों से धार्मिक गुरुओं, सुधारकों और प्रचारकों को अपनी ओर आकृष्ट किया है । भगवान [[बुद्ध]] और [[शंकराचार्य]] के अलावा [[रामानुज]], [[बल्लभाचार्य]], संत [[कबीर]], गुरु [[नानक]], [[तुलसीदास]], [[चैतन्य महाप्रभु]], [[रैदास]] आदि अनेक संत इस नगरी में आये ।
 
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भारतीय स्वातंत्रता आंदोलन में भी काशी सदैव अग्रणी रही है । राष्ट्रीय आंदोलन में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रों का योगदान स्मरणीय है । इस नगरी को क्रांतिकारी सुशील कुमार लाहिड़ी, अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद तथा जितेद्रनाथ सान्याल सरीखे वीर सपूतों को जन्म देने का गौरव प्राप्त है । [[महामना पंडित मदनमोहन मालवीय]] जैसे विलक्षण महापुरुष के अतिरिक्त राजा शिव प्रसाद गुप्त, बाबूराव विष्णु पराड़कर, श्री श्रीप्रकाश, डॉ. भगवान दास, लाल बहादुर शास्री, डॉ. संपूर्णानंद, कमलेश्वर प्रसाद, मन्मथनाथ गुप्त, मुकुटबिहारी लाल जैसे महापुरुषों का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान  इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा ।
 
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वाराणसी गायन एवं वाद्य दोनों ही विद्याओं का केंद्र रहा है । सुमधुर ठुमरी भारतीय कंठ संगीत को वाराणसी की विशेष देन है । इसमें धीरेंद्र बाबू, बड़ी मोती, छोती मोती, सिध्देश्वर देवी, रसूलन बाई, काशी बाई, अनवरी बेगम, शांता देवी तथा इस समय गिरिजा देवी आदि का नाम समस्त भारत में बड़े गौरव एवं सम्मान के साथ लिया जाता है । इनके अतिरिक्त बड़े रामदास तथा श्रीचंद्र मिश्र, गायन कला में अपनी सानी नहीं रखते । तबला वादकों में कंठे महाराज, अनोखे लाल, गुदई महाराज, कृष्णा महाराज देश- विदेश में अपना नाम कर चुके हैं । शहनाई वादन एवं नृत्य में भी काशी में नंद लाल, उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ तथा सितारा देवी जैसी प्रतिभाएँ पैदा हुई हैं ।
 
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काशी नगरी संस्कृत साहित्य का केंद्र तो रही ही है, लेकिन इसके साथ ही इस नगर ने हिंदी तथा उर्दू में अनेक साहित्यकारों को भी जन्म दिया है, जिन्होंने साहित्य सेवा की तथा देश में गौरव पूर्ण स्थान प्राप्त किया । इनमें भारतेंदु हरिश्चंद्र, अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध', जयशंकर प्रसाद, प्रेमचंद, श्याम सुंदर दास, राय कृष्ण दास, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, रामचंद्र वर्मा, बेचन शर्मा "उग्र', विनोदशंकर व्यास, कृष्णदेव प्रसाद गौड़ तथा डॉ. संपूर्णानंद उल्लेखनीय हैं । इनके अतिरिक्त उर्दू साहित्य में भी यहाँ अनेक जाने- माने लेखक एवं शायर हुए हैं । जिनमें मुख्यतः श्री विश्वनाथ प्रसाद शाद, मौलवी महेश प्रसाद, महाराज चेतसिंह, शेखअली हाजी, आगा हश्र कश्मीरी, हुकुम चंद्र नैयर, प्रो. हफीज बनारसी, श्री हक बनारसी तथा नजीर बनारसी का नाम आता है।
 
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काशी के कारीगरों के कला- कौशल की ख्याति सुदूर प्रदेशों तक में रही है। काशी आने वाला कोई भी यात्री यहाँ के रेशमी किमखाब तथा जरी के वस्रों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता । यहाँ के बुनकरों की परंपरागत कुशलता और कलात्मकता ने इन वस्तुओं को संसार भर में प्रसिद्धि और मान्यता दिलायी है । विदेश व्यापार में इसकी विशिष्ट भूमिका है । इसके उत्पादन में बढ़ोत्तरी और विशिष्टता से विदेशी मुद्रा अर्जित करने में बड़ी सफलता मिली है । रेशम तथा जरी के उद्योग के अतिरिक्त, यहाँ पीतल के बर्तन तथा उन पर मनोहारी काम और संजरात उद्योग भी अपनी कला और सौंदर्य के लिए विख्यात हैं । इसके अलावा यहाँ के लकड़ी के खिलौने भी दूर- दूर तक प्रसिद्ध हैं, जिन्हें कुटीर उद्योगों में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हैं ।
 
काशी में [[गंगा]] तट पर अनेक सुंदर घाट बने हैं, जिनमें असी, तुलसी, हनुमान, हरिश्चंद्र, दशाश्वमेध, मानमंदिर, मणिकर्णिका, सिंधिया तथा राजघाट मुख्य हैं । ये सभी घाट किसी- न-किसी पौराणिक या धार्मिक कथा से संबंधित हैं ।
 
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काशी, पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है । यहाँ अनेक धार्मिक, ऐतिहासिक एवं सुंदर दर्शनीय स्थल है, जिन्हें देखने के लिए देश के ही नहीं, संसार भर से पर्यटक आते हैं और इस नगरी तथा यहाँ की संस्कृति की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं । कला, संस्कृति, साहित्य और राजनीति के विविध क्षेत्रों में अपनी अलग पहचान बनाये रखने के कारण काशी अन्य शहरों की अपेक्षा अपना विशिष्ट स्थान रखती है । देश की राष्ट्रभाषा हिंदी की जननी संस्कृत की उद्भव स्थली काशी सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है ।
 

१६:०५, २३ मई २००९ के समय का अवतरण

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