"बरसाना" के अवतरणों में अंतर
पंक्ति २५: | पंक्ति २५: | ||
<gallery> | <gallery> | ||
− | चित्र:old-barsana-temple.jpg|बरसाना मंदिर<br />Barsana Temple, Barsana | + | चित्र:old-barsana-temple.jpg|बरसाना मंदिर, बरसना<br />Barsana Temple, Barsana |
चित्र:RadhaRani-Temple-Barsana-Mathura-1.jpg|राधा रानी मंदिर, बरसना <br />Radha Rani Temple, Barsana | चित्र:RadhaRani-Temple-Barsana-Mathura-1.jpg|राधा रानी मंदिर, बरसना <br />Radha Rani Temple, Barsana | ||
चित्र:RadhaRani-Temple-Barsana-Mathura-2.jpg|राधा रानी मंदिर, बरसना <br />Radha Rani Temple, Barsana | चित्र:RadhaRani-Temple-Barsana-Mathura-2.jpg|राधा रानी मंदिर, बरसना <br />Radha Rani Temple, Barsana |
१२:१७, ११ नवम्बर २००९ का अवतरण
बरसाना / Barsana
बरसाना मथुरा से 42 कि0मी0, कोसी से 21 कि0मी0, छाता तहसील का एक छोटा सा गाँव है। मथुरा से लगभग 42 कि0मी0 दूर बरसाना राधा के पिता वृषभानु निवासस्थान था। यहां लाड़लीजी का बहुत बड़ा मंदिर है। राधा को लोग यहां प्यार से 'लाड़लीजी' कहते हैं। बरसाना गांव के पास दो पहाड़ियां मिलती है। उनकी घाटी बहुत ही कम चौड़ी है। मान्यता है कि गोपियां इसी मार्ग से दही-मक्खन बेचने जाया करती थी। यहीं पर कभी-कभी कृष्ण उनकी मटकी छीन लिया करते थे। बरसाना का पुराना नाम ब्रह्मासरिनि था। राधाष्टमी के अवसर पर प्रतिवर्ष यहां मेला लगता है।
कृष्ण की प्रेयसी राधा की जन्मस्थली के रूप में प्रसिद्ध है। इस स्थान को, जो एक बृहत् पहाड़ी की तलहटी में बसा है, प्राचीन समय में बृहत्सानु कहा जाता था (बृहत् सानु=पर्वत शिखर)इसका प्राचीन नाम ब्रहत्सानु, ब्रह्मसानु अथवा व्रषभानुपुर है। इसके अन्य नाम ब्रह्मसानु या वृषभानुपुर (वृषभानु, राधा के पिता का नाम है) भी कहे जाते हैं। बरसाना प्राचीन समय में बहुत समृद्ध नगर था। राधा का प्राचीन मंदिर मध्यकालीन है जो लाल पत्थर का बना है। यह अब परित्यक्तावस्था में हैं। इसकी मूर्ति अब पास ही स्थित विशाल एवं परमभव्य संगमरमर के बने मंदिर में प्रतिष्ठापित की हुई है। ये दोनों मंदिर ऊंची पहाड़ी के शिखर पर हैं। थोड़ा आगे चल कर जयपुर-नरेश का बनवाया हुआ दूसरा विशाल मंदिर पहाड़ी के दूसरे शिखर पर बना है। कहा जाता है कि औरंगजेब जिसने मथुरा व निकटवर्ती स्थानों के मंदिरों को क्रूरतापूर्वक नष्ट कर दिया था, बरसाने तक न पहुंच सका था।
राधा श्री कृष्ण की आह्लादिनी शक्ति एवं निकुच्जेश्वरी मानी जाती है। इसलिए राधा किशोरी के उपासकों का यह अति प्रिय तीर्थ है। बरसाने की पुण्यस्थली बड़ी हरी-भरी तथा रमणीक है। इसकी पहाड़ियों के पत्थर श्याम तथा गौरवर्ण के हैं जिन्हें यहां के निवासी कृष्णा तथा राधा के अमर प्रेम का प्रतीक मानते है। बरसाने से 4 मील पर नन्दगांव है जहां श्रीकृष्ण के पिता नंद जी का घर था। बरसाना-नंदगांव मार्ग पर संकेत नामक स्थान है जहां किंवदंती के अनुसार कृष्ण और राधा का प्रथम मिलन हुआ था। (संकेत का शब्दार्थ है पूर्वनिर्दिष्ट मिलने का स्थान) यहाँ भाद्र शुक्ल अष्टमी (राधाष्टमी) से चतुर्दशी तक बहुत सुन्दर मेला होता हैं। इसी प्रकार फाल्गुन शुक्ल अष्टमी, नवमी एवं दशमी को आकर्षक लीला होती है।
बसंत पंचमी से बरसाना होली के रंग में सरोबार हो जाता है । टेसू के फूल तोड़कर और उन्हें सुखा कर रंग और गुलाल तैयार किया जाता है । गोस्वामी समाज के लोग गाते हुए कहते हैं - "नन्दगाँव को पांडे बरसाने आयो रे । शाम को 7 बजे चौपाई निकाली जाती है जो लाड़ली मन्दिर होते हुए सुदामा चौक रंगीली गली होते हुए वापस मन्दिर आ जाती है । सुबह 7 बजे बाहर से आने वाले कीर्तन मंडल कीर्तन करते हुए गहवर वन की परिक्रमा करते हैं । बारहसिंघा की खाल से बनी ढ़ाल को लिए पीली पोखर पहुंचते हैं । बरसानावासी उन्हें रूपये और नारियल भेंट करते हैं, फिर नन्दगाँव के हुरियारे भांग-ठंडाई छानकर मदमस्त होकर पहुंचते हैं । राधा कृष्ण की झांकी के सामने समाज गायन करते हैं ।
लट्ठामार होली
ब्रह्मगिरी पर्वत स्थित ठाकुर लाडिलीजी महाराज मन्दिर के प्रांगण में जब नंदगाँव से होली का न्योता देकर महाराज वृषभानजी का पुरोहित लौटता है तो यहां के ब्रजवासी ही नहीं देशभर से आये श्रृध्दालु खुशी से झूम उठते हैं । पांडे का स्वागत करने के लिए लोगों में होड़ लग जाती है । स्वागत देखकर पांडा खुशी से नाचने लगता है । राधा कृष्ण की भक्ति में सब अपनी सुधबुध खो बैठते हैं । लोगों द्वारा लाये गये लड्डूओं को नन्दगाँव के हुरियारे फगुआ के रूप में बरसाना के गोस्वामी समाज को होली खेलने के लिए बुलाते हैं । कान्हा के घर नन्दगाँव से चलकर उनके सखा स्वरूपों ने आकर अपने कदम बढ़ा दिया । बरसानावासी राधा पक्ष वालों ने समाज गायन में भक्तिरस के साथ चुनौती पूर्ण पंक्तियां प्रस्तुत करके विपक्ष को मुकाबले के लिए ललकारते हैं और मुकाबला रोचक हो जाता है । लट्ठामार होली से पूर्व नन्दगाँव व बरसाना के गोस्वामी समाज के बीच जोरदार मुकाबला होता है । नन्दगाँव के हुरियारे सर्वप्रथम पीली पोखर पर जाते हैं ।यहाँ स्थानीय गोस्वामी समाज अगवानी करता है । मेहमाननवाजी के बाद मन्दिर परिसर में दोनों पक्षों द्वारा समाज गायन का मुकाबला होता है । गायन के बाद रंगीली गली में हुरियारे लट्ठ झेलते हैं । यहां सुघड़ हुरियाने अपने लठ लिए स्वागत को खड़ी मिलेती हैं । दोंनों तरफ कतारों में खड़ी हंसी ठिठोली करती हुई हुरियानों को जी भर कर छेडते हैं । ऐसा लगता है जैसे असल में इनकी सुसराल यहां है । इसी अवसर पर जो भूतकाल में हुआ उसे जिया जाता है । यह परम्परा सदियों से चली आ रही है ।
निश्छ्ल प्रेम भरी गालियां और लाठियां इतिहास को दोबारा दोहराते हुए नज़र आते हैं । बरसाना और नन्दगाँव में इस स्तर की होली होने के बाद भी आज तक कोई एक दूसरे के यहां वास्तव में कोई आपसी रिश्ता नहीं हुआ । आजकल भी यहां टेसू के फूलों से होली खेली जाती है, रसायनों से पवित्रता के कारण बाजारू रंगों से परहेज़ किया जाता है । अगले दिन नन्दबाबा के गाँव में छ्टा होती है । बरसाना के लोह हर्ष से भरकर मुकाबला जीतने नन्दगाँव आयेगें । यहां गायन का एकबार फिर कड़ा मुकाबला होगा । यशोदा कुण्ड फिर से स्वागत का गवाह बनेगा, भूरा थोक में फिर होगी लट्ठामार होली ।